1987 में मुंबई में आयोजित भाजपा के राष्ट्रीय अधिवेशन में झारखंड के धनबाद जिले से हम कई कार्यकर्ता, तत्कालीन दिग्गज क्रांतिकारी नेता समरेश सिंह के नेतृत्व में भाग लेने गए थे। यह अधिवेशन राजनीतिक रूप से जितना महत्वपूर्ण था, उतना ही यादगार मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से था, क्योंकि इसी दौरान मुझे असरानी जी जैसे महान कलाकार से मिलने का अवसर मिला।
बलदेव महतो
भा रतीय सिनेमा के एक प्रकाश स्तंभ, महान अभिनेता असरानी जी के निधन की खबर से पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई है। यह खबर सिनेमा प्रेमियों और विशेष रूप से उनके चाहने वालों के लिए एक युग के अंत जैसी है।
उनके निधन क़ी खबर से मुझे भी गहरा धक्का लगा मैं, बलदेव महतो, जो वर्तमान में भाजपा धनबाद जिला ग्रामीण का उपाध्यक्ष हूँ, और असरानी जी का फैन भी, इस खबर से गहरे दुख में हूँ।
असरानी जी के निधन की खबर ने मुझे साल 1987 के उन सुनहरे दिनों की याद दिला दी, जब मुझे मुंबई में भाजपा के राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान इस महान कलाकार से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।
मैं आपको बताता हूँ कि वह मुलाकात मेरे जीवन के अविस्मरणीय पलों में से एक है। 1987 में मुंबई में आयोजित भाजपा के राष्ट्रीय अधिवेशन में झारखंड के धनबाद जिले से हम कई कार्यकर्ता, तत्कालीन दिग्गज क्रांतिकारी नेता समरेश सिंह के नेतृत्व में भाग लेने गए थे। यह अधिवेशन राजनीतिक रूप से जितना महत्वपूर्ण था, उतना ही यादगार मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से था, क्योंकि इसी दौरान मुझे असरानी जी जैसे महान कलाकार से मिलने का अवसर मिला।
उस समय असरानी जी अपनी फिल्म ‘बाप नंबरी बेटा दस नंबरी’ की शूटिंग जुहू चौपाटी, बॉम्बे (अब मुंबई) में कर रहे थे। इस फिल्म में उनके साथ कादर खान और शक्ति कपूर जैसे दिग्गज कलाकार भी थे। हमें और मेरे साथी कार्यकर्ताओं को शूटिंग देखने का मौका मिला। जुहू चौपाटी पर फिल्मी माहौल और बड़े-बड़े कलाकारों को देखना अपने आप में एक रोमांचक अनुभव था। लेकिन जो बात इस अनुभव को और खास बनाती है, वह थी असरानी जी की सादगी और उनका मिलनसार स्वभाव।
मुझे आज भी वह दिन याद है, “असरानी जी जितने बड़े कलाकार थे, उतने ही सरल उनका स्वभाव था। जब हम उनसे मिले, तो उन्होंने बिना किसी अभिमान के उन्होंने हमसे हाथ मिलाया। उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रखकर बड़े आत्मीय ढंग से बात की, जैसे वह हमें बरसों से जानते हों।” यह क्षण मेरे लिए किसी सपने से कम नहीं था। एक ऐसे कलाकार से मिलना, जिसकी कॉमेडी ने लाखों चेहरों पर मुस्कान बिखेरी थी, और फिर उनकी इतनी आत्मीयता देख मैं अभिभूत हो गया था।
असरानी जी, जिनका पूरा नाम गोवर्धन असरानी था, ने अपने अभिनय करियर में सैकड़ों फिल्मों में काम किया। उन्होंने न केवल कॉमेडी में अपनी एक अलग पहचान बनाई, बल्कि गंभीर भूमिकाओं में भी अपनी बहुमुखी प्रतिभा का लोहा मनवाया। उनकी संवाद अदायगी, उनकी शारीरिक भाषा और उनके अनूठे अंदाज ने उन्हें दर्शकों का प्रिय बना दिया। ‘शोले’ के जेलर से लेकर ‘चुपके चुपके’ के प्रोफेसर तक, उनके हर किरदार ने अपनी एक अलग छाप छोड़ी। असरानी जी सिर्फ एक अभिनेता नहीं थे, बल्कि वह एक ऐसे कलाकार थे, जो अपने अभिनय से लोगों के दिलों में उतर जाते थे।
मैं कह सकता हूँ कि असरानी जी की उस आत्मीय मुलाकात की यादें मेरे मन में हमेशा ताजा रहेंगी। आज उनके निधन की खबर सुनकर मैं पुराने दिनों में खो गया। मैंने ईश्वर से प्रार्थना की कि असरानी जी की आत्मा को शांति मिले और उन्हें प्रभु श्री राम अपने श्री चरणों में स्थान दें।
असरानी जी का निधन निश्चित रूप से भारतीय सिनेमा के लिए एक अपूरणीय क्षति है। उन्होंने न केवल अपनी कला से लोगों का मनोरंजन किया, बल्कि अपनी सादगी और विनम्रता से भी कई लोगों को प्रेरित किया। उनके जाने से सिनेमा जगत में एक ऐसा शून्य पैदा हो गया है, जिसे भरना मुश्किल होगा। लेकिन उनकी फिल्में और उनके किरदार हमेशा हमारी यादों में जीवित रहेंगे, हमें हंसाते रहेंगे और कभी-कभी नम आंखों से उन्हें याद करने पर मजबूर करते रहेंगे।
असरानी जी को एक सच्चा कलाकार, एक महान इंसान और एक अविस्मरणीय व्यक्तित्व के रूप में हमेशा याद किया जाएगा। उनकी विरासत आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी