आज पाकिस्तान जिस स्थिति में है, उसके लिए उसकी अपनी नीतियां जिम्मेदार हैं। अशिक्षा, मानसिक दिवालियापन, रूढ़िवादी सोच और जिहाद के नाम पर आतंकवाद को बढ़ावा देना, यही कारण है कि आज कई देश उससे परेशान हैं। अपनी इसी मूर्खता के कारण पाकिस्तान कुछ ताकतबर देश के हाथों का खिलौना बनता रहा है, और अपने उस भाई से दुश्मनी पालता रहा जो कभी उसके साथ था। भारत ने कभी भी पाकिस्तान को अपना दुश्मन नहीं माना। हमने तो साथ मिलकर अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई लड़ी थी और अमन-चैन के लिए अपने मुल्क का बंटवारा किया था।
विनोद आनंद

सा त मई की सुबह, जब दुनिया भारत द्वारा किये गए पाक आतंकियों के बिरुद्ध ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की चर्चा में डूबी थी, तो दिल्ली से नौ सौ किलोमीटर दूर जम्मू-कश्मीर के पुंछ में, एक छोटा सा परिवार अपनी सामान्य दिनचर्या में लीन था।
रमीज़ खान, एक शिक्षक, और उनकी पत्नी उरूसा, अपने बारह वर्षीय जुड़वां बच्चों, जोया और अयान के साथ एक शांत जीवन जी रहे थे। उन्हें क्या पता था कि सरहद पर धधकती आग की लपटें उनके आंगन तक भी पहुंच जाएंगी, उनकी खुशियों को राख में बदल देंगी और उनके मासूम बच्चों को युद्ध की भयावहता का शिकार बना लेंगी।
जोया और अयान, दो फूल जो अभी पूरी तरह से खिले भी नहीं थे, उस दिन सुबह हमेशा की तरह स्कूल के लिए तैयार हुए थे। उनकी छोटी सी दुनिया किताबों, दोस्तों और खेलकूद से भरी थी। उन्हें नहीं पता था कि दुनिया की बड़ी खबरें क्या हैं, सरहदों पर क्या हो रहा है। दोपहर को जब वे स्कूल से घर लौटे, तो अम्मी ने उनकी पसंद का खाना बनाया था।
हंसते-खेलते, होमवर्क करते और फिर रात का खाना खाकर वे अपनी मां के साथ सोने चले गए। उनके मासूम दिलों में भारत और पाकिस्तान के बीच चल रही खूनी जंग की कोई खबर नहीं थी, कोई डर नहीं था। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। रात की खामोशी तेज धमाकों की आवाज से टूट गई। रमीज़ खान और उरूसा, गहरी नींद से जाग गए।
आवाज इतनी भयानक थी कि पूरा परिवार दहशत से भर गया। किसी तरह उन्होंने वह रात काटी, सुबह होने का इंतजार करते हुए, जैसे कोई भयानक सपना देख रहे हों। सुबह होते ही, उन्होंने बच्चों के मामा को फोन किया। अब यहां रहना सुरक्षित नहीं था। उन्होंने फैसला किया कि सुबह छह बजे मामा आएंगे और वे सब किसी सुरक्षित जगह चले जाएंगे।
सुबह छह बजे, बच्चों के मामा आ गए। रमीज़ खान ने अपने बेटे अयान का हाथ पकड़ा और उरूसा ने अपनी बेटी जोया का। उनके दिलों में एक उम्मीद की किरण जगी थी कि अब वे सुरक्षित हो जाएंगे। वे घर से बाहर निकले, चंद कदम ही चले थे कि एक और तेज धमाका हुआ। चारों तरफ चीख-पुकार मच गई। धूल और धुएं के गुबार में सब कुछ धुंधला हो गया।
कुछ देर बाद जब उरूसा को होश आया, तो मंजर भयावह था। उसकी बारह साल की मासूम बच्ची जोया खून से सनी पड़ी थी, उसकी सांसें थम चुकी थीं। उरूसा बदहवास होकर अपने पति और बेटे को खोजने लगी। पास ही, उसके पति रमीज़ खान खून से लथपथ बेहोश पड़े थे। उसके दिल की धड़कनें तेज हो रही थीं, उसे अपनी चोट का एहसास भी नहीं हो रहा था। वह इधर-उधर भागती हुई अपने बेटे अयान को ढूंढने लगी। तभी, कुछ दूरी पर उसे एक आदमी नजर आया जो एक बारह साल के बच्चे की टूटती सांसों को थामने की कोशिश कर रहा था। वह उस बच्चे के सीने को बार-बार दबा रहा था, लेकिन उसकी सारी कोशिशें नाकाम रहीं। वह बच्चा था अयान, वह भी वहीं दम तोड़ गया।
उरूसा की आंखों के सामने उसके दिल के टुकड़े, उसके दोनों मासूम बच्चे, दर्दनाक मौत का शिकार हो गए। उसका संसार एक पल में उजड़ गया। उसके पति गंभीर रूप से घायल उसके सामने पड़े थे। यह कहानी सिर्फ उरूसा और रमीज़ की नहीं है। यह दुनिया के हर उस युद्ध पीड़ित बच्चे की कहानी है जिसकी सांसें असमय थम जाती हैं, जिसकी मासूमियत युद्ध की भेंट चढ़ जाती है। आज इजराइल और फिलिस्तीन में, यूक्रेन और रूस में, भारत और पाकिस्तान की सीमाओं पर, और दुनिया के अन्य युद्धग्रस्त क्षेत्रों में ऐसे ही अनगिनत जोया और अयान अपनी जान गंवा रहे हैं, अपने सपने अधूरे छोड़ जा रहे हैं।
युद्ध की मार झेल रहे इन देशों के निरीह लोगों से पूछिए कि उन पर क्या गुजर रही है। उनके घरों, उनके परिवारों, उनके भविष्य को पल भर में राख कर दिया जाता है। लेकिन विडंबना यह है कि कूटनीति और ताकतवर देशों के हाथों की कठपुतली बने देश, जिनके पास अपने लोगों को दो वक्त की रोटी जुटाने की भी हैसियत नहीं है, वे अपनी मानसिक दिवालियापन का परिचय देते रहते हैं। वे जीत का जश्न मनाते हैं, नफरत फैलाते हैं, और मासूमों की मौत पर भी शर्मिंदा नहीं होते।
आज पाकिस्तान जिस स्थिति में है, उसके लिए उसकी अपनी नीतियां जिम्मेदार हैं। अशिक्षा, मानसिक दिवालियापन, रूढ़िवादी सोच और जिहाद के नाम पर आतंकवाद को बढ़ावा देना, यही कारण है कि आज कई देश उससे परेशान हैं। अपनी इसी मूर्खता के कारण पाकिस्तान कुछ ताकतबर देश के हाथों का खिलौना बनता रहा है, और अपने उस भाई से दुश्मनी पालता रहा जो कभी उसके साथ था। भारत ने कभी भी पाकिस्तान को अपना दुश्मन नहीं माना। हमने तो साथ मिलकर अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई लड़ी थी और अमन-चैन के लिए अपने मुल्क का बंटवारा किया था।
भारत ने दुनिया के साथ कदमताल मिलाकर विकास और प्रगति का मार्ग चुना। आज हमारे लोग विज्ञान, चिकित्सा, साहित्य और ज्ञान के हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं।
दूसरी ओर, पाकिस्तान ने आतंक और जिहाद की फैक्ट्री बनने का रास्ता चुना। कुछ ताकतवर देशों ने उसके इस आतंक के उद्योग में निवेश किया, इन गुंडों का इस्तेमाल किया और जब उनका काम निकल गया तो उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया।
आज पाकिस्तान कर्ज के बोझ तले दबा हुआ है, उसकी अर्थव्यवस्था चरमरा रही है, और उसके अपने लोग गरीबी और भुखमरी से जूझ रहे हैं। फिर भी, नफरत और कट्टरता का जहर उसके समाज में घुला हुआ है।
एक बार फिर मैं यही कहूंगा कि युद्ध किसी समस्या का समाधान नहीं है। यह उस युग की संस्कृति है जब मनुष्य असभ्य और जंगली था, कबीलों में बंटा हुआ था और उसके पास रोजगार नहीं था। तब लोग लूटपाट करके अपनी जरूरतें पूरी करते थे। हमें वह वक्त याद करना चाहिए जब मुगल, तुर्क, मंगोल और अन्य आक्रमणकारी हमारे देश को लूटने आते थे और हमारी नादानी के कारण हमें गुलाम बना लेते थे।
भारत ने इस दर्द को समझा है, इसलिए अब हम सतर्क हो गए हैं। पाकिस्तान को भी अपने अहंकार को त्याग कर चीन जैसे देशों से सावधान रहने की जरूरत है, जो पहले निवेश के नाम पर कर्ज देते हैं और फिर गुलाम बनाने की कोशिश करते हैं। श्रीलंका और मालदीव इसके स्पष्ट उदाहरण हैं।
इसलिए, पाकिस्तान को अब भी सद्बुद्धि आनी चाहिए। उसे अमन का रास्ता अपनाना चाहिए, आतंकवाद के खिलाफ कठोर रुख अपनाना चाहिए, किसी भी कुटिल चालबाज के झांसे में नहीं आना चाहिए और अपने मुल्क की तरक्की, जनता की सुविधा और आवाम की खुशहाली के लिए काम करना चाहिए।
जोया और अयान जैसे मासूम बच्चों की मौतें व्यर्थ नहीं जानी चाहिए। उनकी चीखें हमें युद्ध की भयावहता की याद दिलाती रहनी चाहिए और हमें शांति और सद्भाव की दिशा में मिलकर काम करने के लिए प्रेरित करती रहनी चाहिए।
यह सिर्फ एक घटना का वर्णन नहीं है, बल्कि यह युद्ध की त्रासदी का एक मार्मिक चित्रण है। यह उन अनगिनत मासूमों की चीख है जो सरहदों पर जारी संघर्षों की भेंट चढ़ जाते हैं। यह उन परिवारों का दर्द है जो पल भर में उजड़ जाते हैं। यह उस नफरत और कट्टरता पर एक सवालिया निशान है जो आज भी दुनिया में खूनखराबा मचा रही है। हमें इस सच्चाई को समझना होगा और युद्ध को हमेशा के लिए ना कहना होगा। हमें शांति, सहिष्णुता और आपसी समझ का मार्ग अपनाना होगा, ताकि भविष्य में किसी और जोया और अयान को अपनी जान न गंवानी पड़े। उनकी मासूमियत की कीमत बहुत बड़ी है, और हमें इसे कभी नहीं भूलना चाहिए। युद्ध की रेत में दफन उनकी चीखें हमेशा हमारे कानों में गूंजती रहनी चाहिए, हमें शांति की राह पर चलने के लिए प्रेरित करती रहनी चाहिए।


