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ग्रामीण शिक्षा में नवाचार: एक त्रिआयामी विमर्श

ByBinod Anand

Jul 13, 2025

ग्रामीण बनावट और बुनावट में तकरीबन 20 प्रतिशत बच्चे अपनी कल्पनाओं से छोटी-छोटी खिलौने और अन्य उपयोगी वस्तुओं का निर्माण अबोध बचपन में ही कर लेते हैं। वहीं बच्चा आगे चलकर शिक्षक से नवीन कौशल प्रशिक्षण लेकर समय के सारगर्भित विज्ञान में तरह-तरह का प्रयोग करना शुरू कर देता है। तब छात्र जीवन निर्माण शिक्षक के लिए आसान बन पड़ता है, और प्रयोगों की कसौटी पर वही बच्चा नया करने की ललक में ढेरों रचनात्मक गतिविधियों से खुद को जोड़ लेता है।

वार्ताकार :-रौशन राय

(चित्रकार और कला लेखक)

ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा की गुणवत्ता और बाल शिक्षा में सुधार के लिए नवाचार शिक्षा पद्धति एक सहज बदलाव को स्वीकार्यता दे रही है। यह नवाचार न केवल स्कूलों में सकारात्मक सोच और नीतिगत लोक गतिविधियों को बढ़ावा दे रहा है, बल्कि छात्र-छात्राओं में मौलिक भावनाओं के साथ धीरे-धीरे बदलाव भी ला रहा है। यह लेख चित्रकार और कला लेखक रौशन राय की वरिष्ठ सेवानिवृत्त शिक्षक विजय कुमार सिन्हा और वरिष्ठ सामाजिक विज्ञान शिक्षक अजय राय के साथ हुई त्रिआयामी बातचीत पर आधारित है, जिसमें समकालीन नवाचार शिक्षा पद्धति और बाल शिक्षा पर गहन शैक्षिक विमर्श हुआ।

हाल के समय में, यह देखा जा रहा है कि लगभग सभी विद्यालयों में समय-समय पर कला, संस्कृति और साहित्य से संबंधित गतिविधियाँ बढ़ाई जा रही हैं या संचालित की जा रही हैं। इस पहल से छात्र-छात्राओं में रचनात्मकता, तर्क-वितर्क की क्षमताएं और शैक्षणिक स्वभाव प्रभावी रूप से विकसित हो रहे हैं। इन विचार-विमर्शों में ढेरों आपसी सवालों और संवादों का दौर चला, जिसमें नवाचार शिक्षा को लेकर प्रासंगिक और संवेदनशील विचार रखे गए।

सेवानिवृत्त शिक्षक विजय कुमार सिन्हा का दृष्टिकोण

सेवानिवृत्त पूर्व प्रभारी प्रधानाध्यापक श्री विजय कुमार सिन्हा नवाचार शिक्षा नीति और योजना पर विचार रखते हुए ढेरों सवालों और शैक्षणिक गतिविधि जनित अध्ययन के पक्षधर दिखे। उनका मानना है कि स्कूली शिक्षा में कला, गीत-संगीत, काव्य रचना के साथ बाल विचारों का समावेश नवाचार में लोक समझ का विस्तार तो करता ही है, साथ ही विद्यार्थियों में कौशल विकास का भी विस्तार हो रहा है। श्री सिन्हा ने अपने कार्यकाल में ढेरों सृजनात्मक नवाचारों को अपनाकर गांव-कस्बों में बाल शिक्षा को मुख्यधारा में लाने में कामयाबी हासिल की है। उन्होंने पारंपरिक शिक्षा शैली को बरकरार रखते हुए संस्कृति, कला और विज्ञान में तरह-तरह के नवीन प्रयोग करके नवीनता लाई है। समग्र शैलीगत नवीनता में संचार माध्यम आज के समय में प्रभावी साबित हो रहा है। यही कारण है कि समय-समय पर शिक्षा नीतियों में विविधता में एकरूपता लाने का प्रयास होता रहा है।

श्री सिन्हा गांव-कस्बों में स्कूली शिक्षा में बदलाव की मुख्य धारणा पर विचार रख रहे थे। उनका मानना है कि शिक्षा के खाके में हुए नवीन बदलावों से हाल के दिनों में संदर्भ गढ़ता नजर आ रहा है। उन्होंने समय की गति और नवाचार बाल मनोविज्ञान, प्रयोगों में विश्वास रखते हुए ढेरों ऐसी स्थिति-परिस्थितियां गढ़ीं जो शैक्षणिक बेहतरी के हित में हैं। एक सवाल के जवाब में श्री सिन्हा ने कहा कि बच्चों में अल्हड़ प्रवृत्ति होती है, और खेल-खेल में ही सीखने के प्रति उनकी ललक से छात्र-छात्राओं की पहचान हो जाती है। नया करने, समझने और मौलिक आदतों में बदलाव ही नवीन समझने और करने में मददगार होता है। जिस विद्यार्थी में ये आदतें विकसित होने लगती हैं, फिर शिक्षक के लिए नवाचार प्रवृत्ति विकसित करना आसान हो जाता है। तब स्कूली शिक्षा जीवन गढ़ना शुरू कर छात्र-छात्राओं में रचनात्मक सहयोग आसानी से कर पाती है।

