पटना: गुरुवार को सुनवाई करते हुए पटना हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय से यह निश्चित किया है कि राज्य के वित्त रहित एवं संबद्ध अल्पसंख्यक कॉलेजों के शिक्षकों की बहाली, प्रोन्नति या उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए जो निर्णय कॉलेज का गवर्निंग बोर्ड लेगा, उसके निर्णय से पहले संबंधित विश्वविद्यालय से अनिवार्य अनुमति लेने की बजाय सिर्फ विश्वविद्यालय प्रशासन की स्वीकृति या उनसे परामर्श लेना ही पर्याप्त रहेगा.
चीफ जस्टिस के विनोद चंद्रन की खंडपीठ ने नूर आलम और अन्य की ओर से दायर रिट याचिकाओं को निष्पादित करते हुए यह फैसला सुनाया है।
याचिकाकर्ता ने याचिका में क्या कहा?:याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता अभिनव श्रीवास्तव ने कोर्ट को बताया कि बिहार के विश्वविद्यालय कानून में धारा 57 ए के तहत, राज्य में जितने भी संबंधित और वित्त रहित अल्पसंख्यक कॉलेज हैं, उन सब में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए संबंधित विश्वविद्यालय प्रशासन या उसकी चयन समिति से पूर्व अनुमति लेना संविधान के अनुच्छेद 30 के खिलाफ है.
ऐसा अनुमति लेने की बाध्यता धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को संविधान से मिले बुनियादी या मौलिक अधिकारों का हनन करता है.
पहले भी आया था ऐसा मामला: वहीं राज्य सरकार की तरफ से महाधिवक्ता पीके शाही ने कोर्ट को बताया कि पूर्व में भी एक ऐसा मामला उच्च न्यायालय में आया था, जहां अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थाओं को अपने इच्छानुसार अपनी संस्था को प्रबंधन करने में राज्य सरकार से पूर्व अनुमति लेने की बाध्यता को संवैधानिक चुनौती दी गई थी.
लेकिन इस मामले में भी पटना हाईकोर्ट ने सरकार से ली जाने वाली पूर्व अनुमति की शर्त को और संवैधानिक घोषित नहीं किया. उसे अल्पसंख्यक कॉलेजों के लिए पूर्व अनुमति की बाध्यता की बजाए एक प्रभावी परामर्श के रूप में परिभाषित किया. इस मामले में भी बिहार विश्वविद्यालय अधिनियम 1976 की उक्त धारा 57- ए में विश्वविद्यालय की कमिटी से पूर्व अनुमोदन की जगह, उसे एक प्रभावी परामर्श के आधार पर मानने का आदेश दिया है.
प्रोफेसरों की प्रोन्नति पर कोर्ट का निर्देश:उधर राज्य के कॉलेज में कार्यरत प्रोफेसरों की प्रोन्नति के लिए बनाई गई नई संशोधित नियमावली के संबंध में उच्च न्यायालय ने कुलाधिपति कार्यालय से दो सप्ताह में स्थिति स्पष्ट करते हुए जवाब देने को कहा है. चीफ जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस पार्थ सारथी की खंडपीठ ने डॉक्टर पूनम कुमारी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिया है.
दो हफ्ते बाद मामले में सुनवाई:कोर्ट को याचिकाकर्ता द्वारा बताया गया कि कैरियर एडवांसमेंट स्कीम में किए गए संशोधन के द्वारा महाविद्यालय शब्द को बदलकर अंगीभूत महाविद्यालय कर दिया गया है. एफिलिएटिड कॉलेज में कार्य किए गए समय की गणना प्रमोशन में नहीं की जाएगी. यह संशोधन भूतलक्षी प्रभाव से किया गया है, जो संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत है।चांसलर कार्यालय के अधिवक्ता ने इस मामले में जबाब देने के लिए दो सप्ताह का समय मांगा, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है. अब इस मामले में दो सप्ताह बाद फिर सुनवाई होगी.