भा रत में आज वोट बैंक की राजनीति में हिन्दू मुस्लिम और धर्म जाति के नाम पर भेद किया जा रहा है. वैसे में हमारे इतिहास में कई ऐसे प्रेरक पुरुष हैं जिनकी बलिदान ने यह साबित कर दिया की हम भले हीं धर्म और जाति में बंटे हैं लेकिन हमारे दिल में अपने वतन के लिए वहीं जज्बा है जो हर भारतीय में होना चाहिए.चाहे वे किसी भी धर्म या जाति सें हैं लेकिन वे सिर्फ और सिर्फ भारतीय हैं.

ऐसे हीं हमारे देश के बीर पुरुष सपूत थे परमवीर चक्र विजेता शहीद अब्दुल हमीद. जिन्होंने अपने वतन के लिए 1965 के पाक-हिन्द युद्ध में साहस का परिचय देते हुए पाक सैनिक के छक्के छुड़ा दिया था.और युद्ध करते करते शहीद हो गए थे.
वह 10 सितंबर 1965 का दिन था. भारत-पाकिस्तान युद्ध में उन्होंने आरसीएल गन से अमेरिका निर्मित पैटन टैंकों को ध्वस्त किया था। अकेले युद्ध के मैदान में पाकिस्तानी सेना को कड़ी चुनौती दी थी.उनके इस बीरता के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से नवाजा गया था।
वीर अब्दुल हमीद उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के धामूपुर गांव के निवासी थे। जंग के मोर्चे पर जाने से पहले उनके साथ क्या घटा उसे लेकर लोगों ने कई रोचक बातें बताईं।
वीर अब्दुल हमीद के पोते जमील आलम ने बताया कि उनकी दादी से उन्हें मालूम हुआ कि जब उनके दादा वीर अब्दुल हमीद 1965 के युद्ध लड़ने जा रहे थे तब कई ऐसी घटनाएं हुई जिससे घर वाले बेहद विचलित हुए थे. घर से निकलते समय बिल्ली ने रास्ता काट दिया था. समान बांधते समय होल्डॉल के चमड़े का पट्टा भी टूट गया था. बाद में जैसे तैसे होल्डाल को बांधकर साइकिल पर स्टेशन ले जाने के लिए रखा गया. रास्ते में साइकिल की चेन टूट गई.जिस ट्रेन को अब्दुल हमीद को पकड़ता था. वह ट्रेन छूट गई.अब्दुल हमीद को दूसरी ट्रेन पकड़नी पड़ी.
कई अपशकुन हुए
विदा होते समय अब्दुल हमीद ने जब अपने पिता को अलविदा कहा, तो पिता ने कहा, घर से चलते समय कई अपशकुन हुए हैं. पहले बिल्ली ने रास्ता काटा, होल्डॉल का पट्टा टूटा, साइकिल की चेन टूटी इसके बाद ट्रेन ही छूट गई. मन कुछ अच्छा नहीं है. यह सुनकर वीर अब्दुल हमीद ने कहा, अगर मैं युद्ध से वापस नहीं लौटा तो कुछ ऐसा कर जाऊंगा कि देश को गर्व होगा.
जिगरी दोस्त से रहा नहीं गया
इसके बाद वीर अब्दुल हमीद अपने जिगरी दोस्त बाबू बच्चा सिंह से गले मिले. बच्चा सिंह और अब्दुल हमीद की दोस्ती इतनी गहरी थी कि उनकी बात सुनकर बच्चा सिंह बोले, अगर आपको युद्ध के मोर्चे से वापस नहीं आना है तो मेरी भी यही कामना है कि जिस गोली से आपकी शहादत हो उसका कुछ हिस्सा मेरे लिए भी तय हो. बहरहाल, 10 सितंबर 1965 को वीर अब्दुल हमीद ने अकेले 7 पैटन टैंक ध्वस्त कर दिए. इसके छह साल बाद उनके जिगरी दोस्त बच्चा सिंह की मौत भी गोली लगने से हुई.
वीर अब्दुल हमीद के पोते जमील का कहना है, दादा के नहीं रहने के बाद परिवार बेहद मुफलिसी के दौर से गुजर रहा था. बच्चा सिंह ही वह शख्स थे जो वीर अब्दुल हमीद की दोस्ती को ध्यान में रखकर उनके परिजन का अच्छे-बुरे हर वक्त में ख्याल रखते थे.अनाज से लेकर परिवार की हर जरूरत पर बच्चा सिंह मदद करते रहे.
बचपन से ही निशानेबाजी और कुश्ती में रही दिलचस्पी
वीर अब्दुल हमीद का जन्म उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के धामूपुर गांव में 1 जुलाई, 1933 में हुआ था.बचपन में ही उन्होंने भारतीय सेना का हिस्सा बनने का सपना देखना शुरू कर दिया था. इनके पिता पेशे से दर्जी थे, तो आर्मी का हिस्सा बनने से पहले वो अपने पिता की मदद करते थे. हालांकि, इसमें उन्हें खास दिलचस्पी नहीं थी, उनकी दिलचस्पी लाठी चलाने, कुश्ती करने और निशानेबाजी में थी.
