बद्री बाबू का निधन एक ऐसी शून्यता है जिसे भरा नहीं जा सकता है,उनके निधन से एक युग का अवसान हो गया. उस पीढ़ी के वे गोविंदपुर में अभी एक मात्र व्यक्ति थे जिन्होंने गोविंदपुर क़ो अपने संघर्ष औऱ परिश्रम से सींच कर जिले भर के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया था. पढ़िए आज उनके जीवन से जुड़े कुछ खास प्रसंग…….
आलेख :- विनोद आनंद

जीवन की शाश्वत यात्रा में कुछ व्यक्तित्व ऐसे होते हैं, जिनकी अनुपस्थिति मात्र से एक युग के अवसान का अनुभव होता है। बद्री बाबू, यानि बद्री प्रसाद सिंह, ऐसे ही एक विरले व्यक्तित्व थे। उनके निधन की खबर ने गोविंदपुर, धनबाद और उससे आगे भी एक शून्य पैदा कर दिया है। उनकी पीढ़ी के गिने-चुने लोग ही अब तक जीवित थे, और उनकी उपस्थिति बीते हुए वक्त के उन यादगार पलों की जीवंत गवाही थी, जिन्होंने गोविंदपुर जैसे छोटे से कस्बे को पूरे धनबाद जिले का ध्यान आकर्षित करने का गौरव दिलाया। बद्री बाबू सिर्फ एक व्यक्ति नहीं थे, बल्कि वे उस दौर की आत्मा थे, जिसके साक्षी अब हमारे बीच नहीं रहे।
एक बहुआयामी व्यक्तित्व:शिक्षक से राजनेता तक
बद्री बाबू ने अपने जीवन की शुरुआत धनबाद जिले में एक शिक्षक के रूप में की। बेसिक स्कूल गोविंदपुर में शिक्षक के तौर पर उन्होंने कई जिंदगियों को संवारा, ज्ञान का प्रकाश फैलाया। इसके बाद, उन्होंने प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी के रूप में भी अपनी सेवाएं दीं, जहाँ उनके प्रशासनिक कौशल और शिक्षा के प्रति समर्पण की झलक मिली। लेकिन बद्री बाबू का व्यक्तित्व केवल एक शिक्षक या अधिकारी तक सीमित नहीं था। वे एक राजनेता, पत्रकार और समाजसेवी के रूप में भी सक्रिय रहे, और इन सभी भूमिकाओं में उन्होंने गोविंदपुर को संवारने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका जीवन गोविंदपुर के विकास और सामाजिक उत्थान के प्रति उनके अटूट समर्पण का प्रमाण है।
भाजपा की नींव के पत्थर और उनका अटल सिद्धांत
बद्री बाबू का राजनीतिक सफर बेहद महत्वपूर्ण रहा है। उन्होंने इस क्षेत्र में भाजपा की बुनियाद को मजबूत करने और उसकी जमीन तैयार करने में अहम भूमिका निभाई। उनकी दूरदृष्टि और अथक प्रयासों ने भाजपा को गोविंदपुर में एक मजबूत आधार प्रदान किया। वे अविभाजित बिहार के पूर्व गृह राज्य मंत्री स्व. सत्यनारायण दुदानी जी के सहयोगी रहे। यह बात विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि सरकारी नौकरी में रहते हुए भी वे पक्के जनसंघी थे, और दुदानी जी के साथ राजनीतिक कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से भाग लेते थे।
उनकी सबसे बड़ी पहचान उनका सिद्धांतों के प्रति अडिग रहना था। मैंने प्रत्यक्ष रूप से देखा है कि वे कभी भी अपने सिद्धांत और अपनी सोच से समझौता नहीं करते थे। किसी बात पर अगर असहमति होती, तो वे बिना लाग-लपेट के अपना विरोध जता देते थे। उनकी यह साफगोई इतनी प्रभावशाली थी कि दुदानी जी भी इसके कायल थे। कई बातों पर असहमति के बावजूद, दुदानी जी और बद्री बाबू के बीच गहरा संबंध बना रहा, जो उनके सम्मान और पारस्परिक समझ का प्रतीक था।
यह दर्शाता है कि कैसे वैचारिक मतभेद भी गहरे मानवीय संबंधों को कमजोर नहीं कर सकते, जब दोनों पक्षों में ईमानदारी और सम्मान हो।
गोविंदपुर नागरिक समिति: आपातकाल की उपज-
