अभी मलाला युसफजई ने भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए दोनों देशों के नेताओं से तनाव कम करने, और विभाजनकारी ताकतों के खिलाफ एकजुट होने का आग्रह किया है।
मलाला ने कहा कि नफरत और हिंसा दोनों देशों के साझा दुश्मन हैं, न कि एक-दूसरे के नागरिक। इसी लिए दोनों देशों को आतंकबाद सें लड़ना चाहिए
अ भी भारत पाक के बीच चल रही तनाव के बीच मलाला यूसुफजई ने शांति का अपील करते हुए पाक सरकार को सलाह दिया कि आप अपना दुश्मन एक दूसरे को नहीं मान कर आतंकबाद को अपना दुश्मन माने.

मलाला यूसुफजई, एक ऐसा नाम जो साहस, दृढ़ संकल्प और शिक्षा के प्रति अटूट प्रतिबद्धता का पर्याय बन चुका है। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत की स्वात घाटी में जन्मी मलाला ने कम उम्र में ही लड़कियों की शिक्षा के अधिकार के लिए आवाज उठानी शुरू कर दी थी, एक ऐसे क्षेत्र में जहाँ तालिबान ने शिक्षा को प्रतिबंधित कर दिया था।
9 अक्टूबर 2012 को, महज 15 वर्ष की आयु में, मलाला को स्कूल बस में तालिबानी बंदूकधारियों ने सिर में गोली मार दी, क्योंकि उन्होंने लड़कियों की शिक्षा के समर्थन में बात की थी।
इस भयावह हमले ने मलाला को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। उनकी असाधारण बहादुरी और जीवित रहने के दृढ़ संकल्प ने दुनिया भर के लोगों को प्रेरित किया।
संयुक्त राष्ट्र ने उनके सम्मान में 12 जुलाई को ‘मलाला दिवस’ घोषित किया। 2014 में, मलाला को बच्चों और युवाओं के दमन के खिलाफ और सभी बच्चों के शिक्षा के अधिकार के लिए उनके संघर्ष के लिए कैलाश सत्यार्थी के साथ संयुक्त रूप से नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जिससे वह सबसे कम उम्र की नोबेल पुरस्कार विजेता बन गईं।
मलाला ने अपनी आपबीती “आई एम मलाला” नामक पुस्तक में बयां की है, जो दुनिया भर में बेस्टसेलर बनी और अनगिनत लोगों को प्रेरित किया। उन्होंने ‘मलाला फंड’ की स्थापना की, जो लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए काम करता है। आज, मलाला एक वैश्विक आइकन हैं, जो शिक्षा, शांति और मानवाधिकारों की वकालत करती हैं। उनकी आवाज उन लाखों लड़कियों और महिलाओं के लिए उम्मीद की किरण है जो शिक्षा और समानता के लिए संघर्ष कर रही हैं।
मलाला का संघर्ष: आतंकवाद के साये में बचपन
मलाला का बचपन स्वात घाटी में बीता, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता और शांत वातावरण के लिए जाना जाता था। हालांकि, यह शांति जल्द ही चरमपंथी ताकतों के साये में ढल गई। तालिबान ने क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत करनी शुरू कर दी, लड़कियों के स्कूलों को बंद कर दिया और महिलाओं पर कठोर प्रतिबंध लगा दिए। मलाला ने इस अन्याय को अपनी आँखों से देखा और इसके खिलाफ आवाज उठाने का फैसला किया।
अपने पिता, जियाउद्दीन यूसुफजई, जो एक शिक्षा कार्यकर्ता और स्कूल के संचालक थे, से प्रेरित होकर मलाला ने गुमनाम रूप से बीबीसी उर्दू के लिए डायरी लिखना शुरू किया, जिसमें उन्होंने तालिबान के शासन के तहत अपने जीवन और लड़कियों की शिक्षा से वंचित होने के डर का वर्णन किया। “गुल मकई” के छद्म नाम से लिखी गई उनकी डायरी ने दुनिया का ध्यान स्वात घाटी की स्थिति की ओर खींचा।
मलाला ने सार्वजनिक रूप से भी लड़कियों की शिक्षा के अधिकार के लिए बोलना जारी रखा।
उन्होंने टेलीविजन साक्षात्कारों में भाग लिया और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी बात रखी। उनकी निर्भीकता और स्पष्टवादिता ने तालिबान को नाराज कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप उन पर जानलेवा हमला हुआ।
गोली लगने के बाद मलाला को गंभीर हालत में अस्पताल ले जाया गया। उन्हें इलाज के लिए यूनाइटेड किंगडम ले जाया गया, जहाँ उन्होंने कई सर्जरी के बाद धीरे-धीरे स्वास्थ्य लाभ किया। इस दर्दनाक अनुभव ने मलाला के संकल्प को और मजबूत किया।
