सालेह ने संयुक्त राज्य अमेरिका और व्यापक पश्चिमी देशों की भूमिका पर भी सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि पश्चिमी देशों ने पाकिस्तान को सहायता देना कभी बंद नहीं किया, भले ही इस्लामाबाद सक्रिय रूप से क्वेटा शूरा, हक्कानी नेटवर्क और यहां तक कि अल-कायदा जैसे आतंकवादी संगठनों की सहायता कर रहा था।
अ फगानिस्तान के अपदस्थ उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह ने एक गंभीर सवाल उठाया है, जिससे अंतरराष्ट्रीय समुदाय में पाकिस्तान को मिलने वाली आर्थिक सहायता पर बहस छिड़ गई है। सालेह ने आश्चर्य व्यक्त किया है कि पाकिस्तान को युद्ध के समय, विशेषकर भारत के साथ तनाव की स्थितियों में, अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों जैसे विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और एशियाई विकास बैंक से ऋण और अनुदान कैसे मिल जाते हैं। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि आतंकवाद का समर्थन करने के बावजूद पाकिस्तान पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाए जाते हैं।

पाकिस्तान को मिलती अंतरराष्ट्रीय मदद पर सवाल
अमरुल्लाह सालेह, जिन्हें पाकिस्तान के सबसे बड़े आलोचकों में से एक माना जाता है, ने हाल ही में पहलगाम हमले के बाद भारत की जवाबी कार्रवाई के दौरान IMF द्वारा पाकिस्तान को दी गई आर्थिक मदद का उल्लेख किया। हालांकि, भारत ने इस सहायता का कड़ा विरोध किया था। सालेह ने कहा, “ऐसा लगता है कि भारत के साथ चार दिनों के संघर्ष ने इन संस्थाओं से पाकिस्तान के लिए कुछ मौन स्वीकृति ला दी है।” उनका इशारा इस बात पर है कि ऐसे समय में जब पाकिस्तान युद्ध जैसी स्थिति में होता है, उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वित्तीय सहायता मिल जाती है, जबकि उसे आतंकवाद का समर्थन करने वाला देश माना जाता है।
पश्चिमी देशों की भूमिका पर प्रश्नचिह्न
सालेह ने संयुक्त राज्य अमेरिका और व्यापक पश्चिमी देशों की भूमिका पर भी सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि पश्चिमी देशों ने पाकिस्तान को सहायता देना कभी बंद नहीं किया, भले ही इस्लामाबाद सक्रिय रूप से क्वेटा शूरा, हक्कानी नेटवर्क और यहां तक कि अल-कायदा जैसे आतंकवादी संगठनों की सहायता कर रहा था।
उन्होंने इस बात पर भी हैरानी जताई कि पश्चिमी गठबंधन ने पाकिस्तान पर कभी कोई प्रतिबंध नहीं लगाया, यहां तक कि ओसामा बिन लादेन के पाकिस्तान की मुख्य सैन्य अकादमी के पास पाए जाने के बाद भी। सालेह ने पूछा, “कोई प्रतिबंध नहीं – यहां तक कि उस परिसर के मालिक पर भी नहीं जिसने अपनी संपत्ति अल-कायदा को किराए पर दी थी।
पाकिस्तान प्रतिबंधों के बावजूद कैसे छिपकर भागता है?” यह सवाल पाकिस्तान की जवाबदेही और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के पालन पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगाता है।
अमरुल्लाह सालेह: एक मुखर आलोचक
अमरुल्लाह सालेह एक प्रमुख अफगान राजनेता हैं, जिन्होंने फरवरी 2020 से अगस्त 2021 तक अफगानिस्तान के पहले उपराष्ट्रपति के रूप में कार्य किया। इससे पहले, वह 2018 से 2019 तक कार्यवाहक आंतरिक मंत्री और 2004 से 2010 तक राष्ट्रीय सुरक्षा निदेशालय (NDS) के प्रमुख थे।
सालेह अफगानिस्तान की कम्युनिस्ट सरकार के खिलाफ गृहयुद्ध के दौरान मुजाहिदीन के सदस्य रहे हैं। बाद में, वह देश के उत्तर-पूर्व में तालिबान विरोधी गठबंधन अहमद शाह मसूद के उत्तरी गठबंधन में शामिल हो गए।
खुफिया प्रमुख के रूप में सालेह की भूमिका 1997 में, सालेह ताजिकिस्तान के दुशांबे में अफगान दूतावास के अंदर उत्तरी गठबंधन के संपर्क कार्यालय के प्रमुख बने, जहाँ उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठनों और खुफिया एजेंसियों के साथ संपर्क स्थापित किया। NDS के प्रमुख के रूप में, सालेह ने तालिबान में घुसपैठ करने और ओसामा बिन लादेन का पता लगाने के प्रयासों का निर्देशन किया।
2010 में राष्ट्रपति हामिद करजई के साथ बिगड़ते संबंधों के कारण सालेह ने NDS से इस्तीफा दे दिया। इसके तुरंत बाद, उन्होंने लोकतंत्र समर्थक और तालिबान विरोधी राजनीतिक पार्टी बसेज-ए मिल्ली (“राष्ट्रीय आंदोलन”) की स्थापना की।
तालिबान और पाकिस्तान के मुखर आलोचक
मार्च 2017 में, सालेह दिसंबर 2018 में आंतरिक मामलों के कार्यवाहक मंत्री बने, लेकिन 2019 के राष्ट्रपति चुनाव में पहले उपराष्ट्रपति के लिए गनी के साथी बनने के लिए एक महीने से भी कम समय बाद इस्तीफा दे दिया। गनी के टिकट ने चुनाव जीता और सालेह 25 फरवरी 2020 को पहले उपराष्ट्रपति बने।
सालेह अफगानिस्तान में एक शक्तिशाली राजनीतिक व्यक्ति हैं, लेकिन तालिबान की हिट लिस्ट में शामिल होने के कारण वह अंडरग्राउंड जीवन जी रहे हैं। उन्हें तालिबान और पाकिस्तान का मुखर आलोचक माना जाता है। उनके ये सवाल अंतरराष्ट्रीय समुदाय को पाकिस्तान के प्रति अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर कर सकते हैं, खासकर आतंकवाद के वित्तपोषण और समर्थन के आरोपों के बावजूद उसे मिलने वाली निरंतर सहायता के संदर्भ में।
आगे की राह और संभावित प्रभाव
सालेह के इन बयानों से पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि विश्व बैंक, IMF और एशियाई विकास बैंक जैसे संस्थान इन सवालों का क्या जवाब देते हैं और क्या पाकिस्तान को भविष्य में मिलने वाली सहायता की शर्तों में कोई बदलाव आता है। इसके अलावा, पश्चिमी देशों को भी अपनी विदेश नीति और आतंकवाद से निपटने के दोहरे मापदंडों पर जवाब देना पड़ सकता है। यह मुद्दा क्षेत्रीय स्थिरता और आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक लड़ाई के लिए महत्वपूर्ण निहितार्थ रखता है।


