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सम्पादकीय : क्या G7 देशो के शिखर सम्मेलन के लिए भारत को निमंत्रण नहीं मिलना भारत की विदेश नीति की अग्नि परीक्षा है…?

ByBinod Anand

Jun 3, 2025

बिगड़ते विदेशी संबंधों को सुधारने के लिए दीर्घकालिक कदमों में, भारत को बहुपक्षीय मंचों पर अपनी मजबूत उपस्थिति जारी रखनी चाहिए. भारत G20, BRICS, और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) जैसे मंचों में सक्रिय और प्रभावशाली भूमिका निभाता है. इन मंचों पर भारत अपनी बढ़ती आर्थिक और रणनीतिक शक्ति का प्रदर्शन कर सकता है. भारत को G7 के अन्य सदस्य देशों (जैसे अमेरिका, जापान, जर्मनी, फ्रांस, और इटली) के साथ द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत करना चाहिए.

नाडा द्वारा 15 से 17 जून तक आयोजित होने वाले G7 शिखर सम्मेलन में भारत को अब तक निमंत्रण न मिलना, भारतीय कूटनीति के लिए एक चिंता का विषय है. यह घटना पिछले छह वर्षों में पहला अवसर होगा जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस महत्वपूर्ण वैश्विक मंच का हिस्सा नहीं होंगे, जो निश्चित रूप से भारत-कनाडा संबंधों में आई हालिया गिरावट की एक स्पष्ट परिणति है.

हालांकि यह निमंत्रण न मिलना तात्कालिक रूप से भारत-कनाडा संबंधों की खटास का नतीजा है, लेकिन यह भारत की बढ़ती वैश्विक भूमिका और उसकी विदेश नीति के समक्ष कई गहरे प्रश्न भी खड़े करता है.

साथ हीं यह सवाल उठना लाजिमी है क्या यह G7 देशों की किसी बड़ी रणनीति का हिस्सा है? इससे भारत को कितना फर्क पड़ेगा? और क्या भारत की विदेश नीति में कहीं कोई कमी रह गई है, जिसे सुधारने की तत्काल आवश्यकता है?

भारत-कनाडा संबंधों की खटास और इसका व्यापक संदर्भ

भारत और कनाडा के बीच संबंधों में गिरावट का मुख्य कारण खालिस्तानी अलगाववादी नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद उत्पन्न हुआ विवाद है. सितंबर 2023 में तत्कालीन कनाडाई प्रधान मंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भारतीय सरकार के “एजेंटों” और निज्जर की हत्या के बीच संबंधों का आरोप लगाया, जिसे भारत ने तुरंत “बेतुका” और “प्रेरित” करार देकर खारिज कर दिया. इस आरोप के बाद दोनों देशों के राजनयिक संबंधों में तेजी से गिरावट आई, जिसके परिणामस्वरूप राजनयिकों की संख्या में कमी और वीजा सेवाओं में व्यवधान जैसी कार्रवाई हुई.

हालांकि कनाडा की धरती पर खालिस्तानी अलगाववादी गतिविधियों का समर्थन और उन्हें मिल रही सरकारी उदासीनता भारत के लिए एक पुरानी और गंभीर चिंता रही है. भारत लगातार कनाडा से इन अलगाववादी तत्वों पर लगाम लगाने का आग्रह करता रहा है, जो भारत की संप्रभुता और अखंडता के लिए खतरा पैदा करते हैं.

कनाडा की तरफ से भारत को आमंत्रण न मिलने के पीछे सिख अलगाववादियों का दबाव और कनाडा की घरेलू राजनीति अहम वजह बताई जा रही है. यह दिखाता है कि कनाडा, अपनी घरेलू राजनीतिक मजबूरियों के चलते, भारत के साथ अपने राजनयिक संबंधों को दांव पर लगाने को तैयार है.

यह घटनाक्रम सिर्फ भारत-कनाडा संबंधों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत के कुछ अन्य देशों के साथ बिगड़ते संबंधों की एक व्यापक प्रवृत्ति का भी हिस्सा है.