पत्ते खाकर जिंदा रहे वीर हमीद
20 साल की उम्र में अब्दुल हमीद ने वाराणसी में भारतीय सेना की वर्दी पहनी. ट्रेनिंग के बाद उन्हें 1955 में 4 ग्रेनेडियर्स में पोस्टिंग मिली.1962 की लड़ाई के दौरान उनको 7 माउंटेन ब्रिगेड, 4 माउंटेन डिवीजन की ओर से युद्ध के मैदान में भेजा गया.उनकी पत्नी रसूलन बीबी ने बताया कि शादी के बाद यह उनका पहला युद्ध था, जिस दौरान वह जंगल में भटक गए थे और कई दिनों बाद घर लौटे थे। रसूलन बीबी ने यह भी बताया कि उस दौरान हामिद ने पत्ते खाकर खुद को जिंदा रखा था.
युद्ध के 10 दिन पहले छुट्टी पर आए थे हमीद
8 सितंबर, 1965 को अब्दुल हमीद पंजाब के तरनतारन जिले के केमकपण सेक्टर में तैनात थे.युद्ध के 10 दिन पहले ही वो छुट्टी पर अपने घर गए थे। इसी बीच, पाक की ओर से तनाव बढ़ने लगा, जिसके बाद सभी जवानों को ड्यूटी पर वापस बुलाया गया.
अजेय कहे जाने वाली टैंक को बनाया निशाना
पाकिस्तान ने उस समय के अमेरिकन पैटन टैंकों से खेमकरण सेक्टर के असल उताड़ गांव पर हमला कर दिया। उस समय ये अमेरिकन टैंक अपराजेय माने जाते थे। अब्दुल हमीद की जीप 8 सितंबर, 1965 को सुबह 9 बजे चीमा गांव के बाहरी इलाके में गन्ने के खेतों से गुजर रही थी। उसी दौरान उन्हें टैंकों के आने की आवाज सुनाई दी और कुछ ही देर में टैंक दिखने भी लग गया। इसके बाद हामिद ने गन्ने के खेत का फायदा उठाया और वहीं छिप गए।
चार पाकिस्तानी टैंकों को मिट्टी में मिलाया.
वह इंतजार कर रहे थे कि पाकिस्तानी टैंक उनके रिकॉयलेस की रेंज में आए और वो दुश्मनों के टैंक को मिट्टी में मिला दें और ऐसा ही हुआ। उस दौरान अब्दुल के साथ ड्राइवर की सीट पर उनका एक साथी भी मौजूद था। उनके साथी ने बताया कि जैसे ही टैंक उनकी रेंज में आया, उन्होंने फायरिंग करते हुए एक साथ चार पाकिस्तानी टैंकों को ध्वस्त कर दिया.
परमवीर चक्र के लिए भेजी गई सिफारिश
इस बात की जानकारी 9 सितंबर, 1965 को आर्मी हेडक्वार्टर मे पहुंच गई और उनको परमवीर चक्र देने की सिफारिश की गई। इसके अगले दिन यानि 10 सितंबर को अब्दुल ने अपनी बहादुरी का प्रदर्शन करते हुए पाकिस्तान के तीन अन्य टैंकों को भी ध्वस्त कर दिया.
आठवीं टैंक को ध्वस्त करते हुए दिया बलिदान
तीन टैकों को ध्वस्त करने के बाद अब्दुल एक और टैंक को निशाना बनाने जा रहे थे, तभी पाकिस्तानी सेना की नजर उन पर पड़ गई. इसके बाद पाकिस्तानी सेना ने चारों ओर से फायरिंग शुरू कर दी। हालांकि, इसके बाद भी अब्दुल डटे रहे और पाकिस्तानी सेना की आठवीं टैंक को भी ध्वस्त कर दिया। चारों ओर से निशाना बनाए जाने के कारण वतन के वीर पुत्र ने अपनी जिंदगी की कुर्बानी दे दी.
मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित
अब्दुल हमीद के अदम्य साहस और वीरता के लिए मरणोपरांत उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। इसके बाद 28 जनवरी, 2000 को भारतीय डाक विभाग ने वीरता पुरस्कार विजेताओं के सम्मान में पांच डाक टिकटों के सेट में 3 रुपये का डाक टिकट जारी किया। इस डाक टिकट पर वीर अब्दुल हमीद की तस्वीर थी, जिसमें वो रिकॉयलेस राइफल से गोली चलाते हुए जीप पर सवार नजर आ रहे हैं.
अमेरिका तक गूंजी थी हमीद की बहादुरी
वीर अब्दुल हमीद की बहादुरी की गूंज अमेरिका तक पहुंच गई थी। अमेरिका हैरान था कि उनके अजेय कहे जाने वाली टैंक को एक साधारण दिखने वाली रिकॉयलेस गन से कैसे ध्वस्त किया जा सकता है। अमेरिका ने अपने अजेय टैंक की दोबारा समीक्षा की थी। आज भी यह अमेरिका के लिए पहेली बनी हुई है कि आखिर एक साधारण गन से उनके टैंकों को किस तरह से नष्ट किया गया है.


