सम्पादक की कलम से….
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विनोद आनन्द
यूं तो बेरोजगरी दुनिया की सबसे बड़ी समस्या है लेकिन भारत इस समस्या से बहुत ज्यादा जूझ रहा है । सत्ता किसी की भी रही हो लेकिन अब तक ईमानदारी से किसी ने भी इस समस्या से निपटारा के लिए सही नीति नही बनाया ।
आज स्थिति यह है कि लगातार बढ़ती जनसंख्यां और घटती रोजगार के बीच का संतुलन इतना बिगड़ गया है कि भारत जैसे बिकासशील देश के लिए सरकार की बिकास नीति और किये जा रहे बिकास के वायदे अविश्वसनीय सा लगने लगता है।
सरकार ने बजट में भारत के आर्थिक विकास क दर 7.5 तक का लक्ष्य रखा है ।भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था बाला देश बनाने के लक्ष्य के साथ विकसित भारत का सपना सरकार ने देखा है । लेकिन रोजगार का दर किया होगा, उसके लिए सरकार के पास कोई रोडमैप नही है ।
आज भारत के हालात ऐसा है कि लगातार घटते रोजगार के कारण युवाओं में तनाव बढ़ता जा रहा है। ऊंची डिग्री बाले युवाओं को छोटी नॉकरी भी नही मिल पा रही । अभाव,असुरक्षा और पारिवारिक दवाब में सरकारी आंकड़ो पर भरोसा करें तो हर रोज औसतन 26 बेरोजगार युवा आत्महत्या कर रहै हैं । यह देश के लिए बहुत ही शर्मनाक बात है ।
अगर आज सेंटर फॉर इकॉनमी(सीएमआई)द्वारा जारी आंकड़ो पर भरोसा करे तो भारत में आज 7.2℅ बेरोजगरी पहुंच गई है ।यह बहुत ही निराशाजनक स्थिति है और विकास के दौर में बढ़ते भारत के लिए चिंता का विषय है । 2018 में यह आंकड़ा 5.9% थी । अगर हम एक नजर भारत के कामकाजी लोंगो के उम्र का आकलन करे तो 15 वर्ष से 61 वर्ष माना जाता है । 2050 तक अनुमान है कि इस उम्र के लोंगों की संख्यां 1.1 अरब हो जाएगी। इसके लिए सरकार को हर वर्ष 1.6 करोड़ नॉकरी सृजित करने होंगे । लेकिन मौजूदा सरकारी नीति और नॉकरी का घटते दर में यह सम्भव नही लगता है।
आज मोदी सरकार में नॉकरी का प्रतिशत घटा है ।
अगर हम भारत सरकार के श्रम मंत्रालय के पुराने आंकड़े पर एक नज़र डालें तो वर्ष 2011 में सालाना 8 लाख से 12.5 लाख नॉकरी सृजित होते थे। यह आंकड़ा 2015 में घट कर 1.55 लाख पर आ गया । 2016 में नॉकरी 1.22 लाख पर आ गया ।
जबकि नरेंद्र मोदी ने अपने 2013 के चुनाव प्रचार अभियान में कहा था कि हम हर साल एक करोड़ लोंगों को रोजगार देंगें। सरकार ने कोशिश भी की,मेक इन इंडिया,स्टार्टअप इंडिया,मुद्रा ऋण और अन्य कई कार्यक्रम ,लेकिन भारत में भ्र्ष्टाचार का जड़ इतना मजबूत है, अराजकता इतना फैला है कि यह योजना सफल नही हुआ ।
सच तो यह है कि पिछले 70 सालों में रोजगार का सृजन उधोगों पर निर्भर रहा ।
1960 -70 के दशक में टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज का जोर रहा ,भारत मे कपड़ा उद्योग को आगे बढ़ाने के लिए इस समय काम हुए । कुछ हद तक हमने निर्यात भी किया लेकिन आज इस उधोग में बांग्लादेश जैसा छोटा देश निर्यात में हम से आगे बढ़ गया । इस दौर रोजगार भी सृजित हुए,
इसी तरह 90- 2000 के दशक में आई टी,टेलीकॉम,खुदरा,ऑटोमोबाइल में खासा उभार आया और रोजगार का सृजन हुआ। लेकिन 1991 से 2013 के बीच कामकाजी लोंगों में 30 करोड़ का इजाफा हुआ जबकि रोजगार मात्र 1.4 करोड़ हीं सृजित हो पाया।
जी एस टी के कारण छोटे काम धंधा बालों का व्यापार बहुत प्रभावित्त हुआ और भारी पैमाने पर काम बंद हो गया ।लोंगो की रोजगार भी छीन गयी, आज 2014 से लेकर अब तक मैनुफैक्चरिंग सेक्टर के 500 से जयादा इंडस्ट्रीज बंद हो गये और लाखों लोंगो का रोजगार छिन गया ,आने बाले दिनों में आई टी सेक्टर में भी नॉकरी पर भारी खतरा है । एक अनुमान के अनुसार प्रत्येक वर्ष आई टी सेक्टर से 2 लाख लोगों को अपने नॉकरी से हाथ धोना पड़ेगा ।ऐसी स्थिति में नए भारत, विकसित भारत और बेरोजगारों से भरा भारत का किया स्वरूप होगा यह अनुत्तरित प्रश्न है ।
वैसे विकसित अर्थव्यवस्था का सत्र नॉकरियों से शुरू होता
है । नॉकरियां आमदनी लाती है,खपत की मांग पैदा करती है और उस मांग को पैदा करने के लिए क्षमताओं में बढ़ोतरी होती है । लेकिन नया भारत के बेरोजगार युवाओं की क्षमता कितना विकसित होगा यह आने वाला समय बतायेगा ।