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सम्पादकीय :-पाकिस्तान:आतंकवाद और खोखला लोकतंत्र के बीच अपने देश की जनता को भी देता रहा धोखा

ByBinod Anand

May 12, 2025

विनोद आनंद

ज पाकिस्तान विश्व के सबसे बदनाम देशों में शुमार हो चुका है। आतंकवाद के पोषण और प्रसार के केंद्र के रूप में इसकी छवि वैश्विक स्तर पर धूमिल हो चुकी है। यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति उस देश के लिए और भी अधिक त्रासद है, जिसका जन्म एक ऐसे ऐतिहासिक विभाजन की त्रासदी में हुआ था जिसे स्वतंत्र भारत के राजनेता दूरदर्शिता से समझ नहीं सके।

1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ, तो ब्रिटिश साम्राज्य की विभाजनकारी नीतियों ने उपमहाद्वीप को तीन टुकड़ों में बाँट दिया – भारत, पाकिस्तान और बर्मा। अंग्रेजों की यह चाल दूरगामी परिणामों वाली थी। वे भलीभांति जानते थे कि यदि अखंड भारत एक शक्तिशाली और स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में एकजुट रहता है, तो एशिया में एक नई महाशक्ति का उदय होगा, जो वैश्विक शक्ति संतुलन को बदल देगा।इसी कूटनीतिक दूरदर्शिता के तहत, उन्होंने पहले जाति और धर्म के जहर को बोया और फिर उसी आधार पर भारत को विभाजित कर दिया।

ब्रिटिश साम्राज्य तो अपना उद्देश्य साधने में सफल रहा, लेकिन इस विभाजन का सबसे दुखद पहलू यह रहा कि पाकिस्तान और बर्मा में एक स्थिर और मजबूत लोकतंत्र स्थापित नहीं हो सका। दोनों ही देशों में, चुनी हुई सरकारों को सैन्य हस्तक्षेपों का सामना करना पड़ा, जिसके कारण न तो अपेक्षित आर्थिक और सामाजिक विकास हो सका और न ही राजनीतिक स्थिरता आ सकी।

पाकिस्तान के संदर्भ में यह स्थिति और भी गंभीर रही, जहाँ सत्ता का संघर्ष मध्ययुगीन मुस्लिम शासकों की बर्बर परंपराओं को दोहराता रहा – भाई की हत्या, पिता को कैद और सत्ता हथियाने के लिए निरंतर षडयंत्र और हिंसा।

आजादी के बाद से पाकिस्तान में यही सिलसिला जारी रहा। लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकारों को सेना ने बार-बार अपदस्थ किया, संविधान को निलंबित किया और अपने मनमाने तरीके से शासन चलाया। जनरल अयूब खान (1958-1969), जनरल याह्या खान (1969-1971), जनरल जिया उल हक (1977-1988) और जनरल परवेज़ मुशर्रफ (1999-2008) के सैन्य हस्तक्षेपों ने देश के लोकतांत्रिक ढांचे को बुरी तरह से कमजोर कर दिया।

इन निरंकुश तानाशाहों के शासनकाल में पाकिस्तान एक मोहरे की तरह इस्तेमाल होता रहा। अपने राजनीतिक विरोधियों को फांसी पर लटका देना या उनकी हत्या करवा देना एक आम बात हो गई थी। जुल्फिकार अली भुट्टो और परवेज मुशर्रफ को फांसी दी गई, बेनजीर भुट्टो की हत्या कर दी गई, और आज इमरान खान जैसे लोकप्रिय नेता जेल में यंत्रणाएं झेल रहे हैं।

जनरल याह्या खान जैसे तानाशाहों ने तो देश के संविधान को निलंबित कर सैन्य विद्रोह के माध्यम से पाकिस्तान को धार्मिक कट्टरता की ओर धकेल दिया। उस दौर में वे कथित तौर पर पाकिस्तान को मुसलमानों के लिए एक पवित्र भूमि और दुनिया भर के मुसलमानों का हितैषी बताते रहे, जबकि वास्तविकता यह थी कि जितना मुसलमानों का खून पाकिस्तान में बहाया गया, उतना शायद ही किसी अन्य मुस्लिम देश में बहाया गया हो। बलूचिस्तान के स्वघोषित प्रधानमंत्री नयला कादरी बलोच के शब्दों में कहें तो पाकिस्तान ने दुनिया में सबसे ज्यादा मुसलमानों की हत्या की है। यह एक कड़वा सच है कि तानाशाह याह्या खान के शासनकाल में एक ही दिन में हजारों फिलिस्तीनियों की बर्बरतापूर्वक हत्या की गई, लगभग दो लाख बलूचियों को मौत के घाट उतारा गया और तीस लाख बांग्लादेशियों का नरसंहार किया गया, जिसके कारण बांग्लादेश को मुक्ति संग्राम के बाद अलग होना पड़ा।
आज बलूचिस्तान भी उसी राह पर है।