गोविंदपुर में नागरिक समिति की स्थापना और उसके नीति निर्धारण में भी बद्री बाबू ने अहम भूमिका निभाई। संयोगवश, मुझे दुदानी जी और बद्री बाबू दोनों का स्नेह मिला। एक दिन, दोनों एक साथ बैठे थे और मैं भी उसी समय दुदानी जी के निवास पर पहुँचा, तो नागरिक समिति की चर्चा छिड़ गई। सत्यनारायण दुदानी जी ने बताया कि आपातकाल के दौरान जब पुलिस की लगातार कार्रवाई चल रही थी, और किसी स्थानीय समस्या को लेकर किसी राजनेता द्वारा संघर्ष करने पर भी उसे सरकार द्वारा बगावत माना जाने लगा था, उसी दौर में बद्री बाबू और राधिका प्रसाद साव जी की सलाह पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर गोविंदपुर नागरिक समिति का गठन किया गया था। यह समिति उस कठिन समय में स्थानीय समस्याओं के समाधान और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण मंच बन गई। यह बद्री बाबू की दूरदर्शिता और जनसेवा के प्रति उनके समर्पण का एक और उदाहरण था।
एक कुशल लेखक और पत्रकार: ‘आवाज’ से ‘अखबार’ तक
बद्री बाबू केवल एक कुशल वक्ता ही नहीं, बल्कि एक उत्कृष्ट लेखक भी थे। उन्हें पत्रकारिता का भी गहरा शौक था। अक्सर उनके लेख ‘आवाज’ नामक अखबार में प्रकाशित होते रहते थे, जिनमें वे कई गंभीर विषयों पर अपनी बेबाक राय रखते थे। उसी दौर में उन्होंने एक अखबार निकालने के लिए भी पंजीकरण के लिए आवेदन जिला जनसंपर्क कार्यालय में जमा किया था, जिसके प्रकाशक के रूप में दुदानी जी का नाम था। जब मैंने भी एक अखबार निकालने के लिए आवेदन जमा किया, तो संयोग से धनबाद जिले के जनसंपर्क कार्यालय में फाइल में उनका आवेदन भी देखा, जो दुदानी जी के साथ था। जब मैंने इस आवेदन की चर्चा की और अपने आवेदन के बारे में बताया, तो दुदानी जी और बद्री बाबू ने मुझे कहा कि “आज अखबार धूर्त और ब्लैकमेल करने वाले लोग ही चला सकते हैं, इसलिए मैंने इसमें दिलचस्पी नहीं ली।” उन्होंने मुझे कहा कि “तुम्हारा जो स्वभाव है, उसके हिसाब से तुम भी यह कार्य नहीं कर पाओगे।”
फिर भी, मैंने साहस किया और आज तक कोशिश कर रहा हूँ। यह बातचीत बद्री बाबू की यथार्थवादी सोच और पत्रकारिता के गिरते मूल्यों के प्रति उनकी चिंता को दर्शाती है।
व्यक्तिगत संबंध और अमिट छाप
बद्री बाबू का स्नेह और सहयोग मुझे हमेशा मिला। उन्होंने मेरे पत्रकारिता और लेखन कार्य की सराहना कर हमेशा मुझे प्रोत्साहित किया। मेरे साहस और मेरी स्वभाव की भी उन्होंने सराहना कर उत्साह बढ़ाया। उनके साथ मेरी कई यादें जुड़ी हैं, जो मेरे मानस पटल पर एक धरोहर बनकर अंकित हैं। उनका पुत्र और मेरे अनुज के समान अमरदीप सिंह आज पिताजी की विरासत को भाजपा नेता के रूप में काफी सक्रियता से आगे बढ़ा रहे हैं। यह देखकर संतोष होता है कि बद्री बाबू के आदर्शों और उनके काम को उनकी अगली पीढ़ी आगे बढ़ा रही है।
बद्री बाबू के निधन से मुझे बहुत मलाल है कि मैं जिला से बाहर रहने के कारण उनकी अंतिम यात्रा में नहीं पहुँच पाया। यह दुख हमेशा रहेगा कि मैं उस अंतिम क्षण में उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित नहीं कर सका, जिन्होंने मुझे इतना स्नेह और आशीर्वाद दिया।
आज बद्री बाबू जहाँ भी हैं, जैसे भी हैं, मेरी यही कामना है कि ईश्वर उन्हें अपने श्री चरणों में स्थान दे। उनकी हर यादें, उनके साथ बिताया हर पल, उनके द्वारा कही गई हर बात मेरे मानस पटल पर एक धरोहर बनकर है, जिसे कभी शब्दों में पिरोकर एक यादगार धरोहर के रूप में सामने लाने का प्रयास करूंगा। बद्री बाबू का जीवन एक प्रेरणा था, और उनका योगदान गोविंदपुर के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित रहेगा। वे एक युगपुरुष थे, जिनकी कमी हमेशा महसूस होगी।


