मधुबनी जिला स्थित झंझारपुर प्रखंड के उसरहा मंडल टोल के लगभग 300 निवासी, जिनमें 51 परिवार शामिल हैं, 2019 की विनाशकारी बाढ़ के बाद से विस्थापन का दंश झेल रहे हैं। कमला नदी के पश्चिमी तट पर जल संसाधन विभाग की पुरानी आईवी में पॉलिथीन के टेंटों के नीचे ये लोग पिछले छह सालों से पुनर्वास की आस लगाए बैठे हैं। सरकार और प्रशासन द्वारा लगातार मिल रहे आश्वासनों के बावजूद, जमीन पर कोई ठोस काम नहीं हुआ है, जिससे इन विस्थापितों का सब्र टूट रहा है।
मधुबनी, उसरहा मंडल टोल के लगभग 300 निवासी, जिनमें 51 परिवार शामिल हैं, 2019 की विनाशकारी बाढ़ के बाद से विस्थापन का दंश झेल रहे हैं। कमला नदी के पश्चिमी तट पर जल संसाधन विभाग की पुरानी आईवी में पॉलिथीन के टेंटों के नीचे ये लोग पिछले छह सालों से पुनर्वास की आस लगाए बैठे हैं। सरकार और प्रशासन द्वारा लगातार मिल रहे आश्वासनों के बावजूद, जमीन पर कोई ठोस काम नहीं हुआ है, जिससे इन विस्थापितों का सब्र टूट रहा है।: झंझारपुर प्रखंड के नरूआर पंचायत स्थित उसरहा मंडल टोल के लगभग 300 निवासी, जिनमें 51 परिवार शामिल हैं, 2019 की विनाशकारी बाढ़ के बाद से विस्थापन का दंश झेल रहे हैं। कमला नदी के पश्चिमी तट पर जल संसाधन विभाग की पुरानी आईवी में पॉलिथीन के टेंटों के नीचे ये लोग पिछले छह सालों से पुनर्वास की आस लगाए बैठे हैं। सरकार और प्रशासन द्वारा लगातार मिल रहे आश्वासनों के बावजूद, जमीन पर कोई ठोस काम नहीं हुआ है, जिससे इन विस्थापितों का सब्र टूट रहा है।

मुख्यमंत्री के आदेशों की अनदेखी: एक गंभीर प्रश्न
विडंबना यह है कि स्वयं मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने दो बार इस जगह का निरीक्षण किया है और प्रशासन को शीघ्र पुनर्वास का आदेश दिया था। इसके बावजूद, छह साल बीत जाने के बाद भी स्थिति जस की तस बनी हुई है। इस लंबी प्रतीक्षा के कारण कई परिवार पलायन करने को मजबूर हो गए हैं। यह न केवल राज्य सरकार के अधिकार को कमजोर करता है, बल्कि प्रशासन में जनता के विश्वास को भी पूरी तरह से खत्म कर देता है। वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों के स्पष्ट निर्देशों और दिशा-निर्देशों के बावजूद, स्थानीय प्रशासनिक निकाय इन आदेशों को लागू करने के लिए आवश्यक कदम उठाने में अनिच्छुक दिख रहे हैं।
यह बिहार के विकास की कड़वी हकीकत है। यदि इस हकीकत को जानना है, तो मौके पर जाकर देखें। यह सवाल उठता है कि सिर्फ विशेषाधिकार प्राप्त लोगों की ही बात क्यों सुनी जाती है, जबकि गरीब अनुसूचित जातियों की आवाज को क्यों अनसुना किया जा रहा है? अति पिछड़ा के मसीहा कहे जाने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी से पटना में पांच बार जनता दरबार में मिलने और गुहार लगाने के बाद भी, मुख्यमंत्री स्वयं अचंभित हुए कि इन लोगों का अभी तक पुनर्वास नहीं हुआ है। उन्होंने तुरंत मुख्य सचिव को आदेश दिया कि इन लोगों को जल्द से जल्द बाशगीत पर्चा वाली जगह पर अविलंब पुनर्वास कराया जाए, लेकिन उनके आदेशों को लागू करने में भी प्रशासन विफल रहा। यह स्थिति प्रशासनिक उदासीनता और अक्षमता का एक जीता-जागता उदाहरण है।
जल संसाधन मंत्री और सांसद: वादों से आगे नहीं बढ़ी बात
तत्कालीन जल संसाधन मंत्री और वर्तमान राज्यसभा सांसद, आदरणीय श्री संजय झा जी, जिन्होंने उसी बांध से कुछ दूरी (700 मीटर) पर कमला में रिवर फ्रंट बनवाया, गरीब परिवारों को पुनर्स्थापित करने में विफल रहे हैं। यह दोहरा मापदंड क्यों? क्या विशेषाधिकार प्राप्त लोगों की ही बात सुनी जाएगी? मुख्यमंत्री द्वारा प्रस्तावित भूमि स्थान पर भी बाढ़ प्रभावित लोगों के लिए भूमि नहीं दी जा रही है। हमें उनसे कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिल रही है। सरकार और उसके अंधभक्त मिथिला में विकास का ढोल पीट रहे हैं, लेकिन क्या गरीब जनता का हक छीनकर केवल एक गांव का विकास ही असली विकास है? दो बार उन्होंने विवादित भूमि के कागजात दिए हैं जो अदालत में लंबित हैं। पिछले छह सालों से लोग अपने घर, जमीन और आजीविका के साथ-साथ पुनर्वास का इंतजार कर रहे हैं।
झंझारपुर सांसद: क्या सिर्फ चुनाव के वादे ?
झंझारपुर के सांसद, आदरणीय श्री रामप्रीत मंडल जी, पुनः सांसद बने हैं, लेकिन इन परिवारों को उनका आशियाना आज तक नहीं दिला पाए हैं। यह अत्यंत दुखद है कि जिन जनप्रतिनिधियों पर जनता भरोसा करती है, वे उनकी मूलभूत जरूरतों को पूरा करने में भी अक्षम साबित हो रहे हैं। चुनाव के दौरान बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं, लेकिन चुनाव जीतने के बाद इन विस्थापितों की सुध लेने वाला कोई नहीं है।
एक अनसुलझा प्रश्न
ग्राम + पोस्ट नरुआर (उसराहा टोल), प्रखंड झंझारपुर, जिला मधुबनी, बिहार के इन निवासियों का प्रश्न आज भी अनसुलझा है आखिर कब तक वे इस नरकीय जीवन जीने को मजबूर रहेंगे? कब उनके लिए पुनर्वास का सपना हकीकत में बदलेगा? यह घटना बिहार में सुशासन और विकास के दावों पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगाती है। यह सिर्फ एक गांव की कहानी नहीं, बल्कि उन हजारों वंचितों की आवाज है जिनकी सुनवाई नहीं होती।