उन्होंने शिक्षा के लिए अपनी लड़ाई जारी रखने का फैसला किया, न केवल अपने लिए बल्कि दुनिया भर की उन सभी लड़कियों के लिए जो शिक्षा से वंचित हैं।
मलाला की शहबाज शरीफ को सलाह: ‘भारत नहीं दुश्मन…’
भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से चले आ रहे तनावपूर्ण संबंधों के बीच, मलाला यूसुफजई ने एक महत्वपूर्ण बयान दिया है जो शांति और समझदारी का संदेश देता है। उन्होंने पाकिस्तान के प्रधान मंत्री शहबाज शरीफ और दोनों देशों के अन्य नेताओं से अपील की है कि वे आतंकवाद को अपना साझा दुश्मन मानें, न कि एक-दूसरे को।
मलाला ने अपने बयान में कहा, “पाकिस्तान, भारत और हमारे पड़ोसी मुल्कों में, हमारा साझा दुश्मन उग्रवाद, आतंकवाद और हिंसा है। हम एक-दूसरे के दुश्मन नहीं हैं।” उनका यह बयान ऐसे समय पर आया है जब सीमा पर तनाव बढ़ रहा है और दोनों देशों के बीच बातचीत लगभग ठप है।
मलाला ने अपने व्यक्तिगत अनुभव का हवाला देते हुए कहा कि वह खुद आतंकवाद की शिकार रही हैं और उन्होंने इस खतरे की भयावहता को करीब से महसूस किया है। उन्होंने कहा कि आतंकवाद किसी एक देश या धर्म का दुश्मन नहीं है, बल्कि यह मानवता के लिए खतरा है।
उन्होंने दोनों देशों के नेताओं से आग्रह किया कि वे नफरत और हिंसा को बढ़ावा देने वाली ताकतों के खिलाफ एकजुट हों और शांति और सहयोग के रास्ते पर चलें। उन्होंने विशेष रूप से नागरिकों, खासकर बच्चों की सुरक्षा पर जोर दिया, जो संघर्ष और हिंसा के सबसे कमजोर शिकार होते हैं।
मलाला ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से भी हस्तक्षेप करने और भारत और पाकिस्तान के बीच शांति और संवाद को बढ़ावा देने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि कूटनीति और सहयोग ही इस क्षेत्र में स्थिरता और समृद्धि ला सकते हैं।
मलाला की सलाह के पीछे का सच: एक पीड़ित की आवाज
मलाला यूसुफजई की आज यह सलाह केवल एक नोबेल पुरस्कार विजेता का बयान नहीं है, बल्कि एक ऐसी व्यक्ति की गहरी पीड़ा और अनुभव का सार है जिसने आतंकवाद की क्रूरता को व्यक्तिगत रूप से झेला है। उनकी आवाज में वह सच्चाई और ईमानदारी है जो किसी भी राजनीतिक बयान या कूटनीतिक चाल से कहीं अधिक वजन रखती है।
मलाला ने अपने बचपन को आतंकवाद के साये में जिया है। उन्होंने देखा है कि कैसे चरमपंथी विचारधाराएं समाज को खोखला करती हैं और हिंसा को जन्म देती हैं। उन्होंने लड़कियों को शिक्षा से वंचित होते देखा है और खुद उस क्रूरता का शिकार हुई हैं जो असहमति की आवाज को दबाने के लिए इस्तेमाल की जाती है।
उनकी सलाह इस गहरी समझ पर आधारित है कि आतंकवाद किसी सीमा या राष्ट्र का सम्मान नहीं करता है। यह निर्दोष लोगों की जान लेता है, समुदायों को तबाह करता है और विकास को रोकता है। भारत और पाकिस्तान दोनों ही आतंकवाद से पीड़ित रहे हैं और इस साझा खतरे का मुकाबला करने के लिए उन्हें मिलकर काम करने की आवश्यकता है।
मलाला का यह भी मानना है कि नफरत और दुश्मनी की राजनीति केवल आतंकवाद को बढ़ावा देती है। जब देश एक-दूसरे को दुश्मन मानते हैं, तो वे अविश्वास और संदेह के माहौल को जन्म देते हैं, जिसका फायदा चरमपंथी संगठन उठाते हैं। शांति और सहयोग का मार्ग ही इस नकारात्मक चक्र को तोड़ सकता है।
उनकी सलाह में एक मानवीय पहलू भी है। मलाला जानती हैं कि संघर्ष और हिंसा का सबसे बुरा असर बच्चों पर पड़ता है। वे अपनी मासूमियत खो देते हैं और एक ऐसे भविष्य का सामना करते हैं जो अनिश्चितताओं और डर से भरा होता है। इसलिए, उन्होंने विशेष रूप से बच्चों की सुरक्षा पर जोर दिया है और दोनों देशों के नेताओं से अपील की है कि वे उनके भविष्य को सुरक्षित करने के लिए काम करें।
खबर का विश्लेषण: कितना सच बोल रही हैं मलाला?
