समाज में बढ़ते मानसिक तनाव, पारिवारिक विघटन और संवाद की कमी की ओर भी इशारा करती है. यह हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि कैसे छोटे-छोटे विवाद, अगर उन्हें समय रहते सुलझाया न जाए, तो वे एक पूरे परिवार की खुशियों और जीवन को लील सकते हैं. बाड़मेर की यह घटना एक मार्मिक चेतावनी है कि हमें अपने आस-पास के लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना चाहिए और उन्हें संकट के समय मदद और समर्थन प्रदान करना चाहिए.
रा जस्थान के बाड़मेर जिले के शिव थाना क्षेत्र के उण्डू गांव में ब्राह्मणों की ढाणी से एक दिल दहला देने वाली और रोंगटे खड़े कर देने वाली घटना सामने आई है. यहाँ एक पूरा परिवार – पति, पत्नी और उनके दो छोटे बच्चों ने एक साथ पानी की टंकी में छलांग लगाकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली. यह सामूहिक आत्महत्या की घटना, जिसमें छोटे बेटे को दुल्हन की तरह सजाया गया था, ने पूरे प्रदेश को स्तब्ध कर दिया है और मानवीय दुख की पराकाष्ठा को दर्शाया है.

त्रासदी का खौफनाक खुलासा
यह भयावह घटना तब प्रकाश में आई जब परिवार के एक सदस्य ने उनसे फोन पर संपर्क करने का प्रयास किया. बार-बार फोन करने पर भी किसी का जवाब नहीं मिला, जिससे उन्हें चिंता हुई. उन्होंने पड़ोसियों से संपर्क कर परिवार का हाल जानने को कहा. पड़ोसियों ने जब घर जाकर देखा तो एक अनहोनी की आशंका हुई, और फिर यह मामला उजागर हुआ. पुलिस को सूचना मिलते ही वे मौके पर पहुंचे और पानी की टंकी से सभी चारों शवों को बरामद किया. शवों का पोस्टमार्टम करवाया गया, जिससे इस भीषण त्रासदी की पुष्टि हुई.
मृतकों की पहचान 35 वर्षीय शिवलाल, उनकी 32 वर्षीय पत्नी कविता, और उनके दो मासूम बच्चों (8 वर्षीय और 6 वर्षीय) के रूप में हुई है. पुलिस की शुरुआती जांच में पता चला कि शिवलाल ने इस कदम को उठाने से पहले अपने घर पर ताला लगाया था, मानो वह दुनिया से कटकर इस भयानक अंत को गले लगाना चाहते थे.
एक माँ का अंतिम दर्दनाक श्रृंगार
इस घटना का सबसे विचलित करने वाला और मार्मिक पहलू यह है कि आत्महत्या करने से ठीक पहले, मृतका कविता ने अपने छोटे बेटे रामदेव को दुल्हन की तरह सजाया. यह कल्पना करना भी कठिन है कि एक माँ अपने बेटे को, जिसे वह इतनी शिद्दत से प्यार करती होगी, उसे ऐसे सजा रही थी, जबकि उसके मन में खुदकुशी का इरादा पल रहा था.
कविता ने रामदेव को गहने पहनाए, उसका श्रृंगार किया, लिपस्टिक लगाई और उसकी आँखों में काजल भी लगाया. रामदेव, जिसकी मासूमियत अभी दुनियादारी से दूर थी, उसने भी अपनी माँ के कहने पर शर्माते हुए और लड़कियों की तरह स्टाइल मारते हुए तस्वीरें खिंचवाईं. उन तस्वीरों में रामदेव की भोली मुस्कान और कविता के भीतर का गहरा दर्द एक अजीबोगरीब विरोधाभास पैदा करता है. इन तस्वीरों के खींचे जाने के कुछ ही देर बाद, कविता, शिवलाल और उनके दोनों बेटे घर से लगभग 20 मीटर दूर स्थित पानी की टंकी में कूद गए. यह दृश्य किसी भी संवेदनशील व्यक्ति की रूह कंपा देने वाला है, यह दर्शाता है कि परिवार किस हद तक मानसिक पीड़ा से गुजर रहा था कि उन्होंने अपने मासूम बच्चों को भी इस भयानक अंत में शामिल कर लिया.
टूटते सपनों का दर्द: पीएम आवास योजना और पारिवारिक कलह
इस त्रासदी के पीछे के कारणों की जब पड़ताल की गई, तो पारिवारिक कलह और मानसिक तनाव मुख्य वजह बनकर सामने आए. मृतका कविता के चाचा गोपीलाल ने मीडिया को बताया कि उनके दामाद शिवलाल का एक बड़ा सपना था – वह प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मिले पैसे से अपना अलग मकान बनाना चाहते थे. यह सपना सिर्फ एक घर बनाने का नहीं था, बल्कि शायद एक स्वतंत्र जीवन, अपने परिवार के लिए एक सुरक्षित आश्रय और सामाजिक सम्मान की चाहत थी.
मगर, शिवलाल के इस सपने का उनके भाई और माँ लगातार विरोध कर रहे थे. यह विरोध, जो शायद ज़मीन, बंटवारे, या संयुक्त परिवार में रहने की पारंपरिक सोच से जुड़ा था, शिवलाल के लिए असहनीय मानसिक दबाव बन गया था. वह इस पारिवारिक तनाव से इतना अधिक परेशान थे कि उन्होंने अपनी ज़िंदगी खत्म करने का फैसला कर लिया. यह दर्शाता है कि कभी-कभी छोटे-छोटे पारिवारिक विवाद, अगर सही समय पर सुलझाए न जाएँ, तो वे कितना विकराल रूप ले सकते हैं और जीवन पर भारी पड़ सकते हैं.
गोपीलाल ने यह भी बताया कि शिवलाल ने 29 जून को एक सुसाइड नोट भी लिखा था, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह कदम अचानक उठाया गया फैसला नहीं था, बल्कि इसके पीछे एक लंबी मानसिक पीड़ा और निराशा थी. सुसाइड नोट में शिवलाल ने यह भी लिखा था कि उनके पूरे परिवार का दाह-संस्कार घर के बाहर ही किया जाए, जो उनकी अंतिम इच्छा थी और शायद उस पारिवारिक तनाव से मुक्ति की चाहत थी जिससे वह जीवित रहते हुए जूझ रहे थे.
एक सुनियोजित और भयावह अंत
परिवार के सदस्यों और पुलिस की जांच से यह भी पता चला है कि शिवलाल और कविता ने यह कदम उठाने की योजना पहले ही बना ली थी. उन्होंने इस भयानक त्रासदी के लिए सही समय का इंतजार किया, जब कोई उन्हें रोक न सके.
मंगलवार को जब शिवलाल की माँ अपने भाई से मिलने बाड़मेर गई हुई थीं और उनके पिता किसी धार्मिक कार्य के लिए घर से बाहर थे, तभी शिवलाल और कविता ने अपने-अपने मोबाइल फोन बंद किए. यह इस बात का संकेत था कि वे किसी भी बाहरी हस्तक्षेप को नहीं चाहते थे. मोबाइल बंद करके, उन्होंने अपने बच्चों के साथ मिलकर इस भयावह सामूहिक आत्महत्या को अंजाम दिया. यह दर्शाता है कि वे अपने फैसले पर अडिग थे और उन्हें इस कदम को उठाने से रोकने वाला कोई नहीं था.
पुलिस की जांच और कानून का शिकंजा
इस दुखद घटना के बाद पुलिस ने दोनों पक्षों के रिश्तेदारों के बयान दर्ज किए हैं. पुलिस अब आत्महत्या के पीछे के कारणों, खासकर घरेलू कलह और मानसिक तनाव की गहनता से जांच कर रही है. इसके साथ ही, पुलिस ने आत्महत्या के लिए उकसाने की धाराओं के तहत भी जांच शुरू कर दी है. सुसाइड नोट की प्रामाणिकता की जांच की जा रही है और पारिवारिक विवादों के सभी पहलुओं को खंगाला जा रहा है, ताकि यह पता चल सके कि इस त्रासदी के लिए कौन या क्या परिस्थितियाँ जिम्मेदार थीं.
यह घटना सिर्फ एक परिवार की आत्महत्या नहीं है, बल्कि यह समाज में बढ़ते मानसिक तनाव, पारिवारिक विघटन और संवाद की कमी की ओर भी इशारा करती है. यह हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि कैसे छोटे-छोटे विवाद, अगर उन्हें समय रहते सुलझाया न जाए, तो वे एक पूरे परिवार की खुशियों और जीवन को लील सकते हैं. बाड़मेर की यह घटना एक मार्मिक चेतावनी है कि हमें अपने आस-पास के लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना चाहिए और उन्हें संकट के समय मदद और समर्थन प्रदान करना चाहिए.


