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संपादकीय: क्या हेमन्त सोरेन के नेतृत्व में झारखंड विकास की राह पकड़ी, या ठहराव और चुनौतियों का कर रहा सामना..?

ByBinod Anand

May 22, 2025

हेमंत सोरेन सरकार के कार्यकाल में झारखंड ने उम्मीदों के विपरीत, ठहराव और चुनौतियों का सामना किया। रोजगार, औद्योगिक निवेश, कानून व्यवस्था, और शिक्षा-स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में सरकार का प्रदर्शन कमजोर रहा है। यद्यपि कुछ सामाजिक कल्याण योजनाएं लागू की गईं, लेकिन वे राज्य की बढ़ती जरूरतों और महत्वाकांक्षाओं के लिए पर्याप्त नहीं थीं।

 

विनोद आनंद

झारखंड, वह भूमि है जिसे प्रकृति ने अपने हाथों से संवारा है, खनिज संपदा से भरपूर, घने जंगलों से आच्छादित और आदिवासी संस्कृति की समृद्ध विरासत से ओतप्रोत।

वर्ष 2000 में बिहार से अलग होकर एक नए राज्य के रूप में इसका उदय हुआ, इस उम्मीद के साथ कि यह “मिनी जापान” बनने की क्षमता रखता है। अटल बिहारी वाजपेयी की दूरदर्शी सोच थी कि छोटे राज्यों के गठन से प्रशासनिक दक्षता बढ़ेगी और विकास को नई गति मिलेगी।

झारखंड के गठन के पीछे भी यही भावना निहित थी। हालांकि, पिछले दो दशकों का इतिहास, विशेषकर 2000 से 2015 तक की राजनीतिक अस्थिरता, घोटालों और अव्यवस्था से भरा रहा, जिसने राज्य की क्षमता को कुंद कर दिया। रघुवर दास के नेतृत्व में पहली स्थिर सरकार (2015-2019) के बाद, 2019 में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में महागठबंधन की सरकार सत्ता में आई। यह सरकार आदिवासी अधिकारों की रक्षा, सामाजिक कल्याण, रोजगार सृजन और त्वरित विकास के वादों के साथ आई थी। लेकिन, क्या इन वादों को पूरा किया गया? क्या झारखंड ने इस कार्यकाल में विकास की राह पकड़ी, या ठहराव और चुनौतियों का सामना किया?

वादों का बोझ और जमीनी हकीकत

हेमंत सोरेन सरकार ने जब सत्ता संभाली तो जनता की उम्मीदें काफी थीं। झारखंड के इतिहास, भूगोल और उसकी सामाजिक-आर्थिक समस्याओं को देखते हुए, यह आशा की जा रही थी कि नई सरकार इन चुनौतियों का सामना करते हुए राज्य को प्रगति के पथ पर ले जाएगी। लेकिन वास्तविकता अपेक्षा से काफी भिन्न प्रतीत होती है। पिछले कुछ वर्षों में, राज्य के औद्योगिक निवेश, रोजगार के अवसर, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे प्रमुख क्षेत्रों में ठहराव देखने को मिला है।

इसके अतिरिक्त, कानून व्यवस्था में गिरावट और भ्रष्टाचार के आरोपों ने सरकार की कार्यप्रणाली पर गहरा नकारात्मक प्रभाव डाला है, जिससे जनता में विश्वास की कमी हुई है।

आर्थिक मंदी और निवेश का अभाव

झारखंड अपनी अपार खनिज और औद्योगिक क्षमता के लिए पूरे देश में जाना जाता है। कोयला, लौह अयस्क, बॉक्साइट और यूरेनियम जैसे महत्वपूर्ण खनिजों का यह एक प्रमुख उत्पादक है। इसके बावजूद, हेमंत सरकार के कार्यकाल में औद्योगिक निवेश में उल्लेखनीय कमी आई है। पिछली सरकार द्वारा शुरू की गई कई बड़ी परियोजनाएं, जैसे कि औद्योगिक पार्क का विकास, खनन कंपनियों का विस्तार और विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने की नीतियां या तो धीमी पड़ गईं या उन पर विराम लग गया। सरकार की नीतिगत अस्पष्टता और प्रशासनिक अस्थिरता ने निवेशकों के बीच अनिश्चितता का माहौल पैदा किया, जिससे राज्य को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा।

नतीजतन, झारखंड का युवा वर्ग, जो रोजगार की तलाश में था, उसे न केवल निराशा मिली, बल्कि बड़ी संख्या में पलायन करने पर मजबूर होना पड़ा। बेरोजगारी की दर में वृद्धि ने ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों को समान रूप से प्रभावित किया है। यह एक गंभीर चिंता का विषय है, क्योंकि युवाओं को रोजगार प्रदान करना किसी भी राज्य के विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

पारदर्शिता पर सवाल और भ्रष्टाचार के आरोप

किसी भी कुशल सरकार की पहचान प्रशासनिक पारदर्शिता से होती है। हालांकि, झारखंड में हेमंत सरकार के कार्यकाल में खनन पट्टों के आवंटन और विभिन्न सरकारी परियोजनाओं में भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं, जिन्होंने सरकार की छवि को धूमिल किया है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन स्वयं खनन घोटाले के आरोपों में घिरे रहे हैं, जिससे जनता में सरकार के प्रति विश्वास की कमी स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। यह स्थिति न केवल प्रशासन की विश्वसनीयता पर सवाल उठाती है, बल्कि विकास परियोजनाओं के सुचारु क्रियान्वयन को भी बाधित करती है।

इसके अलावा, राज्य के विभिन्न विभागों में योजनाओं के क्रियान्वयन में देरी और अव्यवस्था साफ तौर पर दिखाई देती है। विकास परियोजनाओं को निर्धारित समय पर पूरा नहीं किया गया, जिससे राज्य के आधारभूत ढांचे पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। सड़कों के निर्माण, बिजली आपूर्ति और सिंचाई परियोजनाओं जैसे महत्वपूर्ण कार्यों की धीमी गति ने ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में असंतोष पैदा किया है।

कानून व्यवस्था की चुनौती और नक्सलवाद का पुनरुत्थान

झारखंड में कानून व्यवस्था एक गंभीर चुनौती बन गई है। महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध, सामान्य अपराधों में वृद्धि और सबसे चिंताजनक रूप से, नक्सलवाद का पुनरुत्थान देखा गया है। नक्सलवाद, जिस पर अभियान चलाकर नियंत्रित करने का प्रयास जारी है फिर भी , खासकर ग्रामीण और सुदूरवर्ती इलाकों मेंआज भी नक्सली के प्रभाव से अभी भी पूरी तरह से मुक्त नही हुआ है। नक्सलियों के खिलाफ अभियानों के वाबजूद ग्रामीण विकास परियोजनाओं की धीमी गति ने इस समस्या को और गहरा कर दिया है। गांवों और कस्बों में असुरक्षा की भावना आज भी है, जिससे आम जनजीवन प्रभावित हुआ है।

खनन और औद्योगिक क्षेत्र में बाधाएं

झारखंड भारत का सबसे खनिज समृद्ध राज्य है, फिर भी इस क्षेत्र में हेमंत सरकार के कार्यकाल के दौरान कई बाधाएं देखी गईं। खनन पट्टों के आवंटन में अनियमितताएं और परियोजनाओं की धीमी गति ने न केवल राज्य के राजस्व को नुकसान पहुंचाया, बल्कि इस क्षेत्र में रोजगार सृजन के अवसर भी सीमित कर दिए। औद्योगिक क्षेत्र में निवेशकों की कमी, नीतिगत अस्पष्टता और क्रियान्वयन में देरी ने झारखंड को औद्योगिक विकास के मामले में अन्य राज्यों की तुलना में पीछे कर दिया है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है, क्योंकि राज्य में विकास और रोजगार के लिए एक मजबूत औद्योगिक आधार आवश्यक है।

आदिवासी अधिकार और भूमि अधिग्रहण विवाद

हेमंत सरकार ने आदिवासी अधिकारों और उनकी संस्कृति की रक्षा का वादा किया था, जो कि झारखंड की पहचान का एक अभिन्न अंग है। हालांकि, भूमि अधिग्रहण और स्थानीय नीति जैसे मुद्दों पर सरकार की नीतियां विवादास्पद रहीं।

भूमि अधिग्रहण संबंधी निर्णय, जो आदिवासी समुदायों के हितों की रक्षा के लिए थे, ने कई बार विकास परियोजनाओं को बाधित किया। इससे आदिवासी समुदायों में भी असंतोष उत्पन्न हुआ, क्योंकि उनकी समस्याओं का वास्तविक समाधान नहीं हो पाया। यह एक संवेदनशील मुद्दा है, और इसे प्रभावी ढंग से संबोधित करने में सरकार की विफलता ने राज्य की सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित किया है।

वित्तीय कुप्रबंधन और सामाजिक योजनाओं का अभाव

राज्य की वित्तीय स्थिति कमजोर रही है। केंद्र सरकार की कई महत्वपूर्ण योजनाओं, जैसे “उज्ज्वला योजना,” “सौभाग्य योजना,” और “आयुष्मान भारत” को सही तरीके से लागू करने में सरकार विफल रही। नतीजतन, गरीब और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोग इन योजनाओं के लाभ से वंचित रह गए, जो सीधे तौर पर उनकी जीवन गुणवत्ता को प्रभावित करता है। आर्थिक कुप्रबंधन ने राज्य के विकास पर नकारात्मक प्रभाव डाला है, जिससे आवश्यक क्षेत्रों में निवेश की कमी हुई है।

शिक्षा और स्वास्थ्य: उपेक्षित क्षेत्र

शिक्षा और स्वास्थ्य किसी भी राज्य के सामाजिक विकास के आधार होते हैं। झारखंड में सरकारी स्कूलों और अस्पतालों की स्थिति में कोई खास सुधार नहीं देखा गया। गांवों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या में अपेक्षित वृद्धि नहीं हुई है, और डॉक्टरों तथा चिकित्सा कर्मियों की कमी के कारण ग्रामीण जनता को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं नहीं मिल सकी हैं। इसी प्रकार, स्कूलों में शिक्षकों और बुनियादी ढांचे की कमी बच्चों के शिक्षा स्तर को प्रभावित कर रही है, जिससे राज्य के भविष्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।

राजनीतिक अस्थिरता और प्रशासनिक अक्षमता

हेमंत सरकार पर कई विवादों ने सरकार की छवि को कमजोर किया है। मुख्यमंत्री पर खनन घोटाले का आरोप और गठबंधन सरकार में आंतरिक मतभेदों ने राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ाया है। सरकार की प्रशासनिक नीतियों में स्पष्टता की कमी ने झारखंड की विकास यात्रा को प्रभावित किया है। इससे जनता में सरकार के प्रति असंतोष बढ़ा, और वे अपनी समस्याओं के समाधान के लिए एक स्पष्ट दिशा की तलाश में हैं।

निष्कर्ष: चुनौतियों का सामना और भविष्य की राह

हेमंत सोरेन सरकार के कार्यकाल में झारखंड ने उम्मीदों के विपरीत, ठहराव और चुनौतियों का सामना किया। रोजगार, औद्योगिक निवेश, कानून व्यवस्था, और शिक्षा-स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में सरकार का प्रदर्शन कमजोर रहा है। यद्यपि कुछ सामाजिक कल्याण योजनाएं लागू की गईं, लेकिन वे राज्य की बढ़ती जरूरतों और महत्वाकांक्षाओं के लिए पर्याप्त नहीं थीं। झारखंड जैसे खनिज और संसाधन-समृद्ध राज्य को अपनी आर्थिक और सामाजिक क्षमता का पूर्ण उपयोग करने के लिए एक स्पष्ट दृष्टिकोण और कुशल नेतृत्व की आवश्यकता है।

हेमंत सरकार के कार्यकाल ने यह संकेत दिया कि केवल वादों और इरादों से विकास संभव नहीं है। इसे प्राप्त करने के लिए ठोस योजनाएं, प्रभावी क्रियान्वयन, और पारदर्शी प्रशासन की आवश्यकता है। झारखंड को एक स्थिर और पारदर्शी प्रशासनिक ढांचे के साथ आगे बढ़ने की जरूरत है, ताकि यह राज्य अपनी प्राकृतिक संपदा का उपयोग करते हुए देश के अग्रणी राज्यों की पंक्ति में खड़ा हो सके। यह तभी संभव है जब सरकार राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाए और राज्य के वास्तविक विकास को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता बनाए। झारखंड की जनता को अब एक ऐसी सरकार की आवश्यकता है जो केवल वादे न करे, बल्कि उन्हें जमीन पर साकार करके दिखाए। क्या झारखंड भविष्य में इस दिशा में आगे बढ़ पाएगा? यह सवाल अब भी अनुत्तरित है।

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