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बिहार विधानसभा चुनाव 2025: राजद का ‘EBC’ दांव – मंगनी लाल मंडल ने किया आज नामांकन, 19 जून क़ो राजद के आध्यक्ष के रूप में होंगी उनके नाम की घोषणा

ByBinod Anand

Jun 14, 2025

आज की तारीख में, राजद के प्रदेश अध्यक्ष पद की दौड़ में मंगनी लाल मंडल एक सशक्त चेहरे के रूप में उभरे हैं, जिन्हें राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव की मौन स्वीकृति मिल चुकी है. माना जा रहा है कि 19 जून को पटना के ज्ञान भवन में होने वाली राज्य परिषद की बैठक में उनके अध्यक्ष बनने की औपचारिक घोषणा होगी

बि हार में आने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी सरगर्मियां तेज हो गई हैं. भाजपा, जदयू, कांग्रेस और प्रशांत किशोर की पार्टी अपनी-अपनी गोटियां फिट करने में जुटे हैं, वहीं बिहार की सबसे बड़ी विनिंग पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल (राजद), बेहद सावधानी से आगे बढ़ रही है. राजद के गठन के साथ ही “बिहार की जनता को सामाजिक न्याय मिले और दबे-कुचले लोग आगे बढ़ें” का नारा रहा है. इस अभियान में उन्हें काफी सफलता भी मिली है, और कई ऐसे चेहरे सामने आए हैं जो समाज के कुछ विशेष वर्गों द्वारा शोषित और पीड़ित थे.

लालू यादव की राजनीति हमेशा से अमीर-गरीब की खाई को पाटने और सभी समुदायों को सामाजिक न्याय दिलाने की रही है, और इसमें वे सफल भी रहे हैं. इस बार के चुनाव में अति पिछड़ा वर्ग (EBC) समुदाय के वोट बैंक को साधने के लिए जहाँ एनडीए भी पुरजोर कोशिश कर रही है, वहीं राजद भी इसी रणनीति पर काम कर रही है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बार के चुनाव में EBC समुदाय की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण होगी, और इस वोट बैंक के लिए राजद के पास एक बड़ा चेहरा है – मंगनी लाल मंडल, जिन पर राजद दांव लगाने की तैयारी कर रही है.

मंगनी लाल मंडल का प्रदेश अध्यक्ष बनना तय

आज की तारीख में, राजद के प्रदेश अध्यक्ष पद की दौड़ में मंगनी लाल मंडल एक सशक्त चेहरे के रूप में उभरे हैं, जिन्हें राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव की मौन स्वीकृति मिल चुकी है. माना जा रहा है कि 19 जून को पटना के ज्ञान भवन में होने वाली राज्य परिषद की बैठक में उनके अध्यक्ष बनने की औपचारिक घोषणा होगी. इसके साथ ही, वर्तमान अध्यक्ष जगदानंद सिंह की जगह मंगनी लाल मंडल का बिहार राजद अध्यक्ष बनना तय माना जा रहा है. इस दौड़ में लालू प्रसाद यादव के करीबी रहे आलोक मेहता को पीछे हटना पड़ेगा.

आखिर क्यों मंगनी लाल मंडल का पक्ष है मजबूत?

राजद प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में आलोक मेहता और मंगनी लाल मंडल दोनों ही प्रबल दावेदार थे. मंगनी लाल मंडल धानुक समुदाय से आते हैं, जो अत्यंत पिछड़ी जाति (EBC) में आती है. बिहार में धानुक समुदाय की कुल आबादी लगभग 2.14% है, जिसकी संख्या 27 लाख 96 हजार 605 बताई गई है. अकेली उपजाति के तौर पर यह संख्या बहुत अधिक नहीं लगती, लेकिन यह EBC समुदाय में जुड़कर जब गोलबंदी बनती है, तो 30-35% वोटरों का प्रतिनिधित्व करती है.

राजनीति के जानकार कहते हैं कि लालू यादव की खांटी पॉलिटिक्स हमेशा से सामाजिक समीकरणों पर टिकी रही है. उनका मुख्य आधार MY यानी मुस्लिम-यादव गठजोड़ समीकरण रहा है. लेकिन, अब वे EBC और दलित वोटरों को जोड़कर एनडीए के वोट बैंक में सेंध लगाना चाहते हैं. इसी कड़ी में मंगनी लाल मंडल की नियुक्ति EBC को साधने का सबसे सटीक दांव है.

