नई दिल्ली: भारत के सामने एक अभूतपूर्व समुद्री चुनौती खड़ी हो गई है। खुफिया जानकारी के अनुसार, चीन, तुर्किए और पाकिस्तान का गठजोड़ एक ऐसी दीर्घकालिक रणनीति पर काम कर रहा है जिसे विशेषज्ञ भारत की समुद्री सुरक्षा के लिए अब तक का सबसे बड़ा खतरा मान रहे हैं। यह त्रिपक्षीय सहयोग न केवल बयानबाजी तक सीमित है, बल्कि वास्तविक सैन्य और तकनीकी समर्थन के रूप में सामने आ रहा है, जैसा कि हाल ही में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान पाकिस्तान को मिली सहायता से स्पष्ट है।

भारत ने यह ऑपरेशन अपने दम पर अंजाम दिया, जबकि पाकिस्तान को चीन और तुर्किए से महत्वपूर्ण सैन्य और तकनीकी सहायता मिली, जिसने इस नई धुरी की गंभीरता को रेखांकित किया।
चीन का बेजोड़ नौसैनिक विस्तार:
दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना बनने की ओर
इस त्रिपक्षीय खतरे के केंद्र में चीन का तेजी से बढ़ता नौसैनिक बल है। बीजिंग अपनी नौसेना को बेजोड़ गति से बढ़ा रहा है, जिसका लक्ष्य 2040 तक दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे शक्तिशाली नौसेना बनना है। अनुमान है कि इस समय-सीमा तक चीन के पास 6 एयरक्राफ्ट करियर, 12 परमाणु पनडुब्बियां, 60 पारंपरिक पनडुब्बियां और 150 से अधिक अत्याधुनिक युद्धपोत होंगे। यह विशाल बेड़ा न केवल मात्रा में बल्कि गुणवत्ता में भी अत्याधुनिक होगा, जिसमें उन्नत स्टील्थ तकनीक, मिसाइल प्रणाली और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध क्षमताएं शामिल होंगी।
चीन ने अपने सैन्य नेटवर्क को ‘बेइदो’ सैटेलाइट सिस्टम के साथ पूरी तरह से एकीकृत कर लिया है। यह प्रणाली उसकी नौसेना को पूर्ण कमांड और नियंत्रण क्षमता प्रदान करती है, जिससे उसे वास्तविक समय की जानकारी, सटीक नेविगेशन और लक्ष्यीकरण क्षमताएं मिलती हैं। यह ‘ड्यूल पावर’ दृष्टिकोण, जहां सैन्य और वाणिज्यिक उद्देश्यों को एकीकृत किया जाता है, ग्वादर पोर्ट के माध्यम से स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। पाकिस्तान में स्थित यह रणनीतिक बंदरगाह चीन के लिए न केवल एक महत्वपूर्ण वाणिज्यिक केंद्र बन गया है, बल्कि हिंद महासागर में उसकी नौसैनिक उपस्थिति को मजबूत करने का एक महत्वपूर्ण ठिकाना भी है, जिससे वह भारत के पश्चिमी तट के करीब पहुंच गया है।
तुर्किए की महत्वाकांक्षी समुद्री योजनाएँ: क्षेत्रीय शक्ति से वैश्विक खिलाड़ी बनने की राह पर
चीन के साथ-साथ, तुर्किए भी अपनी नौसैनिक क्षमताओं को तेजी से उन्नत कर रहा है। अंकारा ने अपनी नौसेना को विमानवाहक पोत, स्टील्थ पनडुब्बियों, उन्नत सोनार प्रणालियों और अत्याधुनिक ड्रोन से लैस करने की महत्वाकांक्षी योजनाएं बनाई हैं। 2040 तक, तुर्किए का लक्ष्य भूमध्य सागर और काला सागर में एक प्रभावशाली समुद्री शक्ति बनना है, जो भविष्य में हिंद महासागर में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा सकता है। तुर्किए का यह विस्तार उसकी ‘ब्लू होमलैंड’ रणनीति का हिस्सा है, जिसके तहत वह अपने समुद्री हितों का विस्तार करना चाहता है। यह पाकिस्तान के साथ रक्षा सहयोग को गहरा कर रहा है, विशेष रूप से पनडुब्बी निर्माण और नौसैनिक प्रौद्योगिकी हस्तांतरण में।
