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मानव जीवन का मुख्य उद्देश्य है भगवान की भक्ति- पूज्य श्री सुरेन्द्र हरिदास जी महाराज

ByBiru Gupta

Jan 11, 2025
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आज की कथा के दौरान पूज्य महाराज श्री ने बताया कि श्रीमद् भागवत कथा इतनी पवित्र और दिव्य है कि देवताओं को भी इसे सुनने का सौभाग्य बहुत कठिनाई से प्राप्त होता है।

 

मानव जीवन का मुख्य उद्देश्य ही भगवान की भक्ति और उनके मार्गदर्शन में चलना है।

 

जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए सत्य और धर्म का पालन करना अत्यंत आवश्यक है।

 

सत्य के मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति अपने जीवन में हर कठिनाई को सहजता से पार कर लेता है।

 

जिन भक्तों का भगवान के प्रति अनुराग होता है, वे जीवन की भटकाव भरी राहों से मुक्त होकर सीधा उनके चरणों में स्थान पाते हैं।

 

धर्म को सदा पवित्र बनाए रखना चाहिए और इसे भ्रष्ट करने से बचना चाहिए।

 

धर्म के मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति न केवल अपने जीवन को सफल बनाता है बल्कि समाज में भी सकारात्मकता और सद्भावना का प्रसार करता है।

 

धर्म की रक्षा के लिए यदि प्राणों का बलिदान भी देना पड़े, तो उसे हंसते हुए स्वीकार करना चाहिए। पूज्य सुरेन्द्र हरीदास जी महाराज जी ने कथा का वृतांत सुनाते हुए कहा कि बिना साधना के भगवान का सानिध्य नहीं मिलता। द्वापर युग में गोपियों को भगवान श्री कृष्ण का सानिध्य इसलिए मिला, क्योंकि वे त्रेता युग में ऋषि – मुनि के जन्म में भगवान के सानिध्य की इच्छा को लेकर कठोर साधना की थी। शुद्ध भाव से की गई परमात्मा की भक्ति सभी सिद्धियों को देने वाली है। जितना समय हम इस दुनिया को देते हैं, उसका 5% भी यदि भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में लगाएं तो भगवान की कृपा निश्चित मिलेगी। पूज्य श्री सुरेन्द्र हरिदास जी महाराज ने कहा कि गोपियों ने श्री कृष्ण को पाने के लिए त्याग किया परंतु हम चाहते हैं कि हमें भगवान बिना कुछ किये ही मिल जाये, जो की असम्भव है। महाराज श्री ने बताया कि शुकदेव जी महाराज परीक्षित से कहते हैं राजन जो इस कथा को सुनता हैं उसे भगवान के रसमय स्वरूप का दर्शन होता हैं। उसके अंदर से काम हटकर श्याम के प्रति प्रेम जाग्रत होता हैं। जब भगवान प्रकट हुए तो गोपियों ने भगवान से 3 प्रकार के प्राणियों के विषय में पूछा। 1 . एक व्यक्ति वो हैं जो प्रेम करने वाले से प्रेम करता हैं। 2 . दूसरा व्यक्ति वो हैं जो सबसे प्रेम करता हैं चाहे उससे कोई करे या न करे। 3 . तीसरे प्रकार का प्राणी प्रेम करने वाले से कोई सम्बन्ध नही रखता और न करने वाले से तो कोई संबंध हैं ही नही। आप इन तीनो में कोनसे व्यक्ति की श्रेणियों मेंआते हो?

 

भगवान ने कहा की गोपियों! जो प्रेम करने वाले के लिए प्रेम करता हैं वहां प्रेम नही हैं वहां स्वार्थ झलकता हैं। केवल व्यापर हैं वहां। आपने किसी को प्रेम किया और आपने उसे प्रेम किया। ये बस स्वार्थ हैं। दूसरे प्रकार के प्राणियों के बारे में आपने पूछा वो हैं माता-पिता, गुरुजन। संतान भले ही अपने माता-पिता के , गुरुदेव के प्रति प्रेम हो या न हो। लेकिन माता-पिता और गुरु के मन में पुत्र के प्रति हमेशा कल्याण की भावना बनी रहती हैं। लेकिन तीसरे प्रकार के व्यक्ति के बारे में आपने कहा की ये किसी से प्रेम नही करते तो इनके 4 लक्षण होते हैं- आत्माराम- जो बस अपनी आत्मा में ही रमन करता हैं। पूर्ण काम- संसार के सब भोग पड़े हैं लेकिन तृप्त हैं। किसी तरह की कोई इच्छा नहीं हैं। कृतघ्न – जो किसी के उपकार को नहीं मानता हैं। गुरुद्रोही- जो उपकार करने वाले को अपना शत्रु समझता हैं। श्री कृष्ण कहते हैं की गोपियों इनमे से मैं कोई भी नही हूँ। मैं तो तुम्हारे जन्म जन्म का ऋणियां हूँ। सबके कर्जे को मैं उतार सकता हूँ पर तुम्हारे प्रेम के कर्जे को नहीं। तुम प्रेम की ध्वजा हो।।इस कथा को सफल बनाने में प्रमुख रूप से रामचन्द्र प्रसाद गुप्ता, शोभा देवी, श्याम पांडे स्वाति पांडे,एस के सिंन्हा (पलटन बाबू) सिद्धेश्वर दुबे, कृष्णा देवी, शिव शंकर झा,सुनिल अग्रवाल, कोयल डे,शिशिर मंडल, आलोक मिश्रा,राजकुमार नाग,अमृत सिंह, रूपांजलि सिंह,रुचि बंसल,टिंकू दास, इन्द्र सिंह, उपेन्द्र मालाकार, कलावती देवी,रेणु देवी, मीना देवी,रेखा देवी,आदि समस्त धीरेन्द्रपुरम धैया, धनबाद नगरवासियों के सहयोग से किया जा रहा है।

 

!! 12/01/2025 को कथा विश्राम सुदामा कृष्ण मिलन, द्वारका लीला, भगवान शुकदेव जी की विदाई एवं वृन्दावन की राधा कृष्ण के साथ फुलों की होली!खेली जाएगी आप सभी पधारे।

समय: दोप. 2 बजे से सायं 7 बजे तक

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