G7 जैसे समूह, जो पश्चिमी दुनिया के प्रमुख आर्थिक शक्ति हैं, भारत को निमंत्रण न देकर एक विशेष संदेश देना चाहते हैं. यह संदेश भारत में मानवाधिकारों की स्थिति, नागरिक स्वतंत्रता पर कथित अंकुश और लोकतांत्रिक संस्थानों पर दबाव जैसे मुद्दों पर उनकी चिंता को दर्शाता है.

पश्चिमी देश भारत को यह संकेत देना चाहते हैं कि वैश्विक मंच पर अपनी भूमिका मजबूत करने के लिए उसे इन मुद्दों पर भी उनकी अपेक्षाओं के अनुरूप चलना होगा. G7 के अन्य सदस्यों की मौन सहमति भी यह दर्शाती है कि वे भारत को एक लोकतांत्रिक भागीदार के रूप में अधिक जवाबदेह बनाना चाहते हैं.

भारत की अपनी रणनीतिक स्वायत्तता की नीति के तहत रूस के साथ पारंपरिक और मजबूत संबंध और चीन के साथ जटिल लेकिन महत्वपूर्ण व्यापारिक संबंध हैं. यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में रूस से तेल खरीदने के भारत के फैसले की कुछ पश्चिमी देशों ने आलोचना की है. इसी तरह, चीन के साथ सीमा विवाद के बावजूद व्यापारिक संबंधों को बनाए रखने की भारत की नीति को कुछ पश्चिमी देश संदेह की दृष्टि से देखते हैं.यह भारत को कभी-कभी पश्चिमी गुट से अलग खड़ा कर देता है, और G7 इसे एक चेतावनी के रूप में देख सकता है.

G7 में अनुपस्थिति का भारत पर प्रभाव और विदेश नीति की समीक्षा

G7 शिखर सम्मेलन में निमंत्रण न मिलना भारत के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण है. यह वैश्विक नीति निर्माण और महत्वपूर्ण चर्चाओं का एक मंच है, और इसमें भारत की अनुपस्थिति उसकी बढ़ती वैश्विक छवि के लिए एक झटका है. यह उन देशों को एक नकारात्मक संदेश दे सकता है जो भारत को एक विश्वसनीय और महत्वपूर्ण वैश्विक खिलाड़ी मानते हैं. प्रधानमंत्री मोदी के लिए यह अन्य विश्व नेताओं के साथ द्विपक्षीय बैठकें करने, महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करने और भारत के हितों को बढ़ावा देने का एक महत्वपूर्ण अवसर होता था. इस अवसर का नुकसान भारत की कूटनीतिक पहुंच को सीमित करेगा.

यह घटना भारत की विदेश नीति के कुछ अंतर्निहित मुद्दों को भी उजागर करती है, जिस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है. पश्चिमी देश भारत में मानवाधिकारों की स्थिति, नागरिक स्वतंत्रता पर कथित अंकुश और लोकतांत्रिक संस्थानों पर दबाव जैसे मुद्दों पर लगातार चिंता व्यक्त करते रहे हैं. भारत इन मुद्दों को आंतरिक मामला मानता है, लेकिन पश्चिमी देश इन्हें अपने वैश्विक मानवाधिकार एजेंडे के तहत देखते हैं. भारत को अपनी आंतरिक नीतियों को अंतरराष्ट्रीय मानदंडों और मूल्यों के अनुरूप बनाना होगा ताकि पश्चिमी देशों के साथ संबंधों में विश्वास बहाल हो सके.

विदेशों में रहने वाले भारतीय प्रवासी समुदाय और कुछ अलगाववादी समूह, जैसे खालिस्तानी, भारत के लिए एक चुनौती पेश करते हैं. भारत को प्रवासी भारतीय समुदायों के साथ बेहतर संवाद स्थापित करना चाहिए और उन्हें भारत की चिंताओं को समझने में मदद करनी चाहिए. मेजबान देशों की सरकारों के साथ सक्रिय रूप से जुड़कर इन मुद्दों का समाधान खोजने की आवश्यकता है.

भारत की रणनीतिक स्वायत्तता की नीति, जो रूस और चीन जैसे देशों के साथ संबंधों को बनाए रखने पर केंद्रित है, कभी-कभी पश्चिमी देशों के साथ तनाव पैदा करती है.

भारत को अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखते हुए पश्चिमी देशों और रूस/चीन जैसे देशों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करनी चाहिए.

