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जानिए ‘रामनवमी’ का इतिहास, क्यों मनाया जाता है यह महापर्व

ByAdmin Office

Apr 17, 2024
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*नई दिल्ली :* मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम को समर्पित ‘रामनवमी’ का महापर्व इस वर्ष 30 मार्च, गुरुवार के दिन है।’रामनवमी’ का पावन त्योहार हर साल चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। हिन्दू धर्म में ये पावन तिथि बेहद शुभ और महत्वपूर्ण मानी जाती है, क्योंकि इस दिन भगवान श्री राम का जन्म हुआ था।

शास्त्रों के अनुसार, भगवान श्री राम ने राजा दशरथ के राज्य अयोध्या में सूर्यवंशी इक्ष्वाकु वंश में जन्म लिया था। भगवान श्री राम को जन्म देने वाली मां कौशल्या थीं। ये भी कहा जाता है कि भगवान श्री राम भगवान विष्णु के सातवें अवतार हैं। यह तिथि सिर्फ राम नवमी के लिए नहीं बल्कि चैत्र नवरात्रि की नवमी के तौर पर भी मनाई जाती है। यह दिन माँ सिद्धिदात्री को अर्पित है। हिन्दू भक्तों के लिए ये भी जानना जरूरी है कि रामनवमी का शुभ दिन क्यों मनाया जाता है। आइए जानें इस बारे में-

*क्यों मनाई जाती है ‘रामनवमी’*

रामनवमी का त्यौहार हिंदू धर्म में बहुत महत्व रखता है। राम नवमी के दिन ही मां दुर्गा के नवरात्रों का समापन भी होता है। हिंदू धर्म में रामनवमी के दिन भगवान राम की पूजा अर्चना की जाती है और रैलियां निकाली जाती हैं। कुछ लोग इस दिन व्रत भी रखते हैं। रामनवमी का त्यौहार हिंदू धर्म में बहुत पहले से मनाया जा रहा है ऐसा माना जाता है कि रामनवमी का त्यौहार भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान राम के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है।

*रामनवमी का इतिहास*

महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी लेकिन इसके बाद भी उन्हें बहुत लंबे समय तक कोई संतान नहीं हो पाई थी। इस कारण से राजा दशरथ बहुत परेशान रहा करते थे। संतान प्राप्ति के लिए राजा दशरथ ने ऋषि वशिष्ठ से पुत्र की इच्छा जताई और पुत्रकामेष्टि यज्ञ करने का विचार किया। इसके पश्चात राजा दशरथ पुत्रकामेष्टि यज्ञ किया। ठीक इसके 9 महीने बाद राजा दशरथ की सबसे बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया।

जो कि भगवान विष्णु के सातवें अवतार थे। केकई ने भरत को और सुमित्रा ने जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघ्न को जन्म दिया। भगवान राम का जन्म धरती पर दुष्ट प्राणियों का संघार करने के लिए हुआ था और रामायण के अनुसार भगवान राम ने रावण को मार कर उसके पापों से उसे मुक्ति दिलाई थी। तो यह कहा जा सकता है कि रामनवमी के दिन भगवान विष्णु के 7वे अवतार भगवान राम का जन्म हुआ था इसलिए रामनवमी का त्यौहार मनाया जाता है।

*आज रामनवमी, पूजा मुहूर्त ढाई घंटे :*

घर पर करें रामलला की आराधना, राम मंदिर के मुख्य पुजारी से जानिए आसान पूजन विधि।

*अयोध्या में इस मौके पर दोपहर 12 बजे रामलला का सूर्य तिलक होगा।*

इस दौरान अभिजीत मुहूर्त रहेगा। वाल्मीकि रामायण के मुताबिक त्रेतायुग में इसी समय श्रीराम का जन्म हुआ था।

*श्रीराम जन्म पर पूजा और व्रत* करने की परंपरा है। पूजा के लिए करीब ढाई घंटे का एक ही मुहूर्त है, जो सुबह 11:05 बजे से दोपहर 1:35 बजे तक रहेगा।

1992 से रामलला के मुख्य पुजारी रहे सत्येंद्र दास और मौजूदा पुजारी पं. संतोष तिवारी से आसान पूजा विधि लिखवाई। इस विधि के मुताबिक आप घर में ही श्रीराम की पूजा कर सकते हैं।

सूर्य तिलक के समय 9 शुभ योग, 3 ग्रहों की स्थिति त्रेतायुग जैसी

दोपहर 12 बजे जब रामलला का सूर्य तिलक होगा, उस समय केदार, गजकेसरी, पारिजात, अमला, शुभ, वाशि, सरल, काहल और रवियोग बनेंगे। इन 9 शुभ योग में रामलला का सूर्य तिलक होगा। वाल्मीकि रामायण में लिखा है कि राम जन्म के समय सूर्य और शुक्र अपनी उच्च राशि में थे। चंद्रमा खुद की राशि में मौजूद थे। इस साल भी ऐसा ही हो रहा है। वाराणसी के प्रो. रामनारायण द्विवेदी और पुरी के डॉ. गणेश मिश्र के मुताबिक सितारों का ये संयोग देश के लिए शुभ संकेत है।

