
*अंतर्कथा प्रतिनिधि*
देवघर।हर इंसान के जीवन में कभी खुशी कभी गम की असहज और हताश करने वाले क्षण आते हैं ।वो प्राकृतिक आपदा हो या दुर्घटना या आपके विपरीत होने वाली परिस्थितियां । उस क्षण आप असहाय ,अकेला ,और आपकी क्षमता से अधिक आप पर भार आ जाती है तो उस परिस्थितियों में आप एक मजबूत संबल और सहारा ढूंढते हैं जो आपको थामकर गले लगा कर कहे मैं हूं ना और वो अगर शक्तिशाली प्रभाव शाली और क्षमता शाली मजबूत स्तंभ वाला व्यक्तित्व हो जो धन बल की शक्ति के साथ राजनीति के शिखर पर पहुंचा हुआ जन नेता हो और आपके ही क्षेत्र का प्रतिनिधि करता हो जब आकस्मिक विपरीत परिस्थितियों में आपके द्वार पर आकर आपको थाम गले लगा लेता हो तो शायद आपके हृदय की पीड़ा सर का बोझ और आंखों से दिब्यांग को लाठी का सहारा मिलता हुआ सा प्रतीत होता है ।वो किस जाति से है किस धर्म से है किस राजनीतिक दल का है ये सारे प्रश्न गौण हो जाते है ।वहां सिर्फ आपकी ओर उसके बढ़े हुए हाथ और उसका आलिंगन धड़कते दिल और दिमाग की मानसिक चिंताएं को एकाएक शांत कर देती हैं जैसे पूरे भारत देश की रक्षा के लिए खड़ी हिमालय राज की पर्वत श्रृंखलाएं । आकस्मिक दुर्घटना में हुई मौत पर शिक्षक प्रेम कुमार उर्फ पवन कुमार गुप्ता ग्राम — कोलबड्डा के घर आकर गोड्डा क्षेत्र के लोक प्रिय सांसद डा० निशिकांत दुबे ने जब उनके 14 वर्षीय पुत्र को अपने आलिंगन में लेकर सीने से लगा कर कहा मैं आपको हर तरह की सहायता देने को प्रस्तुत हूं । उस क्षण का वो चित्र और वो मनोभाव जो दोनो के चेहरे से निकल रहे थे उस क्षण वर्णन करना मेरे और लोगों को बयां करना मेरे जैसे तुच्छ लेखक के वश की बात नही लेकिन उस चित्र से मैं इतना प्रभावित हुआ कि बार बार मुझे लगता है की लिखते वक्त मुझसे कुछ छूट जा रहा है ।मानवता का दर्द और भाव छलकता सा प्याला प्यासे के होठों को सराबोर करने को आतुर हो ।एक प्यासा पानी के लिए बेचैन और एक शुद्ध शीतल जल लेकर पिलाने को बेचैन। डा ० निशिकांत दुबे सिर्फ एक सांसद हैं लेकिन सांसद से भी बड़े एक महामानव के रूप में उस वक्त नजर आ रहे थे जब उन्होंने मृतक के पुत्र को उसी वस्त्र में अपने हृदय से लगा लिया जो श्राद्ध कर्म के वस्त्र होते हैं । सहायता देना और लेना और वादे करना पूरा करना या न करना ये बीते वक्त के साथ धुंधली यादें धीरे धीरे लोग भूल जाते हैं लेकिन ये चित्र हमेशा अन्य लोगों के लिए एक प्रेरणा का श्रोत बनकर लोगों के दिलों में मानवता का पाठ पढ़ाता रहेगा ।रिवाजें और दिखावटी परंपराएं का स्वरूप भी अलग होता है जिसमे कुछ स्वार्थ कुछ औपचारिकता और कुछ समाज में अपनी छवि को प्रस्तुत करने की मजबूरी होती है जो यहां वो नही था। यहां सिर्फ प्रेम करुणा सांत्वना,और दुख में साथ देकर कुछ कर गुजरने की अकुलाहट थी ।
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