ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन (OIC) की भूमिका पर हमेशा सवाल उठते रहे हैं, खासकर पाकिस्तान से जुड़े मामलों में इसकी चुप्पी को लेकर। पाकिस्तान में आतंकवादी संगठनों के पनपने, जनता द्वारा चुने गए प्रधानमंत्री इमरान खान को जेल में डालकर सत्ता हथियाने, और बलूचिस्तान में मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन जैसे मुद्दों पर OIC की चुप्पी चौंकाने वाली है। वहीं, जब भारत पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई करता है, तो OIC सक्रिय हो जाता है और त्वरित प्रतिक्रिया देता है। यह विरोधाभासी रवैया OIC के घोषित उद्देश्यों पर गंभीर सवाल खड़े करता है
इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) की हालिया बैठकें अक्सर भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव का अखाड़ा बन जाती हैं, और इस बार भी ऐसा ही हुआ। पाकिस्तान ने अपनी चिर-परिचित रणनीति के तहत जम्मू-कश्मीर और सिंधु जल संधि के मुद्दे को उठाया, जिस पर OIC ने कुछ हद तक पाकिस्तान की भाषा में टिप्पणी की।

भारत ने इसका दृढ़ता से जवाब दिया, लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में जो बात सबसे ज़्यादा खटकती है, वह है OIC का दोहरा मापदंड और चयनात्मक चुप्पी। यह संगठन इस्लामी देशों के हितों की बात करता है, लेकिन जब बात पाकिस्तान में पल रहे आतंकवाद और आंतरिक राजनीतिक उथल-पुथल की आती है, तो उसकी चुप्पी गहरी हो जाती है।
OIC में पाकिस्तान का मुख्य एजेंडा हमेशा से जम्मू-कश्मीर रहा है। वह इसे एक “विवादित क्षेत्र” के रूप में प्रस्तुत करता है और भारत पर मानवाधिकार उल्लंघन का आरोप लगाता है। इस बार उसने सिंधु जल संधि को लेकर भी भारत पर “पानी रोकने” का आरोप लगाया, जो पूरी तरह से निराधार है। भारत ने तुरंत इन आरोपों का खंडन किया। विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और OIC को भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है। सिंधु जल संधि पर भी भारत ने अपनी स्थिति स्पष्ट की कि वह संधि का पूरी तरह से पालन कर रहा है और पाकिस्तान के आरोप बेबुनियाद हैं।
भारत ने OIC को याद दिलाया कि वह एक संप्रभु राष्ट्र है और अपने हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। यह पहली बार नहीं है जब भारत ने OIC के ऐसे बयानों पर आपत्ति जताई है। भारत लगातार OIC को उसकी आंतरिक राजनीति में हस्तक्षेप न करने की सलाह देता रहा है।
OIC की चयनात्मक चुप्पी: आतंकवाद और आंतरिक राजनीति पर मौन
यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि OIC, जो इस्लामी दुनिया के अधिकारों और न्याय की बात करता है, पाकिस्तान के भीतर पनप रहे आतंकवादी संगठनों पर पूरी तरह से चुप है। हाल ही में पहलगाम में हुआ आतंकी हमला, जिसमें निर्दोष नागरिकों ने अपनी जान गंवाई, एक ऐसी घटना थी जिस पर OIC को कड़ी निंदा करनी चाहिए थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
पाकिस्तान में सक्रिय जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठन, जिन्हें संयुक्त राष्ट्र द्वारा भी आतंकवादी घोषित किया गया है, खुलेआम भारत के खिलाफ जहर उगलता है और हमले की साज़िश रचता है। इन संगठनों को पाकिस्तान की धरती पर पनाह और समर्थन मिलता है, लेकिन OIC इस पर एक शब्द भी नहीं बोलता।
इतना ही नहीं, पाकिस्तान की आंतरिक राजनीतिक स्थिति पर भी OIC का मौन हैरान करने वाला है। पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को जिस तरह से एक चुनी हुई सरकार को अपदस्थ कर जेल में डाला गया, वह लोकतंत्र के सिद्धांतों के खिलाफ है।
किसी भी लोकतांत्रिक देश में इस तरह का घटनाक्रम गंभीर चिंता का विषय होता है। OIC, जो मुस्लिम देशों में मानवाधिकारों और सुशासन की वकालत करता है, उसे इस मामले पर अपनी आवाज़ उठानी चाहिए थी। लेकिन OIC ने इस पर भी चुप्पी साधे रखी। यह दर्शाता है कि OIC अपने सदस्यों के प्रति एक दोहरा मापदंड अपनाता है, जहाँ कुछ देशों के आंतरिक मामलों पर वह मुखर होता है, वहीं कुछ अन्य देशों, विशेषकर पाकिस्तान जैसे देशों के गंभीर आंतरिक मुद्दों पर वह चुप्पी साध लेता है।
OIC की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न
OIC का यह दोहरा मापदंड उसकी विश्वसनीयता पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगाता है। यदि यह संगठन वास्तव में इस्लामी दुनिया के हितों का प्रतिनिधित्व करना चाहता है, तो उसे निष्पक्ष और न्यायपूर्ण तरीके से कार्य करना होगा। उसे आतंकवाद को हर रूप में निंदा करनी होगी, चाहे वह किसी भी देश से उत्पन्न हो। उसे लोकतांत्रिक मूल्यों और मानवाधिकारों का हर जगह सम्मान करना होगा, न कि केवल चुनिंदा मामलों में। जब तक OIC अपने सदस्य देशों की गलतियों पर आँखें मूंदता रहेगा और चयनात्मक न्याय करता रहेगा, तब तक उसकी प्रासंगिकता और प्रभावशीलता पर सवाल उठते रहेंगे।
भारत ने OIC को बार-बार यह संदेश दिया है कि उसे पाकिस्तान के दुष्प्रचार का शिकार नहीं होना चाहिए। भारत एक बहुलवादी, लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है जहाँ सभी धर्मों के लोग शांति और सद्भाव से रहते हैं।
जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और इस पर किसी भी बाहरी हस्तक्षेप को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। OIC को समझना होगा कि आतंकवाद एक वैश्विक खतरा है और इसे किसी भी राजनीतिक एजेंडे के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।
OIC को अपनी नीतियों पर गंभीरता से पुनर्विचार करना होगा। उसे यह समझना होगा कि आतंकवाद का समर्थन करने वाले देश अंततः स्वयं ही इसके शिकार होते हैं। उसे मुस्लिम देशों के बीच वास्तविक सहयोग और सद्भाव को बढ़ावा देना चाहिए, न कि विभाजनकारी एजेंडा को। यदि OIC अपनी विश्वसनीयता बनाए रखना चाहता है, तो उसे निष्पक्षता, न्याय और मानवाधिकारों के सिद्धांतों का पालन करना होगा, चाहे मामला कोई भी हो और देश कोई भी हो। भारत अपनी संप्रभुता और अखंडता की रक्षा के लिए हमेशा दृढ़ रहेगा और किसी भी बाहरी दबाव के आगे नहीं झुकेगा।
OIC के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह अपनी प्राथमिकताएं तय करे: क्या वह राजनीतिक खेल का मोहरा बनना चाहता है या वास्तव में इस्लामी दुनिया के लिए एक प्रभावी और विश्वसनीय मंच बनना चाहता है?


