जिम्बाब्वे के सामने एक जटिल चुनौती है। उन्हें न केवल हाथियों की बढ़ती आबादी को प्रबंधित करना है, बल्कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से भी निपटना है, मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करना है, और साथ ही अपनी अंतरराष्ट्रीय छवि को भी बनाए रखना है। इस तरह के फैसले निस्संदेह दर्दनाक और विवादास्पद होते हैं, लेकिन जिम्बाब्वे के अधिकारी यह दावा कर रहे हैं कि वे पारिस्थितिकी तंत्र और स्थानीय समुदायों की रक्षा के लिए आवश्यक हैं।
ए क तरफ जहाँ पूरी दुनिया में जंगल के जीवों को बचाने की मुहिम छिड़ी हुई है, और वन्यजीव संरक्षण संगठन तथा सरकारें मिलकर जंगली जानवरों का कुनबा बढ़ाने की योजनाओं पर काम कर रही हैं, वहीं अफ्रीकी देश जिम्बाब्वे से एक हैरान कर देने वाली खबर सामने आई है। यहाँ लगभग 50 हाथियों को मारने का फरमान जारी किया गया है। यह फरमान केवल हाथियों को मारने तक सीमित नहीं है, बल्कि इन्हें मारने के बाद इनका मांस स्थानीय समुदायों के बीच वितरित किया जाएगा और हाथी दांत सरकार को सौंप दिए जाएंगे। इस कड़े और विवादित फैसले के पीछे क्या वजह है, आइए इस पर विस्तार से चर्चा करते हैं।

सेव वैली कंजर्वेंसी: हाथियों की बढ़ती संख्या का दबाव
यह फैसला जिम्बाब्वे के सेव वैली कंजर्वेंसी में लिया गया है। वन्यजीव अधिकारियों के मुताबिक, इस निजी अभ्यारण्य में हाथियों की संख्या इतनी ज्यादा हो गई है कि इससे पूरे ईको सिस्टम पर गंभीर दबाव पड़ रहा है। यह स्थिति मानव-वन्यजीव संघर्ष के खतरे को भी बढ़ा रही है, जिससे इंसानों और हाथियों दोनों के लिए खतरा पैदा हो रहा है।
जिम्बाब्वे पार्क और वन्यजीव प्रबंधन प्राधिकरण
(ZimParks) ने इस गंभीर स्थिति पर विस्तार से जानकारी दी है। उनके अनुसार, वर्तमान में इस रिजर्व के भीतर लगभग 2,550 हाथी रह रहे हैं, जबकि इसकी पारिस्थितिक क्षमता (ecological capacity) केवल 800 हाथियों की है। यानी, यह रिजर्व अपनी क्षमता से तीन गुना से भी अधिक हाथियों का बोझ उठा रहा है। इस अत्यधिक संख्या के कारण वनस्पति और जल संसाधनों पर भारी दबाव पड़ रहा है, जिससे अन्य वन्यजीव प्रजातियों के अस्तित्व पर भी खतरा मंडरा रहा है।
पारिस्थितिकी तंत्र और समुदायों की रक्षा के लिए ‘अत्यावश्यक’ कदम
इस फैसले को पारिस्थितिकी तंत्र और आसपास के समुदायों की रक्षा के लिए ‘अत्यावश्यक’ बताया गया है। जब हाथियों की संख्या उनकी क्षमता से अधिक हो जाती है, तो वे अपने भोजन और पानी की तलाश में आसपास के खेतों और मानव बस्तियों में घुस जाते हैं। इससे फसलों का भारी नुकसान होता है, स्थानीय लोगों की आजीविका प्रभावित होती है, और कभी-कभी जानलेवा हमले भी होते हैं। ऐसे में, यह तर्क दिया जा रहा है कि हाथियों की संख्या को नियंत्रित करना न केवल पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन के लिए आवश्यक है, बल्कि स्थानीय समुदायों की सुरक्षा और कल्याण के लिए भी महत्वपूर्ण है।
मांस का वितरण और हाथी दांत का भविष्य
इस प्रक्रिया के तहत मारे गए हाथियों का मांस स्थानीय समुदायों के बीच बांट दिया जाएगा। यह कदम न केवल भोजन उपलब्ध कराएगा बल्कि समुदाय को इस संरक्षण प्रयास में भागीदार बनाने का भी एक तरीका हो सकता है। हालांकि, यह पहलू भी विवादित हो सकता है, क्योंकि कुछ लोग इसे वन्यजीवों के प्रति क्रूरता के रूप में देख सकते हैं।
वहीं, इन जानवरों से प्राप्त हाथी दांत सरकार को सौंप दिए जाएंगे। हाथी दांत के व्यापार पर दुनियाभर में लगे बैन की वजह से जिम्बाब्वे को अपने हाथी दांत बेचने की अनुमति नहीं है। यह एक वैश्विक मुद्दा है जो अवैध शिकार और हाथी दांत के व्यापार को रोकने के लिए लगाया गया है। जिम्बाब्वे जैसे देशों के लिए, जहाँ हाथियों की बड़ी आबादी है, यह एक आर्थिक चुनौती भी है। वे हाथी दांत से राजस्व अर्जित नहीं कर सकते, जबकि उनकी देखरेख में भारी खर्च आता है।
पिछले प्रयास और उनकी अपर्याप्तता
अधिकारियों ने पिछले पांच वर्षों में हाथियों की संख्या के दबाव को कम करने की कोशिश की है। इस दौरान लगभग 200 हाथियों को दूसरे पार्कों में स्थानांतरित किया गया है। हालांकि, ये प्रयास पर्याप्त नहीं रहे हैं और हाथियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। हाथियों को स्थानांतरित करना एक जटिल और महंगा ऑपरेशन होता है, और सभी हाथियों को स्थानांतरित करना संभव नहीं है।
जिम्बाब्वे: हाथियों का दूसरा सबसे बड़ा घर
जिम्बाब्वे दुनिया में हाथियों की आबादी का दूसरा सबसे बड़ा घर है, बोत्सवाना के बाद। यह दर्शाता है कि यह देश हाथी संरक्षण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हालांकि, हाथियों की इतनी बड़ी आबादी को प्रबंधित करना एक बड़ी चुनौती है, खासकर जब जलवायु परिवर्तन और सूखे जैसी स्थितियां हालात को और खराब कर देती हैं।
हाल के दिनों में, जलवायु में जो बदलाव देखने को मिला है और सूखे की जो स्थिति बनी है, उससे हालात और भी विकट हो गए हैं। पानी और भोजन की कमी के कारण हाथी मानव बस्तियों में घूमने के लिए मजबूर हो रहे हैं, जिससे मानव-वन्यजीव संघर्ष बढ़ रहा है।
बार-बार उठाया जाने वाला कठोर कदम
पिछले कुछ वर्षों में यह दूसरी बार है, जब जिम्बाब्वे ने इन हालातों से बचने के लिए हाथियों को मारने का सहारा लिया है। यह दर्शाता है कि देश को हाथियों की बढ़ती आबादी और प्राकृतिक संसाधनों पर उनके प्रभाव को प्रबंधित करने में कितनी गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
2024 का सूखा और 200 हाथियों का मारा जाना
2024 में जिम्बाब्वे में ऐतिहासिक सूखा पड़ा था, और उस दौरान 200 हाथियों को मारने की अनुमति दी गई थी। 1988 के बाद ऐसा पहली बार हुआ था कि इतनी बड़ी संख्या में हाथियों को मारा गया था। यह पिछले साल का निर्णय भी काफी विवादास्पद रहा था।
विवाद और आलोचना
वन्यजीवों और पर्यटन से जुड़े लोगों का तर्क है कि हाथियों को मारना देश की छवि को नुकसान पहुंचा सकता है। जिम्बाब्वे एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है, और वन्यजीव सफारी यहाँ के पर्यटन उद्योग का एक बड़ा हिस्सा है। इस तरह के कठोर फैसले देश की वन्यजीव संरक्षण प्रतिबद्धता पर सवाल उठा सकते हैं और पर्यटन को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं। इसके साथ ही, वन्यजीवों के संरक्षण से जुड़ी कोशिशों को भी कमजोर कर सकता है। कई अंतरराष्ट्रीय संरक्षण समूह इस तरह के “क्यूलिंग” (culling) कार्यक्रमों का विरोध करते हैं और हाथियों की आबादी को प्रबंधित करने के लिए वैकल्पिक, अधिक मानवीय तरीकों की वकालत करते हैं, जैसे कि गर्भनिरोधक या बड़े पैमाने पर स्थानांतरण।
आगे की राह: एक जटिल चुनौती
जिम्बाब्वे के सामने एक जटिल चुनौती है। उन्हें न केवल हाथियों की बढ़ती आबादी को प्रबंधित करना है, बल्कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से भी निपटना है, मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करना है, और साथ ही अपनी अंतरराष्ट्रीय छवि को भी बनाए रखना है। इस तरह के फैसले निस्संदेह दर्दनाक और विवादास्पद होते हैं, लेकिन जिम्बाब्वे के अधिकारी यह दावा कर रहे हैं कि वे पारिस्थितिकी तंत्र और स्थानीय समुदायों की रक्षा के लिए आवश्यक हैं।
यह देखना होगा कि यह फैसला दीर्घकालिक रूप से क्या प्रभाव डालता है और क्या जिम्बाब्वे हाथियों की आबादी को प्रबंधित करने के लिए भविष्य में अन्य, अधिक टिकाऊ और मानवीय समाधान ढूंढ पाएगा। वैश्विक समुदाय को भी इस मुद्दे पर जिम्बाब्वे के साथ मिलकर काम करने और समाधान खोजने में मदद करने की आवश्यकता है, ताकि वन्यजीव संरक्षण के लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके और मानव-वन्यजीव सह-अस्तित्व सुनिश्चित किया जा सके। यह मुद्दा एक बार फिर इस बात पर प्रकाश डालता है कि संरक्षण के प्रयास कितने जटिल हो सकते हैं, खासकर जब उन्हें सीमित संसाधनों और गंभीर पर्यावरणीय चुनौतियों के साथ जोड़ा जाता है।


