“अगर आपके बच्चे के स्कूल बैग का वज़न कम है लेकिन आपके कंधों पर ज़िम्मेदारी का बोझ ज़्यादा है,अगर आपके बच्चे के खेल के मैदान में आप उससे ज़्यादा पसीना बहा देते हैं,और अगर होमवर्क लिखने से ज़्यादा नोटबुक सजाने का शौक आपको है… तो बधाई हो! आप हेलिकॉप्टर पेरेंट हैं।
लेखिका :- शीला पात्रो
(शिक्षिका व कवयित्री)
पे रेंटिंग आज के व्यस्त दौर में एक नई चुनौती बन कर उभरी है।ख़ासकर जब माता-पिता दोनों कामकाजी हों।संयुक्त परिवार में बच्चों के पालन-पोषण की ज़िम्मेदारी घर के बड़े-बुजुर्गों के पास रहती थी पर एकल परिवार में बच्चा पैदा करने से लेकर उनकी पेरेंटिंग तक की योजना बनानी पड़ती है।
बच्चा जब जन्म लेता है,तो केवल परिवार नहीं बढ़ता,बल्कि माता-पिता के जीवन की दिशा भी बदल जाती है।पालन-पोषण या पेरेंटिंग केवल बच्चे की ज़रूरतें पूरी करने का नाम नहीं है,बल्कि उसे जीवन जीने की कला सिखाने की प्रकिया भी है।
पेरेंटिंग सुनते ही लगता है-यह तो बहुत गंभीर विषय है!लेकिन सच कहें तो पेरेंटिंग कभी-कभी बच्चों से ज़्यादा पैरेंट्स का इम्तिहान लेती है।पहले पेरेंटिंग का मतलब था- भोजन, शिक्षा और संस्कार। लेकिन आज के समय में पेरेंटिंग सिर्फ जरूरतें पूरी करना नहीं बल्कि बच्चे की भावनात्मक, मानसिक और सामाजिक परवरिश का ध्यान रखना भी है।
आज माता-पिता से उम्मीद की जाती है कि वे बब्चों को पढ़ाई में सफल बनाने के साथ-साथ उन्हें आत्मविश्वासी, जिम्मेदार और संवेदनशील इंसान भी बनाएँ।
पेरेंटिंग या पालन-पोषण की मुख्य रूप से चार शैलियाँ होती हैं: आधिकारिक (Authoritative), सत्तावादी (Authoritarian), अनुमोदक (Permissive), और उपेक्षापूर्ण (Uninvolved)।
ये शैलियाँ बच्चों के विकास पर अलग-अलग प्रभाव डालती हैं और ये बच्चों की जरूरतों के प्रति माता-पिता की प्रतिक्रियाशीलता और उनके व्यवहार को नियंत्रित करने की प्रवृत्ति पर आधारित होती हैं।
इन चार मुख्य शैलियों के अलावा आधुनिक समय में कुछ और तरह की पैरेंटिंग भी चर्चित हैं, जैसे:• Helicopter Parenting (अत्यधिक नियंत्रण रखने वाली)
• Free-range Parenting (पूरी स्वतंत्रता देने वाली)
• Attachment Parenting (घनिष्ठ लगाव पर आधारित)
• Snowplow / Bulldozer Parenting (बच्चों के रास्ते से सारी कठिनाइयाँ हटा देने वाली।
लेकिन आज मैं जिस विषय पर चर्चा करने जा रही हूं वो है “हेलिकॉप्टर पेरेंटिंग”।
“अगर आपके बच्चे के स्कूल बैग का वज़न कम है लेकिन आपके कंधों पर ज़िम्मेदारी का बोझ ज़्यादा है,अगर आपके बच्चे के खेल के मैदान में आप उससे ज़्यादा पसीना बहा देते हैं,और अगर होमवर्क लिखने से ज़्यादा नोटबुक सजाने का शौक आपको है… तो बधाई हो! आप हेलिकॉप्टर पेरेंट हैं।
“सोचिए, आप क्रिकेट का मैच खेल रहे हैं और जैसे ही आप बैट घुमाते हैं, आपकी मम्मी स्टेडियम में माइक पकड़कर चिल्ला दें – ‘बेटा, बल्ला ऊपर मत उठाना, वैसे ही शॉट मारना जैसे घर पर सिखाया था!’…अगर ऐसा लगे तो समझ लीजिए यह मैच नहीं, बल्कि ‘हेलिकॉप्टर पेरेंटिंग’ का लाइव टेलीकास्ट है।
“हेलिकॉप्टर पेरेंटिंग” सुनने में किसी जासूसी फिल्म का नाम लगता है, लेकिन हकीकत में यह माता-पिता का एक खास स्टाइल है।इसमें माता-पिता अपने बच्चों के ऊपर ऐसे मंडराते रहते हैं जैसे हेलिकॉप्टर।वे बच्चे के हर काम में और हर निर्णय पर,हर पल नज़र गड़ाए रखते हैं।
बच्चा होमवर्क कर रहा है तो पास में खड़े रहना, दोस्त बनाने जा रहा है तो पहले उसकी दोस्ती की ‘पुलिस वेरिफिकेशन’ करना, और ऑनलाइन क्लास के दौरान नोट्स से ज़्यादा टीचर की आवाज़ पर कान लगाना – ये सब हेलिकॉप्टर पेरेंटिंग की क्लासिक पहचानें हैं।
अब सवाल यह है कि माता -पिता ऐसा क्यों करते हैं ?
शायद प्यार और चिंता,प्रतिस्पर्धा का डर या फिर कंट्रोल की आदत!माता-पिता बच्चों को हमेशा सुरक्षित रखना चाहते हैं उन्हें लगता है कि दुनिया बहुत मुश्किल है,इसलिए बच्चों को हमेशा” कवर” में रखना जरुरी है।जाने अनजाने हम अपने बच्चों की तुलना पड़ोस वाले शर्मा जी के बेटा या बेटी से करते हैं।वे सोचते हैं कि अगर वे हर छोटे से छोटे फैसले में शामिल रहेंगे, तो बच्चा गलतियां करने से बच जाएगा।
लेकिन हम अक्सर यह भूल जाते हैं कि ऐसी पालन पोषण शैली के कई नकारात्मक प्रभाव भी हो सकते हैं।इससे बच्चे आत्मनिर्भर नहीं बन पाते और उनका खुद पर विश्वास कम हो जाता है ।बच्चे खुद से फैसले लेने और उनके नतीजों को संभालने में असमर्थ हो जाते हैं।उन्हें हार और ना-नुकर का सामना करने की आदत नहीं होती,जिससे वे निराशा में आ जाते हैं।वे समस्याओं को खुद हल करना नहीं सीख पाते, क्योंकि माता-पिता हमेशा उनकी मदद करते हैं।हर चीज़ में “मम्मी- पापा से पूछना पड़ेगा” वाली आदत लग जाती है।
तो फिर हम क्या करें?हमें क्या करना चाहिए?अगर हम अपने बच्चों पर थोड़ा भरोसा करें और उन्हें आज़ादी दें,तो बच्चे खुद सीखेंगे,गलतियों से मज़बूत बनेंगे और अपनी उड़ान भरेंगे।बच्चे चाहते हैं कि मम्मी-पापा उनके साथ रहें, लेकिन हर पल उनके ऊपर हेलिकॉप्टर बनकर न मंडराएँ। इसलिए ज़रूरत पड़ने पर मदद करें, वरना बच्चों को खुद अपने पैराशूट से उड़ान भरने दें।
डॉ.गिल्बोआ कहते हैं ‘यह एक मुश्किल रेखा है–अपने बच्चों और उनके जीवन के साथ जुड़़े रहना,लेकिन इतना भी नहीं कि हम उनकी ज़रूरतों का अंदाज़ा ही भूल जाएँ।”
इसलिए माता- पिता ‘हेलिकॉप्टर’ की जगह “ड्रोन कैमरा” मोड अपनाएँ।यानी बच्चों को दूर से देखभाल करें ,लेकिन उन्हें उड़़ने की आज़ादी भी दें।
बच्चों की परवरिश हेलिकॉप्टर उड़ाने जैसी नहीं है कि हर समय उसके ऊपर मंडराते रहो, वरना पेट्रोल (या बैटरी) खत्म हो जाएगी। अगर माता-पिता ज़रा-सा भरोसा बच्चों पर रखें, तो बच्चे खुद अपनी उड़ान भरना सीख जाते हैं।
आख़िरकार, बच्चा भी यही चाहता है कि पिकनिक में वह खुद अपना सैंडविच बनाए, खुद अपनी क्रिकेट टीम चुने और कभी-कभी अपनी गलतियों से भी सीखे।
तो माता-पिता को चाहिए कि “हेलिकॉप्टर मोड” से बाहर निकलें और “पैराशूट मोड” अपनाएँ – यानी जब सचमुच ज़रूरत हो तभी कूदकर मदद करें।वरना बच्चा सोचेगा कि उसकी ज़़िंदगी तो एक एयरपोर्ट है और मम्मी-पापा हमेशा रनवे पर खड़े हैं!
पेरेंटिंग एक यात्रा है जिसमें धैर्य,समझ और प्यार की ज़रूरत होती है।हर बच्चा अनोखा है, इसलिए पेरेटिंग का कोई “परफेक्ट फार्मूला” नहीं हो सकता।लेकिन अगर माता-पिता बच्चों को भरोसा,आज़ादी और सही मार्गदर्शन दें,तो वे न केवल सफल बल्कि अच्छे इंसान भी बनेंगे।
आख़िरकार,पेरेंटिंग का असली मक़सद भी यही है कि बच्चे अपने पैरों पर खड़े होकर उड़ान भरें-और माता-पिता दूर से मुस्कुराकर उनका हौसला बढ़ाएँ।***