EBC, जिसे खासकर “पचपनिया समूह” की जाति कहा जाता है, यह 55 जातियों का समूह है. यह वोट बैंक कभी राजद का रहा था, लेकिन नीतीश कुमार ने इसी वोट बैंक में सेंधमारी कर बिहार में सत्ता हासिल की. हालांकि, इस जाति के लोगों का मानना है कि नीतीश कुमार ने उन्हें न तो पर्याप्त राजनीतिक भागीदारी दी और न ही राज्य में उनके रोजगार की उचित व्यवस्था की. परिणामस्वरूप, इस जाति का मोहभंग भाजपा और जदयू से हो गया है, और वे प्रवासी बनकर महानगरों में पलायन के लिए विवश रहे हैं. इस बार उनकी नाराजगी नीतीश कुमार से और भी अधिक है. भाजपा और जदयू के नीति-निर्धारकों में नीतीश की क्षीण होती स्थिति और बुढ़ापे के कारण कथित तौर पर उनकी मानसिक स्थिति पर उठते सवालों के बीच, EBC समुदाय को साधने के लिए राजद के पास एक बेहतरीन अवसर है, और मंगनी लाल मंडल इसके लिए एक बड़ा चेहरा हैं.

आलोक मेहता का पक्ष क्यों है कमजोर?

लालू यादव की राजनीति सामाजिक समीकरणों पर टिकी है. आलोक मेहता को राजद का बिहार अध्यक्ष न बनाकर लालू यादव ने मंगनी लाल मंडल को इसलिए चुना है, ताकि EBC के साथ-साथ मिथिलांचल में भी अपने प्रभाव को मजबूत किया जा सके.

वैसे, आलोक मेहता राजद के वरिष्ठ नेता और लालू यादव के करीबी रहे हैं. वे समस्तीपुर के उजियारपुर से राष्ट्रीय जनता दल के विधायक हैं. पूर्व सांसद रह चुके आलोक मेहता बिहार सरकार में शिक्षा और राजस्व मंत्री भी रह चुके हैं. वे कुशवाहा समाज से आते हैं, जो बिहार में करीब 4-6% वोट बैंक की हिस्सेदारी रखता है.

वोट बैंक के साथ-साथ उनकी सौम्य छवि और संगठन में स्वीकार्यता उन्हें बिहार राजद अध्यक्ष पद का मजबूत दावेदार बनाती थी. उनका अध्यक्ष बनना लगभग तय माना जा रहा था. लेकिन, हाल ही में वैशाली कोऑपरेटिव बैंक घोटाले में ईडी की छापेमारी ने उनके नाम को विवादों में ला दिया. हालांकि, राजद ने इसे राजनीति से प्रेरित करार दिया था, लेकिन अब उन्हें बिहार राजद अध्यक्ष न बनाकर संभव है कि लालू यादव राजद की छवि को खराब नहीं करना चाहते हैं.

मिथिलांचल में राजद की खोई जमीन पाने की कोशिश

 

झंझारपुर से पूर्व सांसद, बिहार विधान परिषद सदस्य (1986-2004) और राज्यसभा सांसद (2004-2009) रह चुके मंगनी लाल मंडल मिथिलांचल में प्रभावशाली नेता माने जाते हैं. जदयू में 5 साल बिताने के बाद उनकी राजद में वापसी और तुरंत अध्यक्ष पद की दौड़ में आगे बढ़ना लालू यादव की EBC केंद्रित रणनीति को दर्शाती है.

इसके साथ ही, राजनीति के जानकारों की नजर में मंगनी लाल मंडल को बिहार राजद का अध्यक्ष बनाया जाना मिथिलांचल में अपनी खोई राजद की जमीन को वापस पाने की कवायद कही जा रही है.

कितना सफल होगा राजद का यह सियासी चाल?

बहरहाल, लालू यादव की यह सियासी चाल 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले राजद को संगठनात्मक रूप से मजबूत करने और एनडीए को टक्कर देने की एक कोशिश है. राजनीति के जानकारों के अनुसार, लोकसभा चुनाव में हार के बाद लालू-तेजस्वी ने आत्ममंथन किया और मंगनी लाल का चयन उसी का नतीजा है. अब यह देखना बाकी है कि लालू की यह खांटी पॉलिटिक्स कितनी कामयाब होती है, लेकिन फिलहाल मंगनी लाल ने आलोक मेहता को पछाड़कर राजद के सियासी मैदान में चौका जड़ दिया है. हालांकि, यह भी कहा जा रहा है कि आलोक मेहता को बिहार राजद का अध्यक्ष नहीं बनाकर लालू यादव ने उन्हें भविष्य में सरकार में बड़ा चेहरा बनाने का संकेत दिया है, ताकि कुशवाहा वोट बैंक को भी साधा जा सके.

यह देखना दिलचस्प होगा कि राजद का यह EBC और मिथिलांचल केंद्रित दांव 2025 के विधानसभा चुनावों में कितना असरदार साबित होता है और क्या वे नीतीश कुमार के पारंपरिक EBC वोट बैंक में सेंध लगा पाएंगे.

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