आगे की राह: विकल्प और सुधार के कदम

G7 में भाग न लेने की स्थिति में, भारत के पास कई रणनीतिक और कूटनीतिक विकल्प हैं, साथ ही कनाडा के रुख को जवाब देने और अपने बिगड़ते विदेशी संबंधों को सुधारने के लिए कुछ कदम उठाने के अवसर भी हैं:

कनाडा के संदर्भ में, भारत राजनयिक संबंधों को और सीमित कर सकता है, जैसे कि कनाडाई राजनयिकों की संख्या को और कम करना या वीजा नीतियों को सख्त करना. व्यापार वार्ताओं को स्थगित करना और कनाडा से आयात पर निर्भरता को कम करने के लिए वैकल्पिक स्रोतों की तलाश करना भी दबाव बनाने के तरीके हो सकते हैं.

वैश्विक मंचों पर, भारत G20, BRICS, और अन्य मंचों पर कनाडा की स्थिति को कमजोर करने के लिए अन्य देशों के साथ गठबंधन बना सकता है, और खालिस्तानी अलगाववाद के मुद्दे को आतंकवाद के समर्थन के रूप में चित्रित कर सकता है.

कनाडा के नए प्रधानमंत्री मार्क कार्नी के साथ सशर्त संवाद शुरू करना एक और विकल्प है, जिसमें खालिस्तानी गतिविधियों पर रोक लगाने की मांग शामिल हो.

बिगड़ते विदेशी संबंधों को सुधारने के लिए दीर्घकालिक कदमों में, भारत को बहुपक्षीय मंचों पर अपनी मजबूत उपस्थिति जारी रखनी चाहिए. भारत G20, BRICS, और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) जैसे मंचों में सक्रिय और प्रभावशाली भूमिका निभाता है. इन मंचों पर भारत अपनी बढ़ती आर्थिक और रणनीतिक शक्ति का प्रदर्शन कर सकता है. भारत को G7 के अन्य सदस्य देशों (जैसे अमेरिका, जापान, जर्मनी, फ्रांस, और इटली) के साथ द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत करना चाहिए.

अपनी ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘मेक इन इंडिया’ पहल को बढ़ावा देकर ग्लोबल सप्लाई चेन में अपनी स्थिति को मजबूत करना भी महत्वपूर्ण है. भारत को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी लोकतांत्रिक साख को बनाए रखने के लिए मानवाधिकारों, नागरिक स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक संस्थानों के मुद्दों पर आंतरिक रूप से अधिक पारदर्शिता और संवेदनशीलता दिखानी होगी.

संचार और सार्वजनिक कूटनीति में सुधार करके भारत अपनी विदेश नीति और अपने हितों को अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने स्पष्ट और प्रभावी ढंग से प्रस्तुत कर सकता है.

अंत में मेरा मानना है कि G7 शिखर सम्मेलन में भारत को निमंत्रण न मिलना भारत-कनाडा संबंधों में आई गिरावट का एक गंभीर संकेत है, लेकिन यह भारत के लिए अपनी विदेश नीति का पुनर्मूल्यांकन करने का एक अवसर भी है.

भारत को न केवल कनाडा के साथ संबंधों को सुधारने के लिए सक्रिय कदम उठाने होंगे, बल्कि उसे अपने समग्र विदेशी संबंधों में आ रही चुनौतियों का भी समाधान करना होगा.

मानवाधिकार, लोकतांत्रिक मूल्य, और भू-राजनीतिक संतुलन जैसे मुद्दों पर स्पष्ट और सुसंगत नीति अपनाना महत्वपूर्ण है. एक मजबूत अर्थव्यवस्था, प्रभावी कूटनीति और वैश्विक मंचों पर सक्रिय उपस्थिति के साथ, भारत निश्चित रूप से इन चुनौतियों का सामना कर सकता है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी उचित जगह बना सकता है. यह समय है जब भारत अपनी ‘आत्मनिर्भर भारत’ की भावना को कूटनीति में भी लागू करे, ताकि वह किसी भी देश पर अत्यधिक निर्भर न हो और अपनी विदेश नीति को अपनी शर्तों पर संचालित कर सके. यह एक अग्निपरीक्षा है, और भारत को इससे मजबूत होकर निकलना होगा.

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