पाकिस्तान ने क्या चुना? आतंक और किसी दूसरे देश का पिछलग्गू बनकर उसकी भीख और सहायता से आतंकवाद का पोषण करना। आज न तो पाकिस्तान में एक मजबूत लोकतंत्र स्थापित हो पाया है और न ही विकास की कोई ठोस नींव रखी जा सकी है।
(विनोद आनंद)
त्राल में सेना के साथ मुठभेड़ में मारे गए एक युवा आतंकी का अपनी मां से फोन पर आखिरी संवाद किसी भी संवेदनशील हृदय को झकझोर देने वाला है। “मां, मैं जीना चाहता हूं। मुझसे गलती हो गई। मैं आतंकवादी बन गया,” उसके ये शब्द उस गहरी पीड़ा और पश्चाताप को व्यक्त करते हैं जो उसे मौत के मुहाने पर महसूस हुई। दूसरी ओर, उसकी बेबस मां की चीख, “बेटा, सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दो! बेटा, गोली मत चलाओ,” उस असहनीय दर्द को दर्शाती है जो किसी भी मां को अपने बच्चे के विनाश की घड़ी में महसूस होता है। यह केवल एक गुमराह युवा और उसकी मां का दर्द नहीं है, बल्कि उन हजारों युवाओं की त्रासदी है जिन्हें धर्म और जिहाद के नाम पर बहकाया जाता है, जिन्हें आतंक के अंधे कुएं में धकेल दिया जाता है।

ठीक इसी समय, हमारी आंखों के सामने पाकिस्तान का एक और भयावह दृश्य उभरता है। इस्लामाबाद में एक उन्मादी भीड़ जमा है, जिसमें एक ऐसे संगठन के सदस्य शामिल हैं जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकवादी संगठन घोषित किया गया है। वे अल्लाह की दुहाई देते हुए हिंदुस्तान को तबाह करने की कसमें खाते हैं। वे पाकिस्तानी सरकार को लड़ाके देने और भारत को नष्ट करने की धमकी देते हैं। यह विडंबना ही है कि जिस देश में खुलेआम आतंकवादी संगठन रैलियां करते हैं, जहां आतंकियों के जनाजे में सेना के बड़े अधिकारी शामिल होते हैं, वही देश दुनिया के सामने आतंकवाद को संरक्षण न देने का दावा करता है।
आज इन दो विपरीत, परन्तु एक दूसरे से जुड़े हुए प्रसंगों पर विचार करना अत्यंत आवश्यक है। पहला प्रश्न यह है कि पाकिस्तान और उसकी जैसी कुत्सित सोच वाले देश किस प्रकार धर्म और अल्लाह के नाम पर युवाओं को गुमराह करते हैं? उन्हें सिखाया जाता है कि दूसरों का कत्ल करना जिहाद है और यदि वे इस राह में मारे जाते हैं तो उन्हें जन्नत नसीब होगा। पाकिस्तान के कुछ आतंकवादी संगठन यही घृणित कार्य कश्मीर घाटी में कर रहे हैं। वे अपने देश के युवाओं को बरगला कर भारत भेजते हैं और यहां आतंकी हमले करवाते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि किसी भी धर्म में किसी निर्दोष प्राणी की हत्या को स्वर्ग का मार्ग नहीं बताया गया है। इस बुरे कर्म का परिणाम अंततः त्राल में मरने वाले उस आतंकी जैसा ही होता है। मौत के करीब पहुंचकर उसे अपनी गलती का एहसास होता है, लेकिन तब वापसी का कोई रास्ता नहीं बचता। बुरे कर्म का अंत हमेशा ऐसा ही होता है। यही हाल मुंबई में निरीह लोगों का कत्लेआम करने वाले कसाब का हुआ, या ऑपरेशन सिंदूर में पूरे परिवार के सफाए के बाद मसूद का हुआ। आज हर उस व्यक्ति को इस घटना से सबक लेने की आवश्यकता है जो आतंक की राह पर कदम बढ़ाता है। उसे यह समझना होगा कि जब वह किसी निर्दोष और बेकसूर व्यक्ति की जान लेता है तो उसके साथ भी वैसा ही होता है।
दूसरी घटना पाकिस्तान के आम आवाम से जुड़ी है। 1947 में विदेशी दासता से मुक्त होकर भारत और पाकिस्तान दो अलग राष्ट्र बने। भारत ने शांति, सद्भाव और विकास का मार्ग चुना। आज भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। भारत ने चिकित्सा, रक्षा, अंतरिक्ष इंजीनियरिंग और हर उस क्षेत्र में प्रगति की है जिसके बल पर वह दुनिया के सामने मजबूती से खड़ा है।
लेकिन पाकिस्तान ने क्या चुना? आतंक और किसी दूसरे देश का पिछलग्गू बनकर उसकी भीख और सहायता से आतंकवाद का पोषण करना। आज न तो पाकिस्तान में एक मजबूत लोकतंत्र स्थापित हो पाया है और न ही विकास की कोई ठोस नींव रखी जा सकी है।
पाकिस्तान के गठन के बाद से लेकर अब तक सत्ता के भूखे लोगों ने न तो अपने देश के नागरिकों को सुरक्षा दी और न ही दो वक्त की सुकून भरी रोटी। आज सही शिक्षा के अभाव में युवा गुमराह होकर आतंक का रास्ता पकड़ रहे हैं। देश में सेना और सरकार दो धुरी के रूप में काम कर अपने ही देश में कत्लेआम मचा रहे हैं। कभी बलूचिस्तान के लाखों लोगों को मारा जा रहा है तो कभी अहमदिया मुसलमानों का नरसंहार किया जा रहा है। यहां तक कि एक तिहाई बहुमत से चुने गए इमरान खान तक भी सुरक्षित नहीं हैं। कोई भी व्यक्ति जो देश के लिए कुछ अच्छा करना चाहता है, उसके खिलाफ षडयंत्र रचा जाता है, उसे जेल की सलाखों के पीछे धकेल दिया जाता है और उसकी हत्या कर दी जाती है। अब पाकिस्तान के आवाम को यह सोचना होगा कि उसे तरक्की करनी है और दुनिया के साथ आगे बढ़ना है, या किसी ताकतवर देश की कठपुतली बनकर मरने और कटने के लिए तैयार रहना है, या फिर भूख से मरना है।
त्राल की चीख और इस्लामाबाद का उन्माद हमें आतंक के दो अलग-अलग, लेकिन गहरे तौर पर जुड़े हुए चेहरे दिखाते हैं। एक चेहरा उस गुमराह युवा का है जो अपनी गलती का एहसास होने पर भी मौत के शिकंजे से बच नहीं सका। दूसरा चेहरा उस उन्मादी भीड़ का है जो धर्म के नाम पर हिंसा और विनाश का आह्वान करती है। इन दोनों चेहरों के पीछे एक ही सच्चाई छिपी है – आतंकवाद न केवल निर्दोषों की जान लेता है, बल्कि उन लोगों को भी बर्बाद कर देता है जो इसे अपनाते हैं और उस देश को भी खोखला कर देता है जो इसे पनाह देता है। अब समय आ गया है कि पाकिस्तान का आवाम इस सच्चाई को पहचाने और आतंक के इस दलदल से बाहर निकलने का रास्ता तलाशे, ताकि उनके देश का भविष्य सुरक्षित और समृद्ध हो सके।


