पाकिस्तान के इस अप्रत्याशित कदम के पीछे केवल सैन्य दबाव ही एकमात्र कारण नहीं है। पाकिस्तान की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था भी एक महत्वपूर्ण कारक है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से हाल ही में प्राप्त एक अरब डॉलर का ऋण, जो कि भारत के कड़े विरोध के बावजूद मिला, पाकिस्तान के लिए जीवनदान के समान है। ऐसे में, पाकिस्तान के लिए यह जोखिम भरा होगा कि वह ऐसी किसी भी गतिविधि में शामिल हो जिससे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की आशंकाएं सच साबित हों और भविष्य में उसे वित्तीय सहायता मिलनी बंद हो जाए।
आलेख :-विनोद आनंद

भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम की घोषणा, दक्षिण एशियाई भू-राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। सतही शांति की इस चादर के नीचे, पाकिस्तान की एक ऐसी विवशता छिपी है जिसके ताने-बाने में भारत की सैन्य दृढ़ता, उसकी चरमराती अर्थव्यवस्था और अंतर्राष्ट्रीय दबाव जैसे कई जटिल धागे आपस में गुंथे हुए हैं। पहलगाम में हुए कायराना आतंकी हमले के बाद भारत की त्वरित और निर्णायक सैन्य प्रतिक्रिया ने इस संघर्षविराम की नींव रखी। नियंत्रण रेखा (LoC) पर आतंकियों को मुंहतोड़ जवाब देने के साथ-साथ सीमा पार आतंकी ठिकानों पर की गई लक्षित कार्रवाई ने पाकिस्तान को स्पष्ट संदेश दिया कि भारत अब आतंकवाद को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करेगा।
भारतीय सेना के आंकड़ों के अनुसार, इस जवाबी कार्रवाई में पाकिस्तान के सैन्य प्रतिष्ठानों को भारी क्षति पहुंची है। एयरफील्ड्स और वायु रक्षा प्रणालियों का नुकसान न केवल पाकिस्तान की तात्कालिक सैन्य क्षमता को कमजोर करता है, बल्कि भविष्य की सैन्य तैयारियों पर भी एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगाता है। यह स्पष्ट हो गया कि पाकिस्तान का पारंपरिक सैन्य प्रतिरोध भारत की आक्रामक रणनीति के सामने बौना साबित हो रहा है। भारत की यह सैन्य बढ़त पाकिस्तान को अपनी रणनीतिक गहराई पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर करती है।
हालांकि, पाकिस्तान के इस अप्रत्याशित कदम के पीछे केवल सैन्य दबाव ही एकमात्र कारण नहीं है। पाकिस्तान की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था भी एक महत्वपूर्ण कारक है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से हाल ही में प्राप्त एक अरब डॉलर का ऋण, जो कि भारत के कड़े विरोध के बावजूद मिला, पाकिस्तान के लिए जीवनदान के समान है। ऐसे में, पाकिस्तान के लिए यह जोखिम भरा होगा कि वह ऐसी किसी भी गतिविधि में शामिल हो जिससे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की आशंकाएं सच साबित हों और भविष्य में उसे वित्तीय सहायता मिलनी बंद हो जाए। आर्थिक दिवालियापन के कगार पर खड़े पाकिस्तान के लिए अंतर्राष्ट्रीय समर्थन अत्यंत महत्वपूर्ण है।
भारत ने भी कूटनीतिक रूप से पाकिस्तान पर दबाव बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। भारत का यह स्पष्ट रुख कि वह पाकिस्तान के किसी भी भविष्य के आतंकी कृत्य को ‘युद्ध की कार्रवाई’ मानेगा, यह एक शक्तिशाली रणनीतिक बयान था। परमाणु हथियारों की धमकी के बावजूद भारत का अडिग रवैया और त्वरित जवाबी कार्रवाई की तत्परता ने पाकिस्तान के नीति निर्माताओं को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि किसी भी दुस्साहस का परिणाम विनाशकारी हो सकता है। भारत ने यह स्पष्ट कर दिया कि वह किसी भी गीदड़भभकी में आने वाला नहीं है और अपनी संप्रभुता की रक्षा के लिए हर संभव कदम उठाने को तैयार है।
विश्लेषकों का मानना है कि पाकिस्तान का यह संघर्षविराम का फैसला उसकी रणनीतिक विवशता का परिणाम है। सैन्य रूप से कमजोर, आर्थिक रूप से संकटग्रस्त और अंतर्राष्ट्रीय दबाव से घिरा पाकिस्तान के पास सीमित विकल्प ही बचे थे। संघर्षविराम की घोषणा करके, पाकिस्तान ने न केवल तात्कालिक सैन्य तनाव को कम करने का प्रयास किया है, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के सामने एक जिम्मेदार राष्ट्र की छवि पेश करने की भी कोशिश की है, ताकि आर्थिक सहायता की उम्मीद बनी रहे। यह एक रणनीतिक चाल हो सकती है, जिसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय आलोचना को कम करना और कुछ राहत प्राप्त करना है।
हालांकि, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि यह संघर्षविराम कितना टिकाऊ साबित होता है। पाकिस्तान के भीतर मौजूद कट्टरपंथी तत्व और अस्थिर राजनीतिक परिदृश्य इसे कमजोर कर सकते हैं। भारत को इस क्षणिक शांति से संतुष्ट नहीं होना चाहिए और सीमा पार आतंकवाद पर अपनी कड़ी निगरानी जारी रखनी होगी। पाकिस्तान को यह स्पष्ट संदेश देना होगा कि संघर्ष विराम केवल तभी टिकाऊ रहेगा जब वह अपनी धरती से आतंकवाद के बुनियादी ढांचे को नष्ट करने के लिए ठोस और सत्यापन योग्य कदम उठाएगा।
निष्कर्षतः, भारत और पाकिस्तान के बीच यह संघर्षविराम पाकिस्तान की मजबूरी का एक स्पष्ट प्रमाण है, जिसमें भारत की सैन्य शक्ति, पाकिस्तान की कमजोर अर्थव्यवस्था और अंतर्राष्ट्रीय दबाव जैसे कई कारकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह घटनाक्रम दक्षिण एशिया की भू-राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ है, जो भारत की बढ़ती रणनीतिक शक्ति और पाकिस्तान की कमजोर होती स्थिति को दर्शाता है। हालांकि, इस शांति की स्थिरता और दीर्घकालिक प्रभाव का आकलन करना अभी बाकी है। भारत को इस अवसर का उपयोग पाकिस्तान पर आतंकवाद के खिलाफ स्थायी और विश्वसनीय कार्रवाई करने के लिए दबाव बनाने के लिए करना चाहिए, ताकि इस क्षेत्र में स्थायी शांति स्थापित की जा सके। यह संघर्षविराम भारत के लिए एक रणनीतिक जीत है, लेकिन सतर्कता और निरंतर दबाव ही भविष्य में स्थायी शांति की कुंजी साबित होंगे।


