पांच अगस्त को राज्य सरकार ने आनन-फानन में आदेश जारी कर मुनेश गुर्जर को पार्षद और मेयर पद से निलंबित कर दिया. उस पर आरोप लगाया कि उसके पति ने पट्टे जारी करने के नाम पर उसकी उपस्थिति में दलाल से 2 लाख रुपए की रिश्वत ली और उसके घर से 40 लाख रुपए से अधिक की राशि बरामद हुई. जबकि पंचनामे में याचिकाकर्ता के बयान दर्ज हैं कि घटना के तीन दिन पहले उसके ससुर ने अपना प्लॉट बेचा था, जिसके रुपए घर में रखे थे.
जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने मुनेश गुर्जर को हेरिटेज निगम मेयर और पार्षद पद से निलंबित करने के गत 5 अगस्त के आदेश की क्रियान्विति पर रोक लगा दी है. इसके साथ ही अदालत ने मामले की सुनवाई 18 सितंबर को तय की है. जस्टिस इन्द्रजीत सिंह की एकलपीठ ने यह आदेश मुनेश गुर्जर की याचिका में दायर स्टे प्रार्थना पत्र को स्वीकार करते हुए दिए. अदालत ने माना कि राजस्थान नगर पालिका अधिनियम की धारा 39 के प्रावधान के तहत बिना प्रारंभिक जांच किए याचिकाकर्ता को पद से हटाना गलत है.
सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता ने अदालत को कहा कि अदालत भले की निलंबन आदेश पर रोक लगा रही है, लेकिन उन्हें यह छूट दी जाए कि यदि इस मामले में याचिकाकर्ता का पुनः निलंबन किया जाता है तो उसे अदालत की अवमानना नहीं माना जाए. इस पर याचिकाकर्ता ने कहा कि तय प्रक्रिया अपनाए निलंबन नहीं किया जा सकता. वहीं, अदालत ने राज्य सरकार को छूट दी कि वह चाहे तो राज्य सरकार से परामर्श कर निलंबन आदेश को वापस ले सकती है. इस पर महाधिवक्ता ने कहा कि यह पहले से ही तय हो चुका है कि निलंबन आदेश वापस नहीं लिया जाएगा. इस पर अदालत ने निलंबन आदेश पर रोक लगा दी.
याचिका में अधिवक्ता विज्ञान शाह ने बताया कि गत पांच अगस्त को राज्य सरकार ने आनन-फानन में आदेश जारी कर मुनेश गुर्जर को पार्षद और मेयर पद से निलंबित कर दिया. उस पर आरोप है कि उसके पति ने पट्टे जारी करने के नाम पर उसकी उपस्थिति में दलाल से 2 लाख रुपए की रिश्वत ली और उसके घर से 40 लाख रुपए से अधिक की राशि बरामद हुई. जबकि पंचनामे में याचिकाकर्ता के बयान दर्ज हैं कि घटना के तीन दिन पहले उसके ससुर ने अपना प्लॉट बेचा था, जिसके रुपए घर में रखे थे.
इसके अलावा एसीबी की रेड के समय उसके पति घर पर ही नहीं थे, बल्कि उन्हें उनके कार्यालय से पकड़ कर लाया गया था. वहीं, एफआईआर में भी याचिकाकर्ता का नाम नहीं है. इसके अलावा सह आरोपी बनाए गए नारायण सिंह के घर से बरामद 2 लाख रुपए का संबंध याचिकाकर्ता से नहीं है.
याचिका में कहा गया कि निर्वाचित जनप्रतिनिधि को निलंबित करने से पहले कम से कम प्रारंभिक जांच करनी चाहिए थी या उसका नाम एफआईआर में होना चाहिए था.
इसके अलावा एसीबी ने मामले में छह अगस्त को एफआईआर दर्ज की, लेकिन राज्य सरकार ने उसका इंतजार किए बिना देर रात ही याचिकाकर्ता को एसीबी के प्रेस नोट के आधार पर निलंबित कर दिया. वहीं, इस प्रेस नोट और एफआईआर के तथ्य ही आपस में विरोधाभासी हैं. इस पर महाधिवक्ता का कहना था कि नगर पालिका अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार किसी मामले में सरकार संतुष्ट है और कार्रवाई शुरू कर दी जाती है तो निलंबन किया जा सकता है. हेरिटेज मेयर के मामले में भी उसे नोटिस भेजकर कानूनी कार्रवाई शुरू कर दी गई थी और राज्य सरकार को निलंबन का अधिकार है. दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद अदालत ने निलंबन आदेश पर रोक लगा दी है.