वर्तमान शिक्षक अजय राय का दृष्टिकोण

वहीं, वर्तमान प्रभारी प्रधानाध्यापक और वरिष्ठ सामाजिक विज्ञान शिक्षक अजय राय का विचार ग्रामीण शिक्षा में थोड़ा भिन्न है। उनका मानना है कि लोक जन सुलभ नवाचार शिक्षा पद्धति जन प्रवृत्ति की आज के समय की मांग है। गांव-देहात में छात्र-छात्राओं में रचनात्मकता बचपन से ही पनपती है। हर छोटी-छोटी बिंदुओं पर खेल-खेल में ही नया करने की समझ का आधार मिलना शुरू हो जाता है। ग्रामीण बनावट और बुनावट में तकरीबन 20 प्रतिशत बच्चे अपनी कल्पनाओं से छोटी-छोटी खिलौने और अन्य उपयोगी वस्तुओं का निर्माण अबोध बचपन में ही कर लेते हैं। वहीं बच्चा आगे चलकर शिक्षक से नवीन कौशल प्रशिक्षण लेकर समय के सारगर्भित विज्ञान में तरह-तरह का प्रयोग करना शुरू कर देता है। तब छात्र जीवन निर्माण शिक्षक के लिए आसान बन पड़ता है, और प्रयोगों की कसौटी पर वही बच्चा नया करने की ललक में ढेरों रचनात्मक गतिविधियों से खुद को जोड़ लेता है।

श्री राय के अनुसार, आज गांव-देहात के स्कूलों में लोक पद्धति के साथ समकालीन नवाचार का समन्वय आपसी सहमति से सफल हो रहा है। वे निश्चित रूप से कहते हैं कि संचार माध्यम, विशेषकर मोबाइल से, नया सोचने-समझने की लालसा में अपेक्षित सुधारात्मक बदलाव देखने को मिल रहा है। श्री राय एक वरिष्ठ शिक्षक हैं, और हर छोटी-बड़ी सवालों पर बेबाकी से विचार साझा करते हैं। उनका मानना है कि अबोध बचपन में रचनात्मक समझ का विस्तार, कला, संस्कृति, काव्य रचना और वैज्ञानिक समझ का विकास, लोक शिक्षा के साथ ही जन्म लेता है। इसलिए हर छात्र-छात्रा को अनुकूल उचित खान-पान के साथ एक घरेलू सकारात्मक माहौल मिले तो जीवन गढ़ना आसान हो जाता है।

नवाचार और अभिभावकों की भूमिका

शिक्षा नवाचार में हाल के दिनों में, लगभग सभी विद्यालयों में कंप्यूटर शिक्षा, स्मार्ट क्लास के साथ तरह-तरह की प्रायोगिक गतिविधियों ने व्यवस्था को परिवर्तित जरूर किया है। अब आवश्यकता है कि अभिभावक भी बच्चों पर दी जा रही शैक्षणिक जिम्मेदारियों में सहयोगी बनकर उन्हें उचित मदद करें। कुल मिलाकर, यह बातचीत नवाचार शिक्षा नीति और योजना पर नवीनीकरण के पक्ष के आसपास ही रही। छात्र-छात्राओं के स्वास्थ्य और जीवन शैली कुपोषण का शिकार न हो, इस दिशा में भी दोनों विद्वान शिक्षकों ने महत्वपूर्ण विचार साझा किए।

यह विमर्श ग्रामीण शिक्षा में नवाचार की आवश्यकता और संभावनाओं को रेखांकित करता है। यह स्पष्ट है कि पारंपरिक शिक्षा पद्धति को आधुनिक तकनीकों और रचनात्मक गतिविधियों के साथ मिलाकर ही ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा की गुणवत्ता में वास्तविक सुधार लाया जा सकता है। इसमें शिक्षकों के साथ-साथ अभिभावकों और समुदाय की सक्रिय भागीदारी भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि बच्चे केवल किताबी ज्ञान तक सीमित न रहें, बल्कि उन्हें अपनी रचनात्मकता और आलोचनात्मक सोच को विकसित करने का अवसर मिले, जिससे वे भविष्य में देश के जिम्मेदार नागरिक बन सकें।

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