
*नयी दिल्ली :* दिल्ली समेत देश के कई बड़े शहरों में बुधवार शाम को शव्वाल महीने का चांद नजर आ गया है. इसी के साथ पूरे देश में गुरुवार, 11 अप्रैल को ईद-उल-फितर का त्यौहार हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा.
जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में एक दिन पहले ही चांद दिखने के कारण वहां बुधवार को ईद मनाई गई. इस्लाम के केंद्र सऊदी अरब में भी बुधवार को ही ईद का त्यौहार मनाया गया.
इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार, रमजान का महीना 29 या 30 दिन का होता है. भारत में रमजान के 29वें दिन चांद नहीं दिखा. 30वें दिन चांद नजर आ गया, इसलिए भारत और बांग्लादेश में 11 अप्रैल दिन गुरुवार को ईद मनाई जाएगी.
*चांद देखना क्यों है जरूरी?*
इस्लाम धर्म के अनुसार, ईद मनाने से पहले मुसलमानों के लिए चांद देखना बहुत जरूरी होता है. क्योंकि शरीयत में अपनी आंखों से देखने और गवाही से ही सुबूत का एतबार है. इसलिए शब-ए-बारात, शब-ए-कद्र, ईद और ईद-उल-अजहा जैसे पर्व से पहले लोग चांद देखते हैं. चांद देखने के बाद अल्लाह से दुआएं मांगी जाती हैं. इस्लाम में इस्लामी रूयत-ए-हिलाल यानी नया चांद देखने की पारंपरिक परंपरा है, जो कई सालों से चली आ रही है.
ईद-उल-फितर का त्यौहार रमजान के पवित्र महीने के समापन के बाद मनाया जाता है. रमजान में मुस्लिम समुदाय के लोग पूरे महीने रोज़े रखते हैं और सच्चे मन से अल्लाह की इबादत करते हैं. रमजान के आखिरी रोज़े के बाद शव्वाल महीने के पहले दिन ईद का त्यौहार मनाया जाता है.
*ईद मनाने के पीछे की मान्यता*
मान्यताओं के अनुसार, इस्लाम के आखिरी पैगंबर हजरत मुहम्मद साहब ने बद्र के युद्ध में जीत हासिल की थी, उसी की खुशी में ईद का त्यौहार मनाया जाता है. बद्र का युद्ध जीतना पैगंबर साहब के लिए आसान नहीं था क्योंकि उनके सामने दुश्मनों की एक विशाल सेना थी जबकि उनके साथ केवल 303 साथी मौजूद थे.
खास बात यह है कि उस समय रमजान का महीना चल रहा था और पैगंबर साहब और उनके सभी साथी रोज़े से थे. इसके बावजूद पैगंबर साहब ने बहादुरी का परिचय दिया और दुश्मन सेना को परास्त किया. जंग-ए-बद्र की जीत के बाद ईद का त्यौहार मनाया गया.
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