आदित्यपुर: औद्योगिक क्षेत्र के हथियाडीह में जमना ऑटो का ड्रीम प्रोजेक्ट खाई में जाता नजर आने लगा है. राजनीतिक पेचीदगी में फंस चुकी है. विदित हो कि जियाडा द्वारा जमना ऑटो को उद्योग लगाने के लिए 13.50 एकड़ जमीन आवंटित किया गया है. पिछले दिनों त्रिस्तरीय वार्ता में कंपनी प्रबंधन ने ग्रामीणों की मांग पर 1.50 एकड़ जमीन को खेल के मैदान के रूप में विकसित करने का भरोसा दिलाया था. उसके बाद कंपनी ने अपना काम शुरू किया.
इधर मामला एकबार फिर से गहरा गया है. इसबार ग्रामीणों के समर्थन में जेबीकेएसएस, बीजेपी और बिरसा सेना उतर गई है. बता दें कि पिछले पांच दिनों से हथियाडीह गांव बचाओ संघर्ष समिति के बैनर तले जेबीकेएसएस के सदस्य धरने पर बैठे थे. हालांकि इस दौरान ग्रामीण और जेबीकेएसएस रास्ता की मांग कर रहे थे, बुधवार को जैसे- जैसे दिन ढलता गया ग्रामीणों की आड़ में राजनीति भी परवान चढ़ने लगी. सबसे पहले भाजपा नेता रमेश हांसदा धरना स्थल पर पहुंचे और जेबीकेएसएस के साथ ग्रामीणों की मांगों को अपना समर्थन दिया. साथ ही भाजपा नेता ने स्थानीय विधायक और सूबे के मंत्री चंपई सोरेन और झारखंड मुक्ति मोर्चा के खिलाफ जमकर निशाना साधा और कहा कि वर्तमान सरकार यहां के आदिवासियों- मूलवासियों का सबसे बड़ा दुश्मन है. मंत्री चंपई सोरेन मुख्यमंत्री से कम हैसियत नहीं रखते हैं. सब कुछ जानते हुए भी यहां के आदिवासियों- मूलवासियों के जमीन को लुटवा रहे हैं. उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेताओं पर कंपनी के समर्थन में काम करने का आरोप लगाया. वहीं झारखंडी भाषा खतियान संघर्ष समिति को समर्थन किए जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि इसमें पार्टी विशेष की बात नहीं है. जो भी जल- जंगल और जमीन की बात करेगा उनको समर्थन जारी रहेगा. इधर ग्रामीणों को बिरसा सेना ने समर्थन करने की घोषणा करते हुए धरना स्थल पर पहुंच सरकार और जिला प्रशासन के विरोध में मोर्चा खोल दिया है. वहीं दिनभर पुलिस- प्रशासन प्रदर्शनकारियों को समझाने में जुटे रहे. मगर जेबीकेएसएस, भाजपा और बिरसा सेना का समर्थन मिलते ही मूल ग्रामीण मौन हो गए और बाहरी नेताओं ने इसे जल- जंगल और जमीन का मुद्दा बताकर मामले को तूल दे दिया. कुल मिलाकर दिन भर दो थानों की पुलिस, गम्हरिया सीओ, जियाडा और आंदोलनकारी आमने- सामने डटे रहे देर शाम तक कोई निष्कर्ष नहीं निकला. सूचना मिलते ही देर शाम एसडीओ, डीएसपी हेडक्वार्टर भी मौके पर पहुंचे और आगे की रणनीति बनाने में जुट गए हैं. हालांकि विवाद अभी थमा नहीं है. यूं कह सकते हैं कि फिलहाल जमना ऑटो को आवंटित जमीन पर कब्जा के लिए अभी और इंतजार करना पड़ सकता है.
एस डी ओ पारुल सिंह ने भी कुछ ग्रामीण को काफ़ी देर समझाने कोशिश की. मगर कुछ नेता मुद्दा को छोड़ अलग ही बातों में प्रशासन को दीग भ्रमित करने की कोशिश की. अंततः वार्ता विफल रहा. जिसके बाद प्रशासन बेरंग ही लौट गई.
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