पाकिस्तान की ‘चालाकी’: सीमित क्षमताओं के बावजूद रणनीतिक लाभ
भले ही पाकिस्तान की अपनी नौसैनिक क्षमताएं सीमित हों, लेकिन वह चीन और तुर्किए के साथ अपने रणनीतिक गठजोड़ का अधिकतम लाभ उठा रहा है। पाकिस्तान वायु-स्वतंत्र प्रणोदन (AIP) पनडुब्बियों के अधिग्रहण और अपनी परमाणु पनडुब्बी क्षमताओं को विकसित करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। AIP पनडुब्बियां उन्हें लंबे समय तक पानी के नीचे रहने और पता लगने से बचने की क्षमता देती हैं, जिससे भारत के लिए उनका पता लगाना मुश्किल हो जाता है। इसके अलावा, पाकिस्तान की ‘सेकंड-स्ट्राइक’ परमाणु क्षमता, जो मुख्य रूप से समुद्री परमाणु पनडुब्बियों पर आधारित होगी, भारत के लिए एक गंभीर रणनीतिक चुनौती पेश करेगी। यह गठजोड़ पाकिस्तान को अत्याधुनिक नौसैनिक प्रौद्योगिकी तक पहुंच प्रदान कर रहा है, जिसे वह सामान्य रूप से हासिल नहीं कर पाता।
भारत बनाम त्रिपक्षीय गठजोड़: एक गंभीर शक्ति असंतुलन
2040 तक, इन तीनों देशों – चीन, तुर्किए और पाकिस्तान – के पास सामूहिक रूप से 80 से अधिक पनडुब्बियां, 7 से अधिक एयरक्राफ्ट करियर और 200 से अधिक सतही युद्धपोत होंगे। यह आंकड़े सीधे-सीधे भारत की सामुद्रिक शक्ति को चुनौती देते हैं।
इसके विपरीत, भारतीय नौसेना, जो वर्तमान में सीमित पनडुब्बियों के साथ काम कर रही है, को 2040 तक केवल 24 पनडुब्बियों तक पहुंचने की उम्मीद है। यह संख्या तीनों देशों के सामूहिक बेड़े की तुलना में काफी कम है। यह असंतुलन भारतीय नौसेना की ‘सेकंड-स्ट्राइक’ क्षमता को गंभीर रूप से कमजोर कर सकता है, खासकर हिंद महासागर में।
‘सेकंड-स्ट्राइक’ क्षमता, जो दुश्मन के पहले परमाणु हमले के बाद भी जवाबी हमला करने की क्षमता है, भारत की परमाणु निवारक रणनीति का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है।
पनडुब्बियों की कमी इस क्षमता को खतरे में डाल सकती है। इसके अलावा, विवादित क्षेत्रों में, जैसे कि दक्षिण चीन सागर और हिंद महासागर के कुछ हिस्सों में, भारत की स्वतंत्र रूप से कार्य करने की क्षमता भी प्रभावित हो सकती है।
भारत की तैयारी: समय की मांग
इस उभरते खतरे का मुकाबला करने के लिए विशेषज्ञों ने भारत के लिए कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं:
अंडमान-निकोबार कमांड का सुदृढ़ीकरण:
भारत को अंडमान-निकोबार कमांड को एक पूर्ण ऑपरेशनल स्ट्राइक नोड में बदलने की तत्काल आवश्यकता है। हिंद महासागर में भारत की रणनीतिक स्थिति को देखते हुए, यह कमांड किसी भी संभावित शत्रुतापूर्ण गतिविधि का जवाब देने के लिए एक महत्वपूर्ण अग्रिम चौकी के रूप में कार्य कर सकता है। इसमें उन्नत निगरानी प्रणाली, लंबी दूरी की मिसाइलें और अतिरिक्त नौसैनिक संपत्तियों की तैनाती शामिल होनी चाहिए।
युद्ध प्रणालियों का स्वदेशीकरण और आत्मनिर्भरता:
भारत को अपनी युद्ध प्रणालियों के स्वदेशीकरण की प्रक्रिया को तेज करना चाहिए। विदेशी निर्भरता को कम करना न केवल लागत प्रभावी होगा, बल्कि भारत को अपनी सुरक्षा आवश्यकताओं के अनुरूप विशिष्ट रूप से डिजाइन किए गए और अनुकूलित हथियार प्रणालियों को विकसित करने में भी सक्षम बनाएगा। इसमें पनडुब्बी निर्माण, उन्नत रडार और सोनार प्रौद्योगिकी, और मिसाइल प्रणालियों पर विशेष ध्यान देना चाहिए। ‘मेक इन इंडिया’ पहल को रक्षा क्षेत्र में और अधिक मजबूती से लागू करने की आवश्यकता है।
पनडुब्बी बेड़े का त्वरित विस्तार:
भारत को अपनी पनडुब्बी बेड़े की संख्या को 2040 तक 24 से काफी अधिक करने का लक्ष्य रखना चाहिए। इसमें पारंपरिक और परमाणु पनडुब्बियों दोनों का संतुलन होना चाहिए। परमाणु पनडुब्बियां लंबी दूरी तक चलने और लंबे समय तक पानी के नीचे रहने की क्षमता प्रदान करती हैं, जो हिंद महासागर में भारत की उपस्थिति और निवारक क्षमता को बढ़ाएगी।
खुफिया और निगरानी क्षमता में वृद्धि:
दुश्मन की गतिविधियों का समय पर पता लगाने के लिए उन्नत खुफिया, निगरानी और टोही (ISR) क्षमताओं में निवेश आवश्यक है। इसमें समुद्री गश्ती विमान, उपग्रह निगरानी और मानव रहित समुद्री वाहनों का उपयोग शामिल है।
अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी का विस्तार:
भारत को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में समान विचारधारा वाले देशों, जैसे कि क्वाड के सदस्य (संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) और फ्रांस, यूनाइटेड किंगडम जैसे यूरोपीय शक्तियों के साथ अपनी नौसैनिक साझेदारी को गहरा करना चाहिए। संयुक्त अभ्यास, सूचना साझाकरण और रक्षा प्रौद्योगिकी सहयोग इस खतरे का मुकाबला करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
आर्थिक शक्ति का लाभ उठाना:
एक मजबूत अर्थव्यवस्था सैन्य शक्ति को बनाए रखने के लिए आवश्यक संसाधनों को प्रदान करती है। भारत को अपनी आर्थिक वृद्धि को जारी रखना चाहिए और रक्षा व्यय को बढ़ाना चाहिए ताकि वह अपनी नौसेना को आवश्यक संसाधनों और प्रौद्योगिकी के साथ लैस कर सके।
कुल मिलाकर, चीन-तुर्किए-पाकिस्तान की यह बढ़ती समुद्री धुरी भारत के लिए एक गंभीर और बहुआयामी चुनौती पेश करती है। इस खतरे का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने के लिए भारत को न केवल अपनी नौसैनिक क्षमताओं को तेजी से बढ़ाना होगा, बल्कि एक व्यापक रणनीतिक दृष्टिकोण अपनाना होगा जिसमें कूटनीति, खुफिया जानकारी और मजबूत अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी शामिल हो। यह समय है जब भारत अपनी समुद्री सुरक्षा के लिए एक ठोस और दूरदर्शी योजना पर काम करे ताकि भविष्य की चुनौतियों का सामना किया जा सके।