*रामनवमी पर स्वर्ण जड़ित पीली-गुलाबी पोशाक पहनेंगे रामलला*

अयोध्या में 17 अप्रैल को दोपहर 12 बजे जहां सूर्य तिलक से भगवान रामलला का जन्मोत्सव शुरू होगा। इस दिन रामलला स्वर्ण आभूषण और रत्न जड़ित पोशाक में अद्भुत दर्शन देंगे। उनकी रत्न जड़ित पोशाक दो रंगों में बनी है- पीली और गुलाबी। वस्त्रों पर स्वर्ण धागों से सिलाई-कढ़ाई की गई है।

रामलला के माथे पर माणिक्य पीसकर चंदन लेप लगाया जाएगा

रामलला को मुकुट, कुंडल, हार, तिलक, बाजूबंद, हाथों के कड़े पहनाए जाएंगे। यानी रामलला के सिर से लेकर पैर के अंगूठे तक सोने और हीरे-पन्ने के आभूषण होंगे। सोने के तार वाला धनुष-बाण भी होगा। उनके मस्तक पर चंदन का लेप होगा, उनमें माणिक्य को पीसकर मिलाया जाएगा, ताकि रोशनी में प्रभु का मस्तक दमकता रहे।

*अयोध्या मंदिर में रामनवमी पर 20 घंटे तक दर्शन होंगे*

रामनवमी पर 20 घंटे तक रामलला के दर्शन होंगे। ब्रह्म मुहूर्त में मंगला आरती के बाद यानी सुबह 3:30 बजे से रात 11 बजे तक दर्शन होंगे। दर्शन के बीच में ही रामलला का अभिषेक और श्रंगार होगा। रामनवमी के दिन मंदिर 5 घंटे ज्यादा खुला रहेगा, लेकिन पूजा के लिए दर्शन के बीच में 2 से 5 मिनट के लिए भगवान का परदा गिरता रहेगा।

मंदिर के पुजारी संतोष तिवारी बताते हैं कि रामलला का जन्म उत्सव 17 अप्रैल को दोपहर ठीक 12 बजे होगा। इस मौके पर भगवान को पीला रेशमी वस्त्र, 4 किलो वजनी सोने का मुकुट और रत्न जड़े हुए गहने पहनाए जाएंगे। जिसमें हीरा, पन्ना और माणिक जड़े होंगे। राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न की छोटी मूर्तियों को भी सोने के मुकुट पहनाए जाएंगे। दोपहर में जन्मोत्सव से पहले रामलला का परदा करीब 20 मिनट के लिए बंद रहेगा।

*अयोध्या में राम के बालरूप की पूजा होती है*

अयोध्या का राम जन्मभूमि मंदिर वो स्थान है जहां उन्हें बाल रूप में पूजा जाता है। तभी उन्हें रामलला कहते हैं। बालरूप होने से उनकी सेवा और लाड़ बच्चों की तरह होता है।

मौजूदा मूर्ति से पहले श्रीराम के बाल रूप की छोटी सी मूर्ति मंदिर में स्थापित है। जिन्हें छोटे रामलला कहते हैं। इनके साथ लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न की भी मूर्तियां हैं। इनकी पूजा तब से हो रही है जब मंदिर नहीं बना था।

सुबह 4 बजे रामलला को उठाया जाता है। इस समय पुजारी को बिना आवाज किए धीरे-धीरे चौखट पर माथा टेककर मंदिर में पहुंचना होता है। बत्तियां नहीं जला सकते हैं और न ही घंटी बजाते हैं। बिना शोर किए दीप जलाकर आरती होती है।

इसके बाद घिसा हुआ चंदन, कुमकुम, इत्र मिलाकर लेप तैयार किया जाता है। रामलला को चांदी की थाली में रखा जाता है। तुलसी की डंडी से उन्हें दातून करवाया जाता है और सरयू नदी के जल से स्नान करवाते हैं।

इसके बाद दिन के हिसाब से उनके वस्त्र तय होते हैं। जैसे रविवार को गुलाबी, सोमवार को सफेद, मंगलवार को लाल, बुधवार को हरे, गुरुवार को पीले, शुक्रवार को क्रीम और शनिवार को नीले रंग के वस्त्र पहनाए जाते हैं।

उनके श्रंगार की मालाएं और इत्र भी मौसम के अनुसार बदलते हैं। गुलाब का इत्र हर मौसम में लगता है। अभी गर्मी का मौसम है तो भगवान को सूती कपड़े पहनाएं जा रहे हैं। जन्म के समय रामलला पीले रंग के कपड़े ही पहनेंगे।

*वाल्मीकि रामायण : पुत्रकामेष्टि यज्ञ से हुआ राम का जन्म।*

वाल्मीकि रामायण के मुताबिक, दशरथ जब बहुत बूढ़े हुए तो संतान न होने के कारण चिंतित रहने लगे। ऋषियों ने उन्हें पुत्रकामेष्टि यज्ञ करने की सलाह दी। महर्षि वशिष्ठ के कहने पर दशरथ ने ऋषि श्रृंग को इस यज्ञ के लिए बुलाया।

कथा के मुताबिक यज्ञ पूरा होने के बाद अग्नि देव प्रकट हुए। उन्होंने खीर से भरा सोने का घड़ा दशरथ को दिया और रानियों को खीर खिलाने को कहा। दशरथ ने ऐसा ही किया। एक साल बाद चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष के नौवें दिन कौशल्या ने श्रीराम को जन्म दिया। कैकेई ने भरत और सुमित्रा से जुड़वां बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघ्न हुए।

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