भारत विश्वगुरु की पदवी यूं ही नहीं प्राप्त कर रहा। प्राचीन विश्वविद्यालयों द्वारा दिया गया ज्ञान, संस्कृति, विज्ञान, और मानवता का संदेश आज भी प्रासंगिक है. इनके पुनर्जागरण और संरक्षण की आवश्यकता है, ताकि भारतीय शिक्षा की गौरवशाली परंपरा को संपूर्ण विश्व के लिए मार्गदर्शक बनाया जा सके. जानिए भारत के कौन कौन प्राचीन विश्व विद्यालय था
विनोद आनंद
भा रत के प्राचीन विश्वविद्यालयों ने न केवल भारतीय सभ्यता के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, बल्कि वे तत्कालीन विश्व के सबसे बड़े शिक्षा केंद्र भी रहे. इन संस्थानों में उच्चस्तरीय ज्ञान-विज्ञान, दर्शन, चिकित्सा, गणित, खगोल, साहित्य, कला, धर्म और अन्यानेक विषयों पर गहन अध्ययन-अनुसंधान होता था. इनकी महत्वता और उपलब्धियाँ आज भी भारतीय गौरव का प्रतीक हैं।
नालंदा विश्वविद्यालय
ना लंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 5वीं शताब्दी में गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम द्वारा की गई थी. यह बिहार राज्य में स्थित विश्व प्रसिद्ध शिक्षा केंद्र रहा, जहाँ 10,000 से अधिक विद्यार्थी और 2,000 शिक्षक विद्यमान थे. यहाँ जीविका, बौद्ध धर्म, चिकित्सा, गणित, खगोल विज्ञान, व्याकरण, तर्कशास्त्र, और दर्शन जैसे विषयों की पढ़ाई होती थी. नालंदा में चीनी, तिब्बती, कोरियाई, जापानी, इंडोनेशियन और विभिन्न देशों के छात्र अध्ययन करने आते थे. इसका अंत 1193 में बख्तियार खिलजी के आक्रमण से हुआ, जिससे यहाँ की समृद्ध पुस्तकालयें व शोध ग्रंथ नष्ट कर दिए गए. वर्तमान में नालंदा के खंडहर देखे जा सकते हैं; 2010 में भारत सरकार ने नया नालंदा विश्वविद्यालय स्थापित कर इसकी गौरवशाली परंपरा को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया.
तक्षशिला विश्वविद्यालय
तक्षशिला विश्वविद्यालय भारत की सर्वाधिक प्राचीन शिक्षा संस्थानों में है, जिसका समय 7वीं शताब्दी ईसा पूर्व का माना जाता है. विद्या प्राप्ति हेतु भरत के पुत्र तक्ष द्वारा स्थापना किए जाने की मान्यता है, यद्यपि वास्तविक संस्थापक अज्ञात है. यह वर्तमान पाकिस्तान के रावलपिंडी जिले के पास स्थित था. तक्षशिला शिविर के छात्र चिकित्सा, आयुर्वेद, तर्कशास्त्र, युद्धकला, राजनीति विज्ञान आदि सीखते थे. चिकित्सा शास्त्र में आचार्य चरक, राजनीति में आचार्य चाणक्य तथा आयुर्वेद में आचार्य जीवक ने यहीं से शिक्षा ग्रहण की थी. 5वीं शताब्दी में हूण आक्रमण के बाद इस विश्वविद्यालय का अंत हुआ. अब इसके भग्नावशेष ही हैं.
विक्रमशिला विश्वविद्यालय
बि हार के भागलपुर जिले में स्थित विक्रमशिला विश्वविद्यालय 8वीं शताब्दी में पाल सम्राट धर्मपाल द्वारा स्थापित हुआ. यह विशेष रूप से बौद्ध शिक्षा व अध्यन का केंद्र था, जहाँ तंत्र, तर्क, व्याकरण, आध्यात्मिक ज्ञान की उत्कृष्ट शिक्षा दी जाती थी. विशेष बात यह थी कि देश-विदेश से आने वाले श्रमणों व बौद्ध भिक्षुओं के लिए अनुकूल वातावरण प्राप्त होता था. इसका अवसान 1203 में बख्तियार खिलजी के द्वारा किया गया, जिसके बाद यह केवल खंडहर बनकर रह गया है.
बल्लभी विश्वविद्यालय
गु जरात के भावनगर जिले में स्थित बल्लभी विश्वविद्यालय की स्थापना 5वीं शताब्दी में मैत्रक वंश के शासकों द्वारा की गयी थी. यहाँ बौद्ध, जैन, और हिन्दू धर्म के शास्त्र, साहित्य, अर्थशास्त्र, गणित सहित अन्य विषयों की पढ़ाई होती थी. यह शिक्षा का प्रमुख केंद्र था, जहाँ दूर-दूर से विद्यार्थी आते थे. 8वीं शताब्दी में अरबों के आक्रमण से इसका अंत हुआ. आज इसके अवशेष मौजूद हैं, जो भारतीय विद्या के उत्कर्ष को दर्शाते हैं.
पुष्पगिरी विश्वविद्यालय
पुष्पगिरी विश्वविद्यालय का उल्लेख 3री शताब्दी ईस्वी में मिलता है, यद्यपि इसके संस्थापक का नाम अज्ञात है. यह वर्तमान ओडिशा राज्य में स्थित था, और ललितगिरि, उदयगिरि, रत्नागिरि के अवशेष इसके गौरवशाली इतिहास की पुष्टि करते हैं. यहाँ बौद्ध अध्ययन के अलावा विविध विषयों में शोध होता था. विश्वविद्यालय के अंत की जानकारी स्पष्ट नहीं है. शिक्षा के क्षेत्र में यह ओडिशा को विश्वमानचित्र पर लाया.
उदन्तपुरी विश्वविद्यालय
उदन्तपुरी विश्वविद्यालय 8वीं शताब्दी में पाल शासक गोपाल द्वारा बिहार के नालंदा जिले में स्थापित किया गया था. यह बौद्ध शिक्षा, तर्कशास्त्र, व्याकरण, चिकित्सा विज्ञान का महान केंद्र था. 12वीं शताब्दी के आरम्भ में बख्तियार खिलजी के आक्रमण ने इसकी समृद्धि को समाप्त कर दिया. वर्तमान में इसके खंडहर मिलते हैं.
सोमपुरा विश्वविद्यालय
सोमपुरा महाविहार का निर्माण 8वीं शताब्दी में पाल शासक धर्मपाल द्वारा किया गया. यह आधुनिक बांग्लादेश में स्थित है. बौद्ध, ब्राह्मण, और जैन धर्म के विद्वानों के लिए प्रमुख शोध केंद्र था. वास्तुकला की दृष्टि से सोमपुरा अद्भुत है. 13वीं शताब्दी में तुर्क शासकों के आक्रमण से इसका पतन हुआ. आज इसके अवशेष देखने योग्य हैं.
जालंधर विश्वविद्यालय
प्राचीन ग्रंथों में पंजाब के जालंधर क्षेत्र में विश्वविद्यालय होने का उल्लेख मिलता है. इसकी स्थापना, समाप्ति एवं अन्य तथ्य अज्ञात हैं, तथा कोई प्रमाणिक अवशेष विद्यमान नहीं हैं. इसका उल्लेख केवल साहित्यिक स्रोतों में मिलता है.
मिथिला विश्वविद्यालय
मिथिला विश्वविद्यालय प्राचीन जनक वंश द्वारा स्थापित माना जाता है. यह बिहार के मिथिला क्षेत्र में विद्या, तर्कशास्त्र, न्यायशास्त्र, साहित्य आदि के अध्ययन का प्रमुख केंद्र रहा. इसका पतन 14वीं शताब्दी में दिल्ली सल्तनत के आक्रमण से हुआ. नए युग में 1972 में ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय स्थापित किया गया.
कन्यकुब्ज विश्वविद्यालय
कन्यकुब्ज (कन्नौज) विश्वविद्यालय उत्तर प्रदेश के कन्नौज में स्थित माना जाता है. इसकी स्थापना, अंत एवं वर्तमान स्थिति के स्पष्ट ऐतिहासिक प्रमाण नहीं हैं; इसका उल्लेख केवल साहित्य में मिलता है.
शारदा पीठ विश्वविद्यालय
शारदा पीठ का उल्लेख प्राचीन काल में मिलता है, जिसमें तंत्र, वेद, शास्त्र, दर्शन आदि का अध्ययन होता था. यह कश्मीर में स्थित है, और आज पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में इसके खंडहर मौजूद हैं. 14वीं शताब्दी में मुस्लिम शासकों के आक्रमण से इसका पतन हुआ.
भारत के लिए महत्व और उपलब्धियाँ
शिक्षा और अनुसंधान
प्राचीन भारत के विश्वविद्यालयों ने समग्र शिक्षा प्रणाली को विकसित किया था, जिसमें ज्ञान का व्यापक क्षेत्र, प्रयोग, तर्क, विश्लेषण, और अनुसंधान समाविष्ट था. यहाँ की शिक्षा पद्धति विद्यार्थी के व्यक्तित्व, चरित्र तथा समाजोपयोगी ज्ञान के विकास पर केंद्रित थी. विशिष्ट शिक्षा, शिक्षक-शिष्य परंपरा, पुस्तकालयों का विस्तार, बहुभाषी वातावरण और वैश्विक छात्रवृत्ति इनका वैशिष्ट्य था.
वैश्विक प्रभाव
नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय न सिर्फ भारत अपितु एशिया, यूरोप तक प्रसिद्ध थे. विदेशी छात्रों-शोधकर्ताओं ने यहाँ से ज्ञान अर्जन कर अपने देश में शिक्षा पद्धति का विकास किया. ये विश्वविद्यालय वैश्विक सांस्कृतिक सेतु बने.
सामाजिक-सांस्कृतिक विकास
इन संस्थानों के माध्यम से भारतीय समाज में प्रगतिशीलता, तर्कशीलता, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, धार्मिक सहिष्णुता तथा सांस्कृतिक समन्वय का संवर्धन हुआ. यहाँ जाति, धर्म, देश की सीमाओं से ऊपर उठकर ज्ञान की साधना होती थी.
कला, साहित्य और विज्ञान का उत्थान
वेद, उपनिषद, न्यायशास्त्र, तर्कशास्त्र, गणित, चिकित्सा, व्याकरण, धर्म, खगोल विज्ञान आदि विषयों पर मूल शोध कार्य इन विश्वविद्यालयों की उपलब्धि रही. वास्तुकला, चित्रकला, संगीत, साहित्य का विकास भी इन्हीं केंद्रों से प्रेरित हुआ.
पतन के कारण और वर्तमान स्थिति
मुख्यतः विदेशी आक्रमण,
सामाजिक-राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक पतन, और शिक्षाप्रणाली में केंद्रियकरण के कारण इन विश्वविद्यालयों का पतन हुआ. चीनी यात्री हुइनसांग और इत्सिंग ने नालंदा और तक्षशिला की समृद्धि का उल्लेख किया है, लेकिन बख्तियार खिलजी, हूण, अरब, तुर्क आक्रमणकारियों ने इनको नष्ट कर दिया. आज भारत में इनके खंडहर ही बचे हैं. पुनर्निर्माण के प्रयास नालंदा, मिथिला आदि में हो रहे हैं, जो भारत के गौरव को पुनर्स्थापित करने का प्रयास है.
निष्कर्ष
भारत विश्वगुरु की पदवी यूं ही नहीं प्राप्त कर रहा। प्राचीन विश्वविद्यालयों द्वारा दिया गया ज्ञान, संस्कृति, विज्ञान, और मानवता का संदेश आज भी प्रासंगिक है. इनके पुनर्जागरण और संरक्षण की आवश्यकता है, ताकि भारतीय शिक्षा की गौरवशाली परंपरा को संपूर्ण विश्व के लिए मार्गदर्शक बनाया जा सके.