उत्तर प्रदेश के नैनी के दीन दयाल जूनियर हाई स्कूल में कथित तौर पर रोने पर शिक्षकों द्वारा पीटे जाने के कारण एक अबोध बालक की जान चली जाना, न केवल हृदय विदारक है बल्कि हमारी शिक्षा प्रणाली और समाज के मूल्यों पर भी एक गहरा आघात है। इस घटना को गंभीरता से लिया जाना चाहिए
उ त्तर प्रदेश के प्रयागराज में एक साढ़े तीन साल के मासूम शिवाय की दर्दनाक मौत ने एक बार फिर शिक्षा के मंदिरों में बच्चों की सुरक्षा और शिक्षकों के व्यवहार पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

नैनी के दीन दयाल जूनियर हाई स्कूल में कथित तौर पर रोने पर शिक्षकों द्वारा पीटे जाने के कारण एक अबोध बालक की जान चली जाना, न केवल हृदय विदारक है बल्कि हमारी शिक्षा प्रणाली और समाज के मूल्यों पर भी एक गहरा आघात है।
यह घटना कोई नई घटना नहीं है। देश के विभिन्न हिस्सों से अक्सर ऐसी खबरें आती रहती हैं, जहां शिक्षकों द्वारा बच्चों को शारीरिक या मानसिक रूप से प्रताड़ित दिया जाता है। कभी अनुशासन के नाम पर, तो कभी झुंझलाहट में, बच्चों को ऐसी सजाएं दी जाती हैं जो उनके कोमल मन और शरीर पर गहरा घाव छोड़ जाती हैं।
प्रयागराज की इस घटना ने तो सारी हदें पार कर दीं, जहां एक मासूम बच्चे को उसकी जान से हाथ धोना पड़ा।
यह विडंबना ही है कि माता-पिता अपने बच्चों को बेहतर भविष्य की उम्मीद में स्कूलों में भेजते हैं, जहां शिक्षक उन्हें ज्ञान और संस्कार देकर एक अच्छा इंसान बनाएं। वे अपनी गाढ़ी कमाई का एक बड़ा हिस्सा बच्चों की शिक्षा पर खर्च करते हैं। लेकिन इसके बदले में उन्हें क्या मिलता है?
कभी-कभी तो ऐसी भयावह खबरें मिलती हैं जो उन्हें अंदर तक झकझोर देती हैं। सरकारी और निजी विद्यालयों में शिक्षकों के दायित्व और कर्तव्य को लेकर लगातार सवाल उठते रहे हैं। क्या शिक्षकों को बच्चों के मनोविज्ञान की समझ नहीं होती?
क्या उन्हें यह नहीं पता होता कि बच्चों को प्यार और धैर्य से समझाया जा सकता है, न कि डंडे और थप्पड़ से?
प्रयागराज के इस मामले में जो तथ्य सामने आ रहे हैं, वे और भी चिंताजनक हैं। बच्चे के भाई के अनुसार, शिवाय के रोने पर उसे एक शिक्षक ने थप्पड़ मारा, जिससे उसका सिर बेंच से टकरा गया और उसके मुंह-नाक से खून बहने लगा।
आरोप यह भी है कि बच्चे के पानी मांगने पर भी उसे पानी नहीं दिया गया और दस मिनट बाद वह शांत हो गया। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बच्चे के आइब्रो पर कट का निशान, जीभ का कटा होना कई आशंकायें को जन्म देती है जिससे इस घटना की गंभीरता को और बढ़ा देता है।
यदि ये आरोप सही हैं, तो यह न केवल एक आपराधिक कृत्य है, बल्कि मानवता को शर्मसार करने वाली घटना है।
स्कूल प्रबंधक और आरोपी शिक्षिका भले ही अपने बचाव में कुछ भी कहें, लेकिन एक मासूम बच्चे की जान चली गई है और इसके लिए कहीं न कहीं लापरवाही और असंवेदनशीलता तो जिम्मेदार है ही। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि स्कूल प्रबंधक इस घटना को स्कूल से बाहर की बता रहे हैं, जबकि बच्चे के भाई का बयान और पोस्टमार्टम रिपोर्ट कुछ और ही कहानी बयां करते हैं।
यह समय है कि सरकार और शिक्षा विभाग इस मामले को गंभीरता से लें और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करें। सिर्फ दो शिक्षकों के खिलाफ मामला दर्ज कर लेना पर्याप्त नहीं है। इस घटना की जड़ तक जाना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों। निजी स्कूलों के निदेशकों के कथित राजनीतिक गठजोड़ के कारण यदि इन पर अंकुश नहीं लग पा रहा है, तो यह और भी चिंताजनक है।
सरकार को एक ठोस और प्रभावी नीति बनानी होगी, जिसके तहत सभी स्कूलों में शिक्षकों के चयन, उनके प्रशिक्षण और उनके व्यवहार को लेकर सख्त नियम हों और उनका कड़ाई से पालन किया जाए।
बच्चों की सुरक्षा और उनका मानसिक स्वास्थ्य हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। वे अबोध और मासूम होते हैं और उन्हें प्यार, देखभाल और सहानुभूति की आवश्यकता होती है। शिक्षा का उद्देश्य बच्चों को भयमुक्त और सकारात्मक माहौल में ज्ञान देना है, न कि उन्हें प्रताड़ित करके उनकी जान लेना। प्रयागराज की इस दुखद घटना से सबक लेते हुए, सरकार को अब जागना होगा और ऐसे ठोस कदम उठाने होंगे ताकि किसी और बच्चे को इस तरह अपनी जान न गंवानी पड़े। हमें एक ऐसे समाज का निर्माण करना होगा जहां हर बच्चा सुरक्षित महसूस करे और शिक्षा के मंदिर उसके लिए भय का स्थान न बनें।