मलाला यूसुफजई का बयान निस्संदेह रूप से महत्वपूर्ण और सामयिक है। उनके शब्दों में सच्चाई, अनुभव और मानवीय करुणा का मिश्रण है। हालांकि, यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि उनकी सलाह को भारत और पाकिस्तान के जटिल राजनीतिक और ऐतिहासिक संदर्भ में कितना व्यावहारिक माना जा सकता है।
सकारात्मक पहलू:
नैतिक अधिकार: मलाला एक वैश्विक आइकन हैं और उनकी आवाज का दुनिया भर में सम्मान किया जाता है। आतंकवाद की शिकार होने के नाते, उनके पास इस मुद्दे पर बोलने का एक मजबूत नैतिक अधिकार है।
साझा खतरा: मलाला ने आतंकवाद को दोनों देशों के लिए एक साझा खतरे के रूप में सही ढंग से पहचाना है। यह एक ऐसी समस्या है जिसका मुकाबला अकेले नहीं किया जा सकता है।
मानवीय दृष्टिकोण: उनका बयान राजनीतिक दुश्मनी से ऊपर उठकर मानवीय मूल्यों पर आधारित है। उन्होंने नागरिकों, खासकर बच्चों की सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित किया है, जो संघर्षों के सबसे कमजोर शिकार होते हैं।
शांति की वकालत: मलाला ने स्पष्ट रूप से शांति और सहयोग का आह्वान किया है, जो इस क्षेत्र में स्थिरता और समृद्धि के लिए आवश्यक है।
चुनौतियां और जटिलताएं:
ऐतिहासिक शत्रुता: भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजन के बाद से ही अविश्वास और शत्रुता का माहौल रहा है। कई युद्ध और सीमा विवाद दोनों देशों के संबंधों को जटिल बनाते रहे हैं।
आतंकवाद का मुद्दा: पाकिस्तान पर भारत में आतंकवादी गतिविधियों का समर्थन करने का आरोप लगता रहा है। जब तक पाकिस्तान अपनी धरती से संचालित होने वाले आतंकवादी समूहों के खिलाफ ठोस कार्रवाई नहीं करता, तब तक भारत के लिए मलाला की सलाह पर अमल करना मुश्किल होगा।
राजनीतिक इच्छाशक्ति: दोनों देशों के नेताओं को अपने-अपने देशों में मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखानी होगी ताकि वे अतीत के पूर्वाग्रहों को छोड़कर शांति की ओर बढ़ सकें।
अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप: मलाला ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से हस्तक्षेप करने का आह्वान किया है, लेकिन अतीत के अनुभव बताते हैं कि बाहरी हस्तक्षेप अक्सर जटिलताओं को और बढ़ा सकता है।
निष्कर्ष:
मलाला यूसुफजई का बयान एक महत्वपूर्ण अनुस्मारक है कि भारत और पाकिस्तान का असली दुश्मन आतंकवाद है, न कि एक-दूसरे की जनता। उनकी सलाह में सच्चाई और मानवीयता का गहरा संदेश निहित है। हालांकि, दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक शत्रुता और आतंकवाद के जटिल मुद्दे को देखते हुए, उनकी सलाह पर अमल करना एक बड़ी चुनौती है।
मलाला की आवाज शांति और समझदारी की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह दोनों देशों के नागरिकों, विशेष रूप से युवाओं को यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या दशकों पुरानी दुश्मनी को छोड़कर एक बेहतर भविष्य की ओर बढ़ा जा सकता है। अंततः, शांति और सहयोग का मार्ग तभी प्रशस्त होगा जब दोनों देशों के नेता राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाएंगे, अविश्वास की दीवारों को तोड़ेंगे और एक-दूसरे के साथ सम्मान और समझदारी से व्यवहार करेंगे। मलाला की सलाह उस दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रेरणा स्रोत हो सकती है।


