लोकसभा चुनाव का विगुल बजते हीं नेताओं में टिकट की होड़ मची। जिन नेताओं को अपनी पार्टी से टिकट नही मिली वे बागी हो गए। दूसरे पार्टी का दामन थाम लिया।इस उम्मीद से कि मेरा अपना वजूद है।जनता में पकड़ है और हम अपने बलबूते पर चुनाव जीत जाएंगे। लेकिन जनता में ये समझ है।और एक माइंडसेट भी।खास कर धनबाद में पिछले कई चुनावों में यह देखने को मिला। जनता के दिमाग में एक पार्टी, एक विचार धारा के प्रति एक अपना सोच बन गया कि हमें किसी व्यक्ति नही इस पार्टी को वोट करना है।भले ही कैंडिडेट कोई भी हो।जनता के लिए उसकी उपलब्धता और उसके विकास के लिए कार्य कराने के लिए उसकी सजगता क हो या नही हो। बस पार्टी कौन है…? निशान किसकी है बस वोट का मायने इसी पर तय होता है।
अभी सिर्फ धनबाद ही नही देश और तकरीबन कई राज्यों में दल बदल का दौर चल रहा है।दल बदलकर आने वाले लोगों को राष्ट्रीय पार्टियां टिकट भी दे रही है।
इंडिया गठबंधन ने हजारीबाग से जे पी पटेल को उम्मीदवार बनाया है तो भाजपा ने सीता सोरेन को दुमका से उम्मीदवार बनाया।
गीता कोड़ा को सिंहभूम से भाजपा की उम्मीदवार बनी है।ये सभी अपने पुरानी पार्टी को को छोड़कर नई पार्टी में गयी है।
गीता कोड़ा ने कांग्रेस छोड़ी और भाजपा में आई है। तो सीता सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा छोड़कर भाजपा में गई है। जेपी भाई पटेल भाजपा छोड़कर कांग्रेस का दामन थामा है।इन दल- बदलने वालों में कौन जीतेगा ,कौन हारेगा यह तो आने वाला रिजल्ट बतायेगा। लेकिन धनबाद का इतिहास कुछ अलग रहा है। 2019 के चुनाव की बात की जाए तो बिहार के मधुबनी से भाजपा के सांसद रहते हुए कृति आज़ाद पाला बदलकर कांग्रेस का पहले दामन थामा, फिर धनबाद से कांग्रेस के प्रत्याशी बने। लेकिन धनबाद में आकर उनको कड़ी हार का सामना करना पड़ा। भाजपा प्रत्याशी पशुपतिनाथ सिंह ने कीर्ति आजाद को 4,86,000 से भी अधिक मतों से हरा दिया झारखंड में सबसे अधिक वोट से जीतने वाले सांसद बनकर पशुपतिनाथ सिंह दिल्ली गए।
यह अलग बात है कि 2024 के चुनाव में पशुपति नाथ सिंह का टिकट काट दिया गया है। बाघमारा विधायक ढुल्लू महतो भाजपा के प्रत्याशी है। एक और उदाहरण सामने है, जो धनबाद लोकसभा के वोटरों के मिजाज को बताता है। 2004 में धनबाद ददई दुबे पहली बार सांसद बने लेकिन 2009 में जब कांग्रेस पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया तो तृणमूल कांग्रेस में चले गए और धनबाद लोकसभा से चुनाव लड़े। लेकिन उन्हें बुरी तरह पराजय का सामना करना पड़ा। उन्हें मात्र 29937 वोट मिले और उनकी जमानत तक जब्त हो गई। जिस धनबाद के वोटरों ने 2004 में उन्हें सांसद बनाया था, उसी धनबाद में उनकी जमानत तक जब्त हो गई।
इधर, भाजपा ने चार बार की सांसद रही रीता वर्मा का टिकट काटकर 2009 में पशुपतिनाथ सिंह को टिकट दिया और वह चुनाव में विजयी रहे। आंकड़े तो यही बताते हैं कि धनबाद के मतदाताओं का अपना एक अलग मिजाज होता है। उससे वह समझौता नहीं करते है।
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