यह विडंबना ही है कि शेख हसीना के नेतृत्व में बांग्लादेश एक मजबूत और प्रगतिशील राष्ट्र के रूप में उभर रहा था, जहाँ सभी वर्ग और समुदाय विकास की राह पर साथ चल रहे थे। लेकिन दुर्भाग्य से, बांग्लादेश एक बार फिर पाकिस्तान के जाल में फंसता दिख रहा है। कट्टरपंथी ताकतों के बढ़ते प्रभाव के कारण, बांग्लादेश आज पाकिस्तान और चीन के हाथों का खिलौना बनता जा रहा है – उसी पाकिस्तान के हाथों का खिलौना जिसने तीस लाख बांग्लादेशियों की हत्या करवाई थी, जो आज आतंकवाद की फैक्ट्री चला रहा है, जहाँ के लोग भूख और गरीबी से त्रस्त हैं, और जहाँ अशिक्षा और धर्म के नाम पर खूनखराबे की राजनीति जारी है।

जो लोग कथित तौर पर इस्लाम के शुभचिंतक बनते हैं और अल्लाह के नाम पर मुसलमानों की रहनुमाई का दावा करते हैं, वे उस देश के हाथों का खिलौना बने हुए हैं जिसने अपने ही देश के मुसलमानों पर अत्याचार कर उनका जीवन नारकीय बना दिया है।

अब भारत के कुछ पाकिस्तान परस्त लोगों को भी आइना दिखाना जरूरी है, जो ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगाते हैं और पाकिस्तान के उग्रवादी संगठनों के साथ मिलकर हत्या और आतंक के सहभागी बनते हैं। उन्हें यह समझना चाहिए कि भारत-पाक विभाजन के समय जो मुसलमान भारत छोड़कर पाकिस्तान गए, वे आज न घर के रहे न घाट के। आज भी पाकिस्तान में उन्हें ‘मुहाजिर’ कहकर दोयम दर्जे का नागरिक माना जाता है और उनके साथ अत्याचार होता है। इसलिए यह समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि पाकिस्तान न तो मुसलमानों का शुभचिंतक है और न ही इस्लाम का। बल्कि यह एक ऐसा देश है जो इस्लाम के नाम पर आतंकवाद फैलाकर इस्लाम को बदनाम कर रहा है।

इसलिए, तेजी से विकास की ओर बढ़ रही दुनिया के साथ कदमताल मिलाने के लिए पाकिस्तान के लोगों को अब यह सोचना होगा कि उन्हें दुनिया की आधुनिक तकनीक, विकास, शिक्षा, सभ्यता और प्रगति को अपनाना है या फिर दुनिया में सबसे पीछे रहना है।
आज पाकिस्तान में गरीबी, भुखमरी और अभाव से लोग दम तोड़ रहे हैं, लेकिन उनकी सरकार सत्ता में बने रहने के लिए आतंकवाद को बढ़ावा देने, आपसी हत्याओं और पड़ोसी देशों को अस्थिर करने की ईर्ष्यालु राजनीति में व्यस्त है। यह एक ऐसा दुष्चक्र है जिससे पाकिस्तान को बाहर निकलना होगा, यदि वह वास्तव में एक शांतिपूर्ण और समृद्ध भविष्य की आकांक्षा रखता है। उसे अपनी प्राथमिकताओं को बदलना होगा, आतंकवाद का समर्थन बंद करना होगा, अपने नागरिकों की मूलभूत जरूरतों को पूरा करना होगा और शिक्षा एवं विकास पर ध्यान केंद्रित करना होगा। तभी पाकिस्तान दुनिया में अपना खोया हुआ सम्मान वापस पा सकता है और एक प्रगतिशील राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान बना सकता है।

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