पलामू, झारखंड के राजनीतिक गलियारों और श्रमिक आंदोलनों में एक जाना-पहचाना नाम, वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व सांसद ददई दुबे का गुरुवार को दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में 80 वर्ष की आयु में निधन हो गया। पिछले कुछ दिनों से बीमार चल रहे ददई दुबे के निधन से राज्य में शोक की लहर दौड़ गई है। उन्होंने दिल्ली में अंतिम सांस ली, जिससे झारखंड ने एक ऐसे कद्दावर नेता को खो दिया, जिन्होंने अपना जीवन जनसेवा और मजदूरों के अधिकारों की लड़ाई के लिए समर्पित कर दिया था।
प्रारंभिक जीवन और राजनीतिक यात्रा का आगाज
ददई दुबे का जन्म 1945 में गढ़वा जिले के कांडी प्रखंड के चोका गांव में हुआ था। उनकी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत जमीनी स्तर से हुई। 1973 से 1985 तक, उन्होंने बलियारी पंचायत के मुखिया के रूप में अपनी सेवाएं दीं, जिससे उन्हें स्थानीय लोगों के बीच पहचान मिली। 1980 में, उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में विधानसभा चुनाव लड़ा, हालांकि उन्हें सफलता नहीं मिली। यह उनकी दृढ़ता का ही परिणाम था कि उन्होंने हार नहीं मानी और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहे।
बिहार से झारखंड तक का प्रभावशाली सफर
उनकी दृढ़ता और जनसेवा की भावना का प्रतिफल उन्हें 1985 में मिला, जब वे कांग्रेस के टिकट पर विश्रामपुर से पहली बार विधायक चुने गए। यह उनकी लंबी और प्रभावशाली राजनीतिक यात्रा की शुरुआत थी। 1990 में, उन्हें दोबारा विश्रामपुर से विधायक चुना गया, जिसके बाद एकीकृत बिहार में उन्हें श्रम मंत्री का महत्वपूर्ण पदभार सौंपा गया। यह उनके लिए एक बड़ा अवसर था, जहां उन्होंने श्रमिकों के हितों के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए।
झारखंड राज्य के गठन के बाद भी उनकी राजनीतिक सक्रियता बनी रही। 2000 और 2009 में भी उन्होंने विश्रामपुर से विधायक के रूप में जीत हासिल की, जो क्षेत्र में उनकी लोकप्रियता और मजबूत पकड़ को दर्शाता है। इसके अतिरिक्त, उन्होंने 2004 में धनबाद से सांसद के रूप में भी कार्य किया, जिससे उनकी पहचान एक राष्ट्रीय स्तर के नेता के रूप में बनी। झारखंड सरकार में भी उन्होंने ग्रामीण विकास मंत्री का पद संभाला, जहां उन्होंने राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों के उत्थान के लिए अथक प्रयास किए।
मजदूरों के मसीहा: एक निडर योद्धा
ददई दुबे को विशेष रूप से मजदूर संगठन इंटक (INTUC) के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में उनकी भूमिका के लिए जाना जाता है। वे मजदूरों के हक की लड़ाई के लिए अपनी निडरता और प्रतिबद्धता के लिए विख्यात थे। सीसीएल (CCL) के राजहरा कोलियरी में 315 लोगों को नौकरी दिलवाने में उनकी भूमिका को आज भी याद किया जाता है। यह उनकी क्षमता और मजदूरों के प्रति समर्पण का प्रमाण था। उनकी ईमानदारी ऐसी थी कि विधायक निधि से होने वाले विकास कार्यों में उन्होंने कभी कमीशन नहीं लिया, जो उन्हें अन्य नेताओं से अलग बनाता था। सीसीएल में अधिकारियों के बीच उनका नाम खौफ पैदा करता था, क्योंकि वे मजदूरों के हितों की रक्षा के लिए किसी भी समझौते के लिए तैयार नहीं होते थे।
पारिवारिक क्षति और मुख्यमंत्री का शोक संदेश
ददई दुबे के तीन बेटों में से बड़े बेटे का पहले ही निधन हो चुका था, जिससे परिवार पर एक और दुख का पहाड़ टूट पड़ा है। उनके निधन से राज्य में राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में एक बड़ी रिक्तता पैदा हो गई है।
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ददई दुबे के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। उन्होंने अपने ‘X’ हैंडल पर लिखा, “झारखंड सरकार में पूर्व मंत्री और वरिष्ठ नेता आदरणीय श्री चंद्रशेखर दुबे (ददई दुबे) जी के निधन का दुःखद समाचार मिला। लंबे समय तक राजनीति में सक्रिय रहते हुए स्व. ददई दुबे जी लोगों के हक-अधिकार के लिए हमेशा आवाज उठाते रहे। उनका निधन राज्य के लिए अपूरणीय क्षति है। मरांग बुरु दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान कर शोकाकुल परिवारजनों को दुःख की यह घड़ी सहन करने की शक्ति दे।”
ददई दुबे का निधन झारखंड के राजनीतिक और श्रमिक आंदोलनों के लिए एक बड़ी क्षति है